Saturday 10 May, 2014

1857 का राष्ट्रगीत


हम है इसके मालिक, हिन्दुस्तान हमारा,
पाक वतन है कौम का, जन्नत से भी प्यारा।
ये है हमारी मिल्कियत, हिन्दुस्तान हमारा,
इसकी रूहानियत से, रौशन है जग सारा;
कितना कदीम कितना नईम, सब दुनिया से न्यारा,
करती है जरखेज जिसे, गंगो-जमन की धारा।
ऊपर बर्फ़ीला पर्वत, पहरेदार हमारा,
नीचे साहिल पर बजता, सागर का नकारा;
इसकी खानें उगल रही, सोना, हीरा, पारा,
इसकी शानो शौकत का, दुनिया में जयकारा।
आया फ़िरंगी दूर से, ऐसा मन्तर मारा,
लूटा दोनों हाथ से, प्यारा वतन हमारा;
आज शहीदों ने है तुमको, अहले वतन पुकारा,
तोड़ो गुलामी की जंजीरें, बरसाओ अंगारा।
हिन्दू, मुसलमां, सिख हमारा भाई-भाई प्यारा,
ये है आजादी का झन्डा, इसे सलाम हमारा।
-अजीमुल्ला खान
(सन 1857 में राष्ट्रध्वज की सलामी के समय जगह-जगह में यह गीत गाया जाता था। मूल गीत 57 क्रांति-अखबार 'पयामे-आजादी' में छपाया गया था। जिसकी एक नकल ब्रिटिश म्युजियम लंदन में आज भी मौजूद है।)

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