Saturday, 2 November 2024

दादा अमीर हैदर ख़ान पाकिस्तान के एक कम्युनिस्ट कार्यकर्ता और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान क्रांतिकारी थे

दादा अमीर हैदर ख़ान (2 मार्च 1900 - 27 दिसंबर 1989) पाकिस्तान के एक कम्युनिस्ट कार्यकर्ता और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान क्रांतिकारी थे । दादा अमीर हैदर खान का जन्म 1900 में रावलपिंडी जिले के कल्लर सैयदान तहसील के सालियाह उमर खान यूनियन काउंसिल समोटे नामक एक सुदूर गांव में हुआ था । वह कम उम्र में ही अनाथ हो गए थे - दोनों माता-पिता को खो दिया, फिर उन्हें मदरसे में डाल दिया गया । वह 14 साल की उम्र में अपने गांव से भाग गए। 1914 में, वह ब्रिटिश मर्चेंट नेवी में शामिल हो गए और एक जहाज पर कोयला-लड़के के रूप में बॉम्बे के तट को छोड़ दिया । बाद में उन्होंने 1918 में यूनाइटेड स्टेट्स मर्चेंट मरीन में स्थानांतरित कर दिया । बाद में यह स्पष्ट हो गया कि वह दोनों संस्थानों में शामिल होने के लिए दुनिया भर में यात्रा करने में सक्षम थे ताकि वह कुछ व्यावहारिक सीख सकें और दुनिया के कुछ पहले अनुभव प्राप्त कर सकें और खुद वास्तविक दुनिया की परिस्थितियों का न्याय कर सकें। नतीजतन, उन्होंने डॉकयार्ड और गोदामों में काम किया और बहुत सड़क-चालक बन गए। इस समय उनकी मुलाकात आयरिश राष्ट्रवादी जोसेफ मुलकेन से हुई, जिन्होंने उन्हें ब्रिटिश विरोधी राजनीतिक विचारों से परिचित कराया। उनके संस्मरणों के अनुसार, अमेरिका में रहने के दौरान, दक्षिणी इलिनोइस में विमान उड़ाना सीखने का प्रयास करते समय उन्हें नस्लवादी उत्पीड़न और अलगाववादी रवैये का सामना करना पड़ा। 1920 में, उन्होंने न्यूयॉर्क शहर में भारतीय राष्ट्रवादियों और ग़दर पार्टी के सदस्यों से मुलाकात की । उन्होंने दुनिया भर के समुद्री बंदरगाहों पर भारतीयों को 'ग़दर की गूंज' वितरित करना शुरू किया। प्रथम विश्व युद्ध के बाद की बड़ी हड़ताल के बाद उन्हें जहाज से बर्खास्त कर दिया गया और उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका के अंदर काम किया और यात्रा की । फिर वे एक राजनीतिक कार्यकर्ता बन गए, उन्होंने एंटी-इंपीरियलिस्ट लीग और वर्कर्स पार्टी (संयुक्त राज्य अमेरिका) के साथ काम किया, जिसने उन्हें यूनिवर्सिटी ऑफ़ द टॉयलर्स ऑफ़ द ईस्ट में अध्ययन करने के लिए सोवियत संघ भेजा । 1928 में, उन्होंने मॉस्को में विश्वविद्यालय का कोर्स पूरा किया और 1928 में बॉम्बे पहुंचे । उन्होंने एसवी घाटे , एसए डांगे , पीसी जोशी , बीटी रणदिवे , बेंजामिन फ्रांसिस ब्रैडली और बॉम्बे के कुछ अन्य वरिष्ठ कम्युनिस्टों के साथ संपर्क स्थापित किया । उन्होंने बॉम्बे में कपड़ा उद्योग के श्रमिकों को संगठित करना भी शुरू कर दिया। मार्च 1929 में, वह मेरठ षडयंत्र केस में गिरफ्तारी से बच निकले और भारत की स्थिति के बारे में कम्युनिस्ट इंटरनेशनल (कॉमिन्टर्न) को सूचित करने और उनकी सहायता लेने के लिए मास्को चले गए । दादा ने इंटरनेशनल ट्रेड यूनियन (प्रोफिन्टर्न) कांग्रेस में प्रेसीडियम के सदस्य के रूप में भाग लिया और 1930 में CPSU की 16वीं कांग्रेस में भी भाग लिया। बंबई लौटने के बाद, उन्हें गिरफ्तारी से बचने के लिए मद्रास भेज दिया गया क्योंकि वे अभी भी मेरठ षडयंत्र मामले में वांछित थे। उन्होंने शंकर के छद्म नाम से पूरे दक्षिण भारत में राजनीतिक कार्य किया। उन्होंने यंग वर्कर्स लीग की भी स्थापना की । 1932 में, उन्हें भगत सिंह तिकड़ी की प्रशंसा करने वाला एक पर्चा निकालने के लिए अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया और मुजफ्फरगढ़ जेल भेज दिया, फिर अंबाला जेल में स्थानांतरित कर दिया गया। उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों ने सबसे खतरनाक व्यक्ति करार दिया था। जब उन्हें 1938 में रिहा किया गया, तो उन्होंने बॉम्बे में सार्वजनिक राजनीतिक गतिविधि शुरू की। कांग्रेस के वामपंथी विंग ने उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) की बॉम्बे प्रांतीय समिति के लिए चुना। उन्होंने बिहार के रामगढ़ में INC की वार्षिक आम बैठक में भी भाग लिया । 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ने पर उन्हें फिर से गिरफ़्तार कर लिया गया । बाद में उन्हें नासिक जेल में रखा गया जहाँ दादा ने अपने संस्मरणों का पहला भाग लिखा। 1942 में, वे पीपुल्स वॉर थीसिस के बाद रिहा होने वाले अंतिम कम्युनिस्ट थे। उन्होंने मुंबई में ट्रेड यूनियन के लिए काम किया। उन्होंने 1944 में नटराकोना (मायमनसिंह) अखिल भारतीय किसान सभा में भी भाग लिया। दादा 1945 में पाकिस्तान की आज़ादी की पूर्व संध्या पर स्थानीय पार्टी के काम को देखने के लिए रावलपिंडी पहुंचे । उन्होंने पाकिस्तान सरकार द्वारा वांछित होने पर छिपने के लिए पूरे पाकिस्तान में एक नेटवर्क का गठन किया । लाहौर उनकी गतिविधियों का केंद्र था। लाहौर में, वे हुसैन बख्श मलंग नामक एक सूफी संत के घर में शरण लेते थे। उन्होंने 1947 में स्वतंत्रता दंगों के दौरान हिंदू परिवारों को सुरक्षित रूप से वापस भेजा । 1949 में, दादा को सांप्रदायिक अधिनियम के तहत रावलपिंडी में पार्टी कार्यालय से गिरफ्तार किया गया और 15 महीने बाद रिहा कर दिया गया। हसन नासिर और अली इमाम के बचाव के आयोजन के लिए उन्हें रावलपिंडी कचहरी (रावलपिंडी अदालत) से कुछ महीनों के बाद फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। जब रावलपिंडी षडयंत्र मामले के परिणामस्वरूप पाकिस्तानी सरकार ने ऑपरेशन शुरू किया , तो दादा को लाहौर किले में ले जाया गया और फैज अहमद फैज , फजल दीन कुर्बान, दादा फिरोज-उद-दीन मंसूर, सैयद कसवर गरदेजी, हैदर बक्स जतोई , सोबो गायन चंदानी, चौधरी मुहम्मद अफजल, जहीर कश्मीरी, हमीद अख्तर आदि के साथ कैद कर लिया गया । पाकिस्तान टाइम्स और दैनिक इमरोज में अभियान के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया , लेकिन उनके गांव तक ही सीमित रखा गया। 1958 में जब जनरल अयूब खान ने पाकिस्तान में मार्शल लॉ लागू किया तो दादा को गिरफ्तार कर लिया गया और अफजल बंगश , काका सनोबर और अन्य साथियों के साथ रावलपिंडी जेल में नजरबंद कर दिया गया। दादा ने 1970 और 1980 के दशक में अपने जीवन के अंतिम वर्ष रावलपिंडी में बिताए, लेकिन जब भी उन्हें समय मिलता, वे अपने घनिष्ठ मित्र हुसैन बख्श मलंग से मिलने लाहौर चले जाते थे। उन्होंने अपनी ज़मीन दान की और अपने श्रम से अपने गाँव में लड़कों के लिए एक हाई स्कूल बनवाया, फिर लड़कियों के लिए एक स्कूल बनवाया और साथ ही एक विज्ञान प्रयोगशाला भी बनवाई। बाद में इन स्कूलों को सरकार ने मंज़ूरी दे दी और सरकारी नियंत्रण में रख दिया। दिसंबर 2008 में कराची में इस क्रांतिकारी की भूमिका की प्रशंसा करने के लिए एक सेमिनार आयोजित किया गया था। सेमिनार में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि कैसे दादा अमीर हैदर खान ने दुनिया भर में कम्युनिस्ट क्रांति फैलाने में भूमिका निभाई, जबकि उन्हें और उनके जैसे अन्य कम्युनिस्टों को पाकिस्तान की इतिहास की किताबों से प्रतिबंधित कर दिया गया है। यह सेमिनार कराची विश्वविद्यालय के 'पाकिस्तान अध्ययन केंद्र' द्वारा आयोजित किया गया था।

Friday, 5 January 2024

अब भी अंध भक्त्त चुप रहेगें चीनी प्रतिनिधिमंडल ने किया संघ मुख्यालय मे

अब भी अंध भक्त्त चुप रहेगें चीनी प्रतिनिधिमंडल ने किया संघ मुख्यालय मे हाल ही में चीन के राजनयिकों के एक समूह ने आरएसएस के नागपुर के स्मृति मंदिर का दौरा किया। दिलचस्प बात यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बीजिंग के विस्तारवादी नीति की अक्सर आलोचना करता आ रहा है। यह संभवतः किसी भी स्तर के चीनी राजनयिकों के प्रतिनिधिमंडल द्वारा पहली यात्रा है। स्मृति मंदिर में आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार के एक स्मारक में प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने श्रद्धांजलि अर्पित की। यह तमाम राजनयिक ज्यादातर दिल्ली और मुंबई के चीन के मुंबई के विविध दूतावास एवं कॉन्सुलेट में तैनात मध्य-रैंकिंग अधिकारी थे। वे आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत से नहीं मिल सके जो उपराजधानी में नहीं थे। तमाम राजनयिकों को एक वरिष्ठ आरएसएस पदाधिकारी ने रिसीव किया जिसने उन्हें परिसर में ले जाकर विविध स्मारकों एवं उनके महत्त्व से अवगत कराया।

Wednesday, 22 December 2021

चित्रकूट…गौशाला में गाय के शवों को नोच रहे कुत्ते


 चित्रकूट…गौशाला में गाय के शवों को नोच रहे कुत्ते:भरतपुर गौशाला में 2 गायों की मौत, सर्दी और भूख-प्यास से मरने की आशंका

ग्रामीणों के मुताबिक, यहां गायों के खाने के लिए पर्याप्त भोजन की व्यवस्था नहीं है। - 

ग्रामीणों के मुताबिक, यहां गायों के खाने के लिए पर्याप्त भोजन की व्यवस्था नहीं है।

चित्रकूट की गौशाला में गायों के शवों को कुत्ते नोच रहे हैं। बताया जा रहा है कि सर्दी और भूख-प्यास के चलते 2 गायों की मौत हुई है। मामला भारतपुर ग्राम पंचायत गौशाला का है। ग्रामीणों के मुताबिक, यहां गायों के खाने के लिए पर्याप्त भोजन की व्यवस्था नहीं है।


ठंड से बचाव के लिए गौशाला में सही ढंग की व्यवस्थाएं नहीं है। भूख-प्यास और ठंड के चलते गोवंश मर रहे हैं। गायों की मौत के बाद कोई भी जिम्मेदार नहीं मौके पर नहीं आए। गौशाला में कागजाें में तो 160 गाय हैं, लेकिन असल में 80 गाय हैं।

कर्मचारियों को वेतन भी नहीं मिल रह

ग्राम प्रधान गुलपतिया देवी और सचिव विनोद सिंह ने बताया कि हमारे गौशाला की कोई भी गोवंश नहीं मरी हैं। यहां खाने-पीने की पर्याप्त व्यवस्था है। ठंडी से बचने के लिए भी व्यवस्थाएं की गई हैं। वहीं, गौशाला के चरवा रामहित ने बताया कि यह गाय ठंडी के कारण मर गई हैं। गौशाला में 4 कर्मचारी लगे हैं, इनकाे समय से वेतन भी नहीं मिलता है।

Saturday, 5 December 2020

असाधारण कम्युनिस्ट योद्धा भगवती चरण पाणिग्रही -भगवती चरण पाणिग्रही

 

 भगवती चरण पाणिग्रही मात्र 24वर्ष की आयु तक जीवित रहे लेकिन उड़ीसा  तथा  देश  के  राष्ट्रीय  एवं कम्युनिस्ट आंदोलन पर अपनी अमिट छाप छोड़ गए। उनका जन्म 1 फरवरी 1908 को पुरी में हुआ था। उनकी आरंभिक  पढ़ाई-लिखाई  घर  में  ही हुई। उनके सबसे बड़े भाई कांग्रेस थेऔर दूसरे भाई कालंदीचरण पाणिग्रही भारत  के  प्रगतिशील  लेखकों  में  सेएक थे।उनकी  शुरू  की  स्कूली  पढ़ाई सत्यवादी  राष्ट्रीय  स्कूल  में  हुई। उत्कलमणि और उनके सहयोगियों ने उनमें  राष्ट्रीय  भावनाएं  भरीं।‘उत्कलमणि’ गोपबंधु दास को कहतेहैं। वे असाधारण साम्राज्यवाद विरोधी राष्ट्रीय  नेता  थे।  उनके  नाम  से राजनीति में एक नए युग को "सत्यवादीयुग’ कहा जाता है। उन्होंने राष्ट्रीय स्कूल की स्थापना की और विद्यार्थियों को राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाया।भगवती की आगे की पढ़ाई कटक में हुई जहां से उन्होंने ग्रेजुएशन किया।उनकी पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पटना से हुई।उनके  पिता  का  नाम  स्वप्नेवर पाणिग्रही  था  जो  पुरी  जिला  के बालीपटना  के  विश्वनाथपुर  के  थे।आरंभ में उनकी पढ़ाई सत्यावादी स्कूलमें  हुई  थी  जिसे  गोपबंधु,  नीलकंठ,क्रुपासिंह, हरिहर तथा अन्य ने स्थापितकिया था।जब  भगवती  पुरी  जिला  स्थित स्कूल में पढ़ते थे तो उनका संपर्क बंगाल के क्रांतिकारी सतीन्द्रनाथ गुहा के साथ हुआ। इस प्रकार भगवती ने क्रांतिकारी विचार अपनाए।भगवती  आरंभ  में  गांधीजी  की विचारधारा से प्रभावित हुए। बाद में वेकांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ;सी.एस.पी. में शामिल हो गए। उन्हें प्रादेशिक कांग्रेसके कार्यालय में काम करने का निमंत्रण दिया गया। कुछ समय तक उन्होंने कांग्रेस ऑफिस में ऑफिस सेक्रेटरीके तौर पर काम किया। वहां उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इतिहास के  प्रथम  भाग  का  अनुवाद  किया।लेकिन कांग्रेस दफ्तर में उनका ज्यादा मन नहीं लगा। वे  प्रादेशिक  सी.एस.पी.;कांग्रेससोशलिस्ट पार्टी के महासचिव बन गए। सी.एस.पी. में रहते हुए उन्होंने कम्युनिस्ट  मैनिफेस्टो  ;कम्युनिस्ट घोषणापत्रका अनुवाद किया।  उड़ीसा के कम्युनिस्ट आंदोलन के संस्थापक एस.पी. की ओर से ‘कृषक’ नामक साप्ताहिक  प्रकाशित  होता  था।भगवतीचरण पाणिग्रही इसके सम्पादक बनाए गए। गुरूचरण इसके मैनेजिंग एडिटर थे।नवयुग साहित्य संसद नवंबर 1935 में भगवती चरण पाणिग्रही ने अनन्त पटनायक के साथ मिलकर  ‘नवयुग  साहित्य  संसद’नमक  साहित्यिक  संगठन  का  गठन किया। जल्द ही यह सुप्रसिद्ध  हो गया और आधुनिक उड़ीसा साहित्य में नए विचारों के प्रसार में अपनी जगह बना ली।  1936  में  उन्होंने  आधुनिक नामक  एक  मासिक  पत्रिका  का संपादन किया।भगवती ने अपने संक्षिप्त जीवनमें  करीब  एक  दर्जन  भर  कहानियां लिखीं।  इनमें  एक  कहानी  थी‘शिकार’।   यह   उड़ीसा   के आदिवासियों की कहानी थी जिसका शोषण अंग्रेज किया करते और जिनका विद्रोह  उन्होंने  कुचलने  का  प्रयत्न किया।   सुप्रसिद्ध  फिल्म  डायरेक्टर मृणाल सेन ने 1976 में इस कहानीके आधार पर ‘मृगया’ नामक फिल्म बनाई जो काफी चर्चित हुई।इसके अलावा उन्होंने उड़ीसा में विश्व  का  इतिहास  लिखा  जो अप्रकाशित रहा। इससे उनके व्यापक ज्ञान का पता चलता है।आधुनिक मासिक पत्रिका को यही श्रेय  जाता  है  कि  उसने  मार्क्सवादी विचारधारा के आधार पर साहित्य को नई  मंजिल  में  पहुंचाया  जिसे‘सत्यवादी युग’ कहा गया।रजवाड़ों के खिलाफ संघर्ष उस वक्त उड़ीसा अत्यंत पिछड़ाप्रदेश  था  जिसमें  ढेर-सारे राजे-रजवाड़े भी थेः जैसे धेनकनाल,नीलगिरी, रनपुर, नयागढ़ दासपल्ला,इत्यादि। 21 रजवाड़े, ‘ईस्टर्न स्टेट्स एजेंसी’ के तहत थे जो एक तरह का ब्रिटिश एवं सामंती शोषण का भयावह रूप था। समूचे उड़ीसा में कुछ चावल मिलों को छोड़ एक भी उद्योग नहीं था।  छह  जिलों  में  सामंतवाद  काबोलबाला  था  और  राजनैतिक आंदोलन तेज था। उड़ीसा प्रदेश का एक बड़ा हिस्सा मद्रास प्रेसीडेंसी में था।  उड़ीसा  तत्कालीन  बिहार  एवं उड़ीसा    प्रदेश    का    एक राजनैतिक-प्रशासनिक अंग था।सामंती  जमींदारों,  मकदमों,गांतियाओं, लखराजदारों, मस्तादारों तथा अन्य प्रकार के सामंतों का उड़ीसा में बोलबाला था।1938-39  में  धेनकनाल रजवाड़े  में  सत्याग्रह  संगठित  किया गया  जिसमें  वालंटियर  भेजे  गए।भगवती चरण ने उनके एक दल का नेतृत्व किया। उन्होंने उन्गल में स्थिति बुधापांका कैम्प, धेनकनाल राज्य, से गतिविधियों  का  निर्देशन  किया।‘रणभेरी’ नाम से हैं डबिलों का वितरण भी उन्होंने करवाया। पुलिस के आई.जी. ने अपनी में गुप्त रिपोर्टों में उन्हें क्रांतिकारी और कम्युनिस्ट बताया।उड़ीसा में कम्युनिस्ट पार्टीका गठन भगवती  चरण  पटनायक  ने गुरूचरण  पटनायक  और  प्राणनाथ पटनायक के साथ मिलकर 1 अप्रैल 1936 को उड़ीसा में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की। वे सी.एस.पी. में रहते हुए ही कम्युनिस्ट बन चुके थे। सी.एस.पी. में काफी बड़ा कम्युनिस्ट ग्रुप बन चुका था।इसी समय एम.आर. मसानी ने एक पुस्तक लिखीः ‘‘कम्युनिस्ट प्लॉटअगेन्स्ट सी.एस.पी. ;‘सी.एस.पी. केखिलाफ कम्युनिस्ट षड्यंत्र’ । इसमें ब्रिटिश जासूसी तंत्र की रिपोर्टों का इस्तेमाल किया गया। इसमें बताया गया  कि  सी.एस.पी.  के  40उच्च-स्तरीय  सदस्यों  में  34‘भगवती  की  सी.पी.आई.’  के  साथ हैं।भगवती  उड़ीसा  में  भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रथम सचिव थे।अप्रैल  1938  में  वे  बंबई  पार्टी हेडक्वार्टर  गए।  उन्हेंने  सी.एस.पी.द्वारा  आयोजित  ‘समर  स्कूल’;ग्रीष्मकालीन स्कूल में भाग लिया।वापस  लौटकर  उन्होंने  युवाओं  को प्रशिक्षित किया और ‘नेशनल फ्रंट’प्रकाशनों का प्रचार किया। उड़ीसा में असाधारण कम्युनिस्टों का एक ग्रुप उनके  गिर्द  तैयार  हो  गयाः  अनन्तपटनायक,  विश्वनाथ  पासायत,विजयचंद्र  दास,  अशोक  दास,बैद्यनाथ  दास,  इ.।  उनमें  से  कई क्रांतिकारियों के ‘युगांतर’ दल से आए थे।अप्रैल 1940 में भगवती ने सी.एस.पी. से इस्तीफा दे दिया। दिसंबर1940 में उन्हें उड़ीसा कम्युनिस्ट केस में बैद्यनाथ दास और गुरूचरणपटनायक के साथ गिरफ्तार कर लिया गया  और  डेढ़  साल  की  कड़ी  कैदकी सजा सुनाई गई। 1932 में गुरू चरण पटनायक और  प्राणनाथ  पटनायक  काशी विद्यापीठ गए। वे दोनों और भगवती कलकत्ता  में  कम्युनिस्ट  पार्टी  के सदस्य बन गए। इस प्रकार उड़ीसा की कम्युनिस्ट पार्टी का प्रथम सेल बना। भगवती इसके सचिव बन गए।1935  में  भगवती  अखिल उत्कल कृषक संघ की कार्यकारिणी के  सदस्य  बनाए  गए।  वे  काकोरी षड्यंत्र केस के राजकुमार सिंघ के साथ भी संपर्क में थे।अपने युवाकाल में भगवती यूथ लीग आंदोलन से भी जुड़े रहे।दिसंबर 1936 में जवाहरलाल नेहरू कटक आए और नवयुग साहित्य संसद  को  संबोधित  किया।  संसद प्रगतिशील लेखक संघ से भी जुड़ी रही।जयप्रकाश  नारायण  ने  उड़ीसा आकर सी.एस.पी. को भंग कर दिया।भगवती  पूरी  तरह  कम्युनिस्ट  पार्टी संगठित करने में लग गए। गैर-कानूनी कम्युनिस्ट   पार्टी   की   एक साइक्लोस्टाइल  पत्रिका  निकला करती। इसका नाम था अग्गेचाल।विद्यार्थी और किसान बड़ी संख्या में आए। पार्टी के किसानों, खेत मजदूरों,हरिजनों, आदिवासियों, इ. को संगठित करना आरंभ किया।उड़ीसा में कम्युनिस्ट षड्यंत्र केस11 जुलाई 1940 को आरंभ किया गया। भगवती और उनके सहयोगियोंपर मुकदमा जेल के अंदर ही चलाया गया। वास्तव में लगभग संपूर्ण नेतृत्व गिरफ्तार कर लिया गया। फिर भी पार्टी आगे बढ़ती रही। कांग्रेस के लोगोंसे  भी  काफी  समर्थन  प्राप्त  हुआ। मुकदमे  की  विस्तृत  जानकारी अखबारों में प्रकाशित होती गई। लोगों में हमदर्दी और सहानुभूति बढ़ी। रिहा होने के बाद भगवती काफी सक्रिय  हो  गए।  उन्होंने  पार्टी  को पुनर्गठित किया, पार्टी क्लासें संगठित कीं, और विभिन्न जिलों में पार्टी यूनिटें गठित  कीं।  1942-43  में  सारे उड़ीसा में घूमकर गांवों के गरीबों को उन्होंने संगठित किया। 22 जून 1941को नाजी जर्मनी द्वारा सोवियत संघ पर आक्रमण केबाद स्थिति में गुणात्मक परिवर्तन होगया। इन नई परिस्थितियों में भगवतीचरण पाणिग्रही ने पार्टी सचिव के रूपमें  बड़ी  सूझ-बूझ  का  परिचय  देते हुए पार्टी को आगे बढ़ाया। पार्टी की पत्रिका  साप्ताहिक  मुक्ति युद्ध में निरंतर प्रचार अभियान चलाया।इस  बीच  1943  में  उड़ीसा,बंगाल, बिहार तथा अन्य जगहों पर बहुत  भयंकर  अकाल  पड़ा।  अकेले उड़ीसा में 40 हजार से भी अधिक लोगों की मृत्यु हो गई। भगवती के नेतृत्व  में  उड़ीसा  में  बड़े  पैमाने  पर पार्टी और जन संगठनों द्वारा राहत कार्य संगठित किया गया।इसी राहत कार्य के दौरान भगवती को हैजा हो गया। इस बीमारी से उनकी मृत्यु 23 अक्टूबर 1943 को हो गई।भुवनेश्वर  में  भगवती  चरण पाणिग्रही के नाम से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी  राज्य का कार्यालय ‘भगवती भवन " का निर्माण किया गया है.

-अनिल राजिमवाले 

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