
भगवती चरण पाणिग्रही मात्र 24वर्ष की आयु तक जीवित रहे लेकिन उड़ीसा तथा देश के राष्ट्रीय एवं कम्युनिस्ट आंदोलन पर अपनी अमिट छाप छोड़ गए। उनका जन्म 1 फरवरी 1908 को पुरी में हुआ था। उनकी आरंभिक पढ़ाई-लिखाई घर में ही हुई। उनके सबसे बड़े भाई कांग्रेस थेऔर दूसरे भाई कालंदीचरण पाणिग्रही भारत के प्रगतिशील लेखकों में सेएक थे।उनकी शुरू की स्कूली पढ़ाई सत्यवादी राष्ट्रीय स्कूल में हुई। उत्कलमणि और उनके सहयोगियों ने उनमें राष्ट्रीय भावनाएं भरीं।‘उत्कलमणि’ गोपबंधु दास को कहतेहैं। वे असाधारण साम्राज्यवाद विरोधी राष्ट्रीय नेता थे। उनके नाम से राजनीति में एक नए युग को "सत्यवादीयुग’ कहा जाता है। उन्होंने राष्ट्रीय स्कूल की स्थापना की और विद्यार्थियों को राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाया।भगवती की आगे की पढ़ाई कटक में हुई जहां से उन्होंने ग्रेजुएशन किया।उनकी पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पटना से हुई।उनके पिता का नाम स्वप्नेवर पाणिग्रही था जो पुरी जिला के बालीपटना के विश्वनाथपुर के थे।आरंभ में उनकी पढ़ाई सत्यावादी स्कूलमें हुई थी जिसे गोपबंधु, नीलकंठ,क्रुपासिंह, हरिहर तथा अन्य ने स्थापितकिया था।जब भगवती पुरी जिला स्थित स्कूल में पढ़ते थे तो उनका संपर्क बंगाल के क्रांतिकारी सतीन्द्रनाथ गुहा के साथ हुआ। इस प्रकार भगवती ने क्रांतिकारी विचार अपनाए।भगवती आरंभ में गांधीजी की विचारधारा से प्रभावित हुए। बाद में वेकांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ;सी.एस.पी. में शामिल हो गए। उन्हें प्रादेशिक कांग्रेसके कार्यालय में काम करने का निमंत्रण दिया गया। कुछ समय तक उन्होंने कांग्रेस ऑफिस में ऑफिस सेक्रेटरीके तौर पर काम किया। वहां उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इतिहास के प्रथम भाग का अनुवाद किया।लेकिन कांग्रेस दफ्तर में उनका ज्यादा मन नहीं लगा। वे प्रादेशिक सी.एस.पी.;कांग्रेससोशलिस्ट पार्टी के महासचिव बन गए। सी.एस.पी. में रहते हुए उन्होंने कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो ;कम्युनिस्ट घोषणापत्रका अनुवाद किया। उड़ीसा के कम्युनिस्ट आंदोलन के संस्थापक एस.पी. की ओर से ‘कृषक’ नामक साप्ताहिक प्रकाशित होता था।भगवतीचरण पाणिग्रही इसके सम्पादक बनाए गए। गुरूचरण इसके मैनेजिंग एडिटर थे।नवयुग साहित्य संसद नवंबर 1935 में भगवती चरण पाणिग्रही ने अनन्त पटनायक के साथ मिलकर ‘नवयुग साहित्य संसद’नमक साहित्यिक संगठन का गठन किया। जल्द ही यह सुप्रसिद्ध हो गया और आधुनिक उड़ीसा साहित्य में नए विचारों के प्रसार में अपनी जगह बना ली। 1936 में उन्होंने आधुनिक नामक एक मासिक पत्रिका का संपादन किया।भगवती ने अपने संक्षिप्त जीवनमें करीब एक दर्जन भर कहानियां लिखीं। इनमें एक कहानी थी‘शिकार’। यह उड़ीसा के आदिवासियों की कहानी थी जिसका शोषण अंग्रेज किया करते और जिनका विद्रोह उन्होंने कुचलने का प्रयत्न किया। सुप्रसिद्ध फिल्म डायरेक्टर मृणाल सेन ने 1976 में इस कहानीके आधार पर ‘मृगया’ नामक फिल्म बनाई जो काफी चर्चित हुई।इसके अलावा उन्होंने उड़ीसा में विश्व का इतिहास लिखा जो अप्रकाशित रहा। इससे उनके व्यापक ज्ञान का पता चलता है।आधुनिक मासिक पत्रिका को यही श्रेय जाता है कि उसने मार्क्सवादी विचारधारा के आधार पर साहित्य को नई मंजिल में पहुंचाया जिसे‘सत्यवादी युग’ कहा गया।रजवाड़ों के खिलाफ संघर्ष उस वक्त उड़ीसा अत्यंत पिछड़ाप्रदेश था जिसमें ढेर-सारे राजे-रजवाड़े भी थेः जैसे धेनकनाल,नीलगिरी, रनपुर, नयागढ़ दासपल्ला,इत्यादि। 21 रजवाड़े, ‘ईस्टर्न स्टेट्स एजेंसी’ के तहत थे जो एक तरह का ब्रिटिश एवं सामंती शोषण का भयावह रूप था। समूचे उड़ीसा में कुछ चावल मिलों को छोड़ एक भी उद्योग नहीं था। छह जिलों में सामंतवाद काबोलबाला था और राजनैतिक आंदोलन तेज था। उड़ीसा प्रदेश का एक बड़ा हिस्सा मद्रास प्रेसीडेंसी में था। उड़ीसा तत्कालीन बिहार एवं उड़ीसा प्रदेश का एक राजनैतिक-प्रशासनिक अंग था।सामंती जमींदारों, मकदमों,गांतियाओं, लखराजदारों, मस्तादारों तथा अन्य प्रकार के सामंतों का उड़ीसा में बोलबाला था।1938-39 में धेनकनाल रजवाड़े में सत्याग्रह संगठित किया गया जिसमें वालंटियर भेजे गए।भगवती चरण ने उनके एक दल का नेतृत्व किया। उन्होंने उन्गल में स्थिति बुधापांका कैम्प, धेनकनाल राज्य, से गतिविधियों का निर्देशन किया।‘रणभेरी’ नाम से हैं डबिलों का वितरण भी उन्होंने करवाया। पुलिस के आई.जी. ने अपनी में गुप्त रिपोर्टों में उन्हें क्रांतिकारी और कम्युनिस्ट बताया।उड़ीसा में कम्युनिस्ट पार्टीका गठन भगवती चरण पटनायक ने गुरूचरण पटनायक और प्राणनाथ पटनायक के साथ मिलकर 1 अप्रैल 1936 को उड़ीसा में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की। वे सी.एस.पी. में रहते हुए ही कम्युनिस्ट बन चुके थे। सी.एस.पी. में काफी बड़ा कम्युनिस्ट ग्रुप बन चुका था।इसी समय एम.आर. मसानी ने एक पुस्तक लिखीः ‘‘कम्युनिस्ट प्लॉटअगेन्स्ट सी.एस.पी. ;‘सी.एस.पी. केखिलाफ कम्युनिस्ट षड्यंत्र’ । इसमें ब्रिटिश जासूसी तंत्र की रिपोर्टों का इस्तेमाल किया गया। इसमें बताया गया कि सी.एस.पी. के 40उच्च-स्तरीय सदस्यों में 34‘भगवती की सी.पी.आई.’ के साथ हैं।भगवती उड़ीसा में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रथम सचिव थे।अप्रैल 1938 में वे बंबई पार्टी हेडक्वार्टर गए। उन्हेंने सी.एस.पी.द्वारा आयोजित ‘समर स्कूल’;ग्रीष्मकालीन स्कूल में भाग लिया।वापस लौटकर उन्होंने युवाओं को प्रशिक्षित किया और ‘नेशनल फ्रंट’प्रकाशनों का प्रचार किया। उड़ीसा में असाधारण कम्युनिस्टों का एक ग्रुप उनके गिर्द तैयार हो गयाः अनन्तपटनायक, विश्वनाथ पासायत,विजयचंद्र दास, अशोक दास,बैद्यनाथ दास, इ.। उनमें से कई क्रांतिकारियों के ‘युगांतर’ दल से आए थे।अप्रैल 1940 में भगवती ने सी.एस.पी. से इस्तीफा दे दिया। दिसंबर1940 में उन्हें उड़ीसा कम्युनिस्ट केस में बैद्यनाथ दास और गुरूचरणपटनायक के साथ गिरफ्तार कर लिया गया और डेढ़ साल की कड़ी कैदकी सजा सुनाई गई। 1932 में गुरू चरण पटनायक और प्राणनाथ पटनायक काशी विद्यापीठ गए। वे दोनों और भगवती कलकत्ता में कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बन गए। इस प्रकार उड़ीसा की कम्युनिस्ट पार्टी का प्रथम सेल बना। भगवती इसके सचिव बन गए।1935 में भगवती अखिल उत्कल कृषक संघ की कार्यकारिणी के सदस्य बनाए गए। वे काकोरी षड्यंत्र केस के राजकुमार सिंघ के साथ भी संपर्क में थे।अपने युवाकाल में भगवती यूथ लीग आंदोलन से भी जुड़े रहे।दिसंबर 1936 में जवाहरलाल नेहरू कटक आए और नवयुग साहित्य संसद को संबोधित किया। संसद प्रगतिशील लेखक संघ से भी जुड़ी रही।जयप्रकाश नारायण ने उड़ीसा आकर सी.एस.पी. को भंग कर दिया।भगवती पूरी तरह कम्युनिस्ट पार्टी संगठित करने में लग गए। गैर-कानूनी कम्युनिस्ट पार्टी की एक साइक्लोस्टाइल पत्रिका निकला करती। इसका नाम था अग्गेचाल।विद्यार्थी और किसान बड़ी संख्या में आए। पार्टी के किसानों, खेत मजदूरों,हरिजनों, आदिवासियों, इ. को संगठित करना आरंभ किया।उड़ीसा में कम्युनिस्ट षड्यंत्र केस11 जुलाई 1940 को आरंभ किया गया। भगवती और उनके सहयोगियोंपर मुकदमा जेल के अंदर ही चलाया गया। वास्तव में लगभग संपूर्ण नेतृत्व गिरफ्तार कर लिया गया। फिर भी पार्टी आगे बढ़ती रही। कांग्रेस के लोगोंसे भी काफी समर्थन प्राप्त हुआ। मुकदमे की विस्तृत जानकारी अखबारों में प्रकाशित होती गई। लोगों में हमदर्दी और सहानुभूति बढ़ी। रिहा होने के बाद भगवती काफी सक्रिय हो गए। उन्होंने पार्टी को पुनर्गठित किया, पार्टी क्लासें संगठित कीं, और विभिन्न जिलों में पार्टी यूनिटें गठित कीं। 1942-43 में सारे उड़ीसा में घूमकर गांवों के गरीबों को उन्होंने संगठित किया। 22 जून 1941को नाजी जर्मनी द्वारा सोवियत संघ पर आक्रमण केबाद स्थिति में गुणात्मक परिवर्तन होगया। इन नई परिस्थितियों में भगवतीचरण पाणिग्रही ने पार्टी सचिव के रूपमें बड़ी सूझ-बूझ का परिचय देते हुए पार्टी को आगे बढ़ाया। पार्टी की पत्रिका साप्ताहिक मुक्ति युद्ध में निरंतर प्रचार अभियान चलाया।इस बीच 1943 में उड़ीसा,बंगाल, बिहार तथा अन्य जगहों पर बहुत भयंकर अकाल पड़ा। अकेले उड़ीसा में 40 हजार से भी अधिक लोगों की मृत्यु हो गई। भगवती के नेतृत्व में उड़ीसा में बड़े पैमाने पर पार्टी और जन संगठनों द्वारा राहत कार्य संगठित किया गया।इसी राहत कार्य के दौरान भगवती को हैजा हो गया। इस बीमारी से उनकी मृत्यु 23 अक्टूबर 1943 को हो गई।भुवनेश्वर में भगवती चरण पाणिग्रही के नाम से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी राज्य का कार्यालय ‘भगवती भवन " का निर्माण किया गया है.
-अनिल राजिमवाले