Friday, 6 January 2012

मैं घास हूँ-पाश

बम फेंक दो चाहे
मैं घास हूँ
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा
विश्‍वविद्यालय पर
बना दो हॉस्‍टल को मलबे का ढेर
सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर
...
मुझे क्‍या करोगे
मैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊँगा
बंगे को ढेर कर दो
संगरूर मिटा डालो
धूल में मिला दो लुधियाना ज़िला
मेरी हरियाली अपना काम करेगी
दो साल दस साल बाद
सवारियाँ फिर किसी कंडक्‍टर से पूछेंगी
यह कौन-सी जगह है
मुझे बरनाला उतार देना
जहाँ हरे घास का जंगल है
-पाश

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