Tuesday, 22 June 2010

आज नदी बिलकुल उदास थी


आज नदी बिलकुल उदास थी।
सोई थी अपने पानी में,
उसके दर्पण पर-
बादल का वस्त्र पडा था।
मैंने उसको नहीं जगाया,
दबे पांव घर वापस आया।
- केदार नाथ अग्रवाल

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