पी. जीवानन्दम का जन्म 21 जून1907 को तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के भूथापन्डी गांव में हुआ था।उनके पिता पट्टणपिल्लै गरीब किसान थे। उनकी माता का नाम उमाइ अम्मईथा। वे ‘जीवा’ के नाम से पुकारे जाते थे और उनके माता-पिता ने उनकानाम मूक्कांडी रखा था। उन्हें सोरी मुथुभी कहा जाता था जो उनका कुलदेवताथा।जीवा की प्राथमिक शिक्षा भूथापन्डीइंगलिश मिड्ल स्कूल में हुई। वे ऐसेसमय में रह रहे थे जब जाति-आधारितकठोर नियम व्याप्त थे। उन्होंने घोरछूआछूत अपनी आंखों से देखा जबदलित मित्रों को मंदिरों में प्रवेश नहींमिलता था।पढ़ाई के दौरान ही वे विद्यार्थीगतिविधियों में शामिल हो चुके थे।उन्होंने स्टूडेंट सोशल सर्विस लीग, ड्रामाग्रुप, लाइब्रेरी और खेलकूद संबध्ांगतिविधियों में हिस्सा लिया। उन्होंनेविद्यार्थी जीवन के दौरान ‘स्वतंत्र वीरन’नामक उपन्यास की रचना की। उन्होंने खादी और आजादी के आंदोलन सैंकड़ों गीतों की रचना की। उन्होंने दलितमित्रों को जति-विरोधी आंदोलनें में उतारा।महात्मा गांधी के आंदोलन का जीवापर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने 1924के वाइकोम सत्याग्रह में सक्रिय हिस्सा लिया। यह आंदोलन भूतपूर्व त्रावणकोर राज्य में हुआ था।दलितों को वाइकोम मंदिर तक जाने से रोका जाता था।सुचिन्द्रम मंदिर में भी उन्होंने ऐसा ही किया।वे राष्ट्रीय आंदोलन के महत्वपूर्णनेता वी.वी.उस. अ ̧यर के भारद्वाज आश्रम में शामिल हो गए। आश्रम में उन्होंने पाया कि भोजन के मामले में गैर-ब्राह्मण लोगों के साथ भेदभाव होता है। जीवा ने इसका तीव्र विरोध किया।उन्होंने ई.वी. रामास्वामी, डॉ. पी.वरदराजुलु नायडु तथा अन्य के साथ मिलकर इसे खत्म करने की मांग की।परिणामस्वरूप उच्च-जाति केअंध-जाति वादियों ने आश्रम ही बंद करवा दिया।जीवा तथा उनके साथियों नेरामनाड जिले में कराइकुडी के नजदीक समाज सुधारक औरकम्युनिस्ट आंदोलन के निर्माता सिरूवायाल में एक नया आश्रम खोला।इसमें राष्ट्रीय शिक्षा, रात्रि स्कूल औरकताई वर्ग आरंभ किए गए। जीवा वहां रहा करते थे। जब गांधीजी वहां आएतो उन्होंने विशेषतौर पर जीवा सेमुलाकात की।1930 में वे सी. राजगोपालाचारी के नेतृत्व में नमक सत्याग्रह में शामिलहोना चाहते थे लेकिन साथियों ने मनाकर दिया क्योंकि इससे आश्रम के काममें खलल पड़ता था।जीवा जल्द ही ‘आत्म-सम्मानआंदोलन’ में शामिल हो गए जिसका नेतृत्व पेरियार ई.वी. रामास्वामी कर रहे थे। 1930 में वे ईरोड में इसके ऐतिहासिक सम्मेलन में शामिल हो गए।वहीं सिंगारवेलु ने अपना समाजवादी कार्य प्रस्तुत किया। जीवन के लेखविभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए जैसेकुडिअरसू ;गणतंत्र, पहुथारिवु;वर्कशास्त्र, समधर्म ;समाजवाद और पुराची ;क्रांति।1931 में अंग्रेजों ने जीवा को भगत सिंह की रचना ‘‘मैं नास्तिक हूं’’के अनुवाद करने के लिए गिरफ्तार कर लिया। जेल में उनकी मुलाकात बटुकेश्वर दत्त, जीवनलाल जोशी तथा अन्य क्रांतिकारियों से हुई।जेल से रिहा होने के बाद जीवा ने ईरोड में नवजीवन सम्मेलन आयोजितकिया। इसकी अध्यक्षता जतीन्द्र नाथ दास के भाई किरणदास ने की थी।मार्क्सवाद-लेनिनवाद का प्रभाव जीवा पर मार्क्सवाद-लेनिनवाद का गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने जमींदार-विरोधी सम्मेलन आयोजित किए और इस प्रकार आंदोलन का मूलगामीकरण किया। वे सिंगारवेलु केनिरंतर संपर्क में थे। सिंगारवेलु और सकलतवाला ने पेरियार ई.वी. रामास्वामी को अध्ययन के लिए सोवियत संघ भेजने की योजना बनाई।फिर भी आंदोलन में कुछ ऐसे लोग थे जो इसे आगे बढ़ने से रोकना चाहते थे। जीवा इससे बाहर निकल आए और‘आत्मसम्मान समाजवादी पार्टी’ कीस्थापना की। इसका उद्देश्य था समाजवाद के झंडे-तले युवाओं को गोलबंद करना। इस संगठन का प्रथम सम्मेलन1938 में त्रिची में संपन्न हुआ। सम्मेलन में एस.ए. डांगे ने भाग लिया।डांगे ने सलाह दी कि पार्टी कांग्रेस में शामिल होकर काम करे। इस प्रकार उसे समाजवादियों का संयुक्त मंच बनाया जाय।1936 में भा.क.पा. की केंद्रीय समिति ने एस.वी. घाटे को प्रदेश में पार्टी के गठन के लिए भेजा। ए.एस.के., बी. श्रीनिवास राव और सुंदरै ̧या केसाथ मिलकर उन्होंने कार्य आरंभ करदिया।1936 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी;सी.एस.पी.का प्रादेशिक सम्मेलन सेलम में आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता दिनकर मेहता ने की जीवा प्रादेशिक पार्टी के महासचिव बनाए गए।सी.एस.पी. के जरिये जीवा के संपर्क कम्युनिस्टों से बनने लगे। 1936 में मद्रास प्रादेशिक एटक का गठन किया गया। जीवा इसके अध्यक्ष बनाए गएऔर पी. सुंदरैया सचिव। इसी बीच जीवा भाकपा में शामिल हो गए। इस बीच वे ए.आई.सी.सी. के सदस्य भी बनाए गए।1937 के आम चुनावों में जीवाने सारे प्रदेश की यात्रा की और जस्टिस पार्टी की साम्राज्य-परस्त नीतियों का पर्दाफाश किया। चुनावों में कांग्रेस की भारी जीत हुई।प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मजदूरों के विशाल पैमाने पर आंदोलन फूट पड़े। जीवा को गिरफ्तारकर लिया गया।इस बीच 1937 में ‘जनशक्ति’साप्ताहिक की स्थापना की गई। इस काम में जीवा के साथ एस.वी. घाटे, ए.एस.के., श्रीनिवासन राव, पी. राममूर्ति,के मुरूगेसन तथा अन्य साथी भी सक्रिय रूप से शामिल थे।जीवा एस.वी. घाटे से मिलने मंगलौर गए। लेकिन अंग्रेज ने उन्हें मिलने नहीं दिया। उन्हें 11 जनवरी 1940 को प्रदेश छोड़ने का आदेश दिया गया।उन्हें पांडिचेरी नहीं जाने दिया गया।जब वे बंबई आए तो उन्हें भायखला जेल में बंद कर दिया गया। कुछ महीनों बाद उन्हें वेल्लोर जेल भेज दिया गया।वेल्लोर जेल में जीवा की मुलाकात भाकपा के कई सारे नेताओं से हुई जिनमें घाटे भी थे। वह मार्च 1940की बात है। जेल में लगभग 150साथी थे। कई कांग्रेसी भी थे। जेल में‘कम्युनिस्ट कन्सॉलिडेशन’ कमिटि का गठन किया गया और साथ ही सबों कीदेखभाल के लिए एक कम्यून कीस्थापना की गई।1942 में सभी कम्युनिस्टों कारिहा कर दिया गया। लेकिन जीवा कोपुलिस ने फिर गिरफ्तार कर त्रावणकोर भेज दिया जहां उन्हें 6 महीने रखागया। इसके बाद उन्हें अपने गांवभूथापन्डी में नजरबंद कर दिया गया।वहां वे 1944 तक रहे। उन्हें 1945तक मद्रास प्रदेश में प्रवेश नहीं करनेदिया गया। वे 5 अक्टूबर 1945 केबाद ही ेमद्रास में प्रवेश कर पाए। वे पार्टी की प्रादेशिक कमिटि के सदस्यके तौर पर काम करते रहे।1932 से ही जीवा जन आंदोलनोंऔर जनसंगठनों में काम करते रहे हैं।उन्होंने ए.एस.के, वी. सुंदरैया तथा अन्य के साथ मिलकर लेबर प्रोटेक्शन लीग की स्थापना की। ऐसा तब जरूरी हो गया था जब 1934 में अमीर हैदर खान द्वारा गठित ‘यंग मार्क्सिक्टलीग’ पर अंग्रेजों ने पाबंदी लगा दी।लेबर प्रोटेक्शन लीग की पहल पर1935 में मद्रास में अखिल भारतीय प्रेस मजदूर सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें घाटे तथा अन्य ने भी हिस्सालिया।1937 में जीवा ने कोयम्बटूरमिल वर्कर्स यूनियन का गठन किया।यूनियन के नेतृत्व में हड़ताल संगठितकी गई जिसमें 30 हजार से भी अधिकमजदूरों ने भाग लिया।1937 में ‘सदर्न रेलवे एम्प्लाइजयूनियन’ को पुनर्गठित किया गया। इसकार्य में मुख्य पहल जीवा ने की थी।इसके सम्मेलन को जीवा के अलावामुजफ्फर अहमद, ए.एस.के. तथा अन्यने संबोधित किया। जल्द ही इसकीसदस्य संख्या बढ़कर 35 हजार तकपहुंच गई। 1946 में यूनियन केनेतृत्व में दो महीने तक लंबी हड़तालचली। इसमें कल्याण सुंदरम ने प्रमुखभूमिका अदा की।जीवानन्दम ने मदुरै के कपड़ा मिलमजदूरों, ताड़ी मजदूरों, मोटर मजदूरों,ट्रामवे और प्रेस मजदूरों के संघर्षोंं औरसंगठनों का नेतृत्व किया।फरवरी 1946 में मद्रास केमजदूरों ने बंबई के नौसेना विद्रोह केसमर्थन में हड़ताल की। जीवा के नेतृत्वमें विशाल जुलूस निकाला गया।जब जुलूस मद्रास के बकिंगघमएंड कर्नाटक मिल्स के नजदीक पहुंचतो पुलिस ने रोकने की कोशिश की।उसने गोली चलाने की धमकी भी दी।जीवा सामने खड़े हो गए और घोषणाकी कि हर हालत में जुलूस जाएगा,भले ही उन्हें गोली खानी पड़े। उन्होंनेपुलिस को चुनौती दी कि वह उनपरगोली चलाए। फलस्वरूप पुलिए कोपीछे हटना पड़ा और जुलूस शांतिपूर्वकआगे चल पड़ा।आजादी के बाद1948 में पार्टी पर पाबंदी लगगई। जीवा उसी वर्ष गिरफ्तार कर लिएगए। वे 1951 तक जेल में रहे। वेपार्टी पर उस वक्त हावीवाम-दुस्साहसवादी ;बी.टी.आर.द्ध लाइनसे सहमत नहीं थे और उन्होंने उसकाजमकर विरोध किया। उन्होंने नई लाइनविकसित करने पर जोर दिया।1951 में ‘जनशक्ति’ साप्ताहिकफिर प्रकाशित होने लगा। 1952 केआम चुनावों से पहले उसे दैनिक केरूप में प्रकाशित किया जाने लगा।1952 के आम चुनावों में वेमद्रास के वाशरमेनपेट विधान-सभाचुनाव-क्षेत्र से चुनाव लड़े और जीतगए। विधानसभा में उन्होंने सरकार परविकास तथा सुधार-संबंधी कदमों परजोर दिया। वे 1957 तक विधानसभा के सदस्य रहे।उन्होंने 1962 में चीनी हमलेकी कठोर निंदा की। इस हमले ने नसिर्फ भारत की सार्वभौमिकता को चोटपहुंचाई बल्कि कम्युनिस्ट आंदोलन कोभी भारी नुकसान पहुंचाया। इसे समझाने के लिए उन्होंने पूरे राज्य का दौरा कर विशाल सभाओं को संबोधित किया।भाषा और साहित्यतमिल को राजकीय भाषा बनने में पी. जीवानन्दमः समाज सुधारक और कम्युनिस्ट...जीवानन्दम की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही। उसे उन्होंने राज्य, न्यायपालिकाऔर शिक्षा में आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलवाया। वे कला और साहित्य सेगहरे रूप से जुड़े हुए थे।वे शुद्ध तमिल भाषा के समर्थक थे। उनका कहना था कि इसमें संस्कृत केप्रवेश से यह विकृत हो गई है। वे अपना नाम ‘उइरिन्वन’ बताते थे जो संस्कृत शब्द ‘जीवानन्दम’ का शब्दशः अनुवाद था। उन्होंने सुप्रसिद्ध तमिल कवि औरसाहित्यिक सुब्रमण्य भारती का व्यापक प्रचार किया।जीवा ने सांस्कृतिक राजनीति का व्यापक प्रचार किया। वे तमिल साहित्य केप्रकांड विद्वान थे। वे बहुत ही अच्छे वक्ता थे। उन्होंने आम जनता के लिएकहानियां, लेख और कविताएं बड़ी संख्या में लिखीं। 1937 में कोयम्बटूरटेक्सटाइल मजदूरों के लिए लिखे गए तथा उनके गीत आज भी प्रचालित हैं।सुब्रमण्य भारती और कम्बन की कविताओं की उनके द्वारा व्याख्या कीविद्वानों ने बड़ी पसंद की है। सुब्रमण्य भारती की पुत्री के अनुसार ये जीवा ही थेजिन्होंने पहली बार उनकी कविताओं की सही व्याख्या कर पाए।1958 में जीवा ने ‘थमरई’ नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया जोबहुत लोकप्रिय हुई।जून 1961 में जीवानन्दम ने तमिलनाडु आर्ट एंड लिटेरिरी फेडरेशन कीस्थापना की। यह संगठन प्रगतिशील साहित्यिकों का मंच बना।जीवा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की अमृतसर पार्टी कांग्रेस ;1958द्ध मेंराष्ट्रीय परिषद के लिए चुने गए। वे 1963 में अपनी मृत्यु तक इसके सदस्यबने रहे। वे तमिलनाडु राज्य पार्टी के सचिवमंडल के सदस्य भी रहे। उनके नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टी ने 1960 में गोवा में पुर्तगाली शासकों द्वारा किए गए अत्याचारों के विरोध में व्यापक आंदोलन चलाया।जीवा ने कठिन परिश्रम करके अंग्रेजी भाषा पर भी महारथ हासिल कर ली।1962 में वे गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। उन्हें इलाज के लिए सोवियत संघ भेजा गया। लेकिन वापस लौटने पर वे फिर बीमार पड़ गए। उनकी मृत्यु18 जनवरी 1963 के ताम्बरम, मदास में हो गई।
-अनिल राजिमवाले.