बाजार के मनमुताबिक रस्सी
पर चलते हुए सरकार की बाजीगरी
की कवायद नीति निर्धारण को
त्वरा देने में बार बार नाकाम
हो रही है। आखिर राजनीतिक बाध्यताओं
से वित्तीय और मौद्रिक नीतियों
की पीछा छूट नहीं रहा।भारतीय
कंपनियां चाहती हैं कि रिजर्व
बैंक ब्याज दरों में कटौती
करे, जिससे आर्थिक गतिविधियों
में तेजी लाने में मदद मिल सके।लेकिन
कंपनियों के चाहने , न चाहने
से कुछ होने वाला नहीं। सरकार
को राजनीतिक माहौल का जायजा
भी लेना होता है। अभी बंगाल
में ममता बनर्जी अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता पर खुलेआम जो
कुठाराघात करने लगी, उस पर केंद्र
और कांग्रेस ने चुप्पी साध
रकी है। ममता, अखिलेश और जयललिता
की मर्जी के किलाफ सरकार कुछ
करने की हालत में नहीं हैं।
तीनों की सौदेबाजी से राजस्व
संतुलन बुरी तरह दगमगाने लगा
है और तमाम अहम वित्तीय कानून,
जिन्हें आर्थिक सुधार के नजरिये
से बजट सत्र में पास कराने थे,खटाई
में पड़े हुए हैं। वर्ष 2010 व
2011 के ज्यादातर समय उच्च स्तर
पर बनी रही मुद्रास्फीति फरवरी,
2012 में घटकर 6.95 प्रतिशत पर आ गई।वित्त
वर्ष 2012-13 की ऋण नीति की घोषणा
से पहले रिजर्व बैंक के गवर्नर
डी़ सुब्बाराव ने शनिवार को
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
और वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी
से मुलाकात की। सूत्रों ने
बताया कि उन्होंने इन नेताओं
के साथ व्यापक आर्थिक स्थिति
की समीक्षा की और आर्थिक वृद्धि
दर में गिरावट रोकने के उपायों
पर चर्चा की। रिजर्व बैंक 17
अप्रैल को वार्षिक मौद्रिक
नीति की घोषणा करेगा।रिजर्व
बैंक के गवर्नर के लिए यह परंपरा
रही है कि वह मौद्रिक नीति की
समीक्षा से पहले वित्त मंत्री
के साथ अर्थव्यवस्था की स्थिति
पर चर्चा करते हैं।निवेशक बैंक
मोर्गन स्टेनली का मानना है
कि रिजर्व बैंक द्वारा 2012-13 के
लिए जारी की जाने वाली मौद्रिक
नीति में ब्याज दरों में कटौती
की संभावना नहीं है।बजट से
कुछ खास न मिलने ने निराश शेयर
बाजार की नजर अब आगामी 17 अप्रैल
को आने वाली रिजर्व बैंक की
सालाना मौद्रिक नीति पर है।कहा
जा रहा है कि आईआईपी के खराब
आंकड़ों की परवाह बाजार ने
इसलिए नहीं की क्योंकि उसे
अगले हफ्ते रिजर्व बैंक की
मौद्रिक नीति में ब्याज दरों
में कटौती का भरोसा हो चला है।
विदेशी निवेशकों की आस्था
भारतीय बाजार में लौटाने के
लिए हालांकि सरकार हर संभव
कोसिश कर रही है। वित्त मंत्रालय ने फॉरेन करेंसी
कंवर्टिबल बॉन्ड (एफसीसीबी)
जारी करने वाली कंपनियों के
लिए 2 नए नियम बनाए हैं। नए नियमों
से डीफॉल्ट की हालत में भी विदेशी
निवेशकों को पैसा लौटाया जा
सकेगा।एफसीसीबी जारी करने
वाली कंपनियों को रिजर्व फंड
बनाना जरूरी होगा। रिजर्व फंड
में कंपनियों को एफसीसीबी के
मैच्योरिटी की रकम के 25 फीसदी
बराबर रकम रखनी होगी।
बिजली, खनन,तेल व प्राकृतिक
गैस और स्वास्थ्य पर पहले से
सौ फीसदी विदेशी निवेश की छूट
है।इन सेक्टरों में विदेशी
निवेशक अब नाममात्र सब्सिडी
देने को तैयार नहीं हैं। इस
पर गार की बला अभी टली नहीं है।
बाजार गिरावट की ओर है, अगर मौद्रिक
नीतियों में फिर सख्ती
बरती गयी,तो कारोबार धड़ाम
होने के आसार हैं। वैसे भी लगातार
दो सप्ताहों की तेजी के बाद
देश के शेयर बाजारों में इस
सप्ताह गिरावट का रुख रहा।
प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 2.24
फीसदी या 391.51 अंकों की गिरावट
के साथ 17094.51 पर और निफ्टी 2.17 फीसदी
या 115.45 अंकों की गिरावट के साथ
5207.45 पर बंद हुआ। इंफोसिस के खराब
नतीजों और यूरोपीय बाजारों
में गिरावट ने घरेलू बाजारों
का मूड बिगाड़ा।अमेरिकी और
एशियाई बाजारों में तेजी के
बावजूद घरेलू बाजार गिरावट
पर खुले। इंफोसिस के निराशाजनक
नतीजों का बाजार का दबाव दिखा।
वित्त वर्ष 2012 की चौथी तिमाही
में इंफोसिस का मुनाफा 2.4 फीसदी
घटकर 2,316 करोड़ रुपये हो गया
है। वित्त वर्ष 2012 की अक्टूबर-दिसंबर
तिमाही में इंफोसिस का मुनाफा
2,372 करोड़ रुपये रहा था।वहीं
वित्त वर्ष 2012 की जनवरी-मार्च
तिमाही में इंफोसिस की आय 4.8
फीसदी घटकर 8,852 करोड़ रुपये पर
पहुंच गई है। वित्त वर्ष 2012 की
तीसरी तिमाही में इंफोसिस की
आय 9,928 करोड़ रुपये रही थी।वित्त
वर्ष 2012 की चौथी तिमाही में इंफोसिस
का डॉलर राजस्व 2 फीसदी घटकर
177.1 करोड़ डॉलर हो गया है। वित्त
वर्ष 2012 की तीसरी तिमाही में
इंफोसिस का डॉलर राजस्व 180.6 करोड़
डॉलर रहा था। हालांकि जनवरी-मार्च
तिमाही में इंफोसिस का डॉलर
ईपीएस गाइडेंस के मुताबिक 0.81
डॉलर रहा है। वहीं इंफोसिस
का रुपये में ईपीएस 145.55 रुपये
रहा है।औद्योगिक उत्पादन की
वृद्धि दर के आंकड़ों को निराशाजनक
बताते हुए वित्त मंत्री प्रणब
मुखर्जी ने इसकी मुख्य वजह
सख्त मौद्रिक नीति और वैश्विक
कारणों को बताया है। उन्होंने
कहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक
और सरकार औद्योगिक उत्पादन
में सुधार के लिए कदम उठाएंगे।वित्त
मंत्री ने कहा कि इन आंकड़ों
का असर अगले सप्ताह पेश होने
वाली मौद्रिक नीति की समीक्षा
में दिखाई देगा। सरकार और रिजर्व
बैंक अर्थव्यवस्था में सुधार
के लिए मिलकर कदम उठाएंगे।
पेट्रोल के साथ ही अब डीजल
के भी दाम बढ़ने के आसार दिखाई
देने लगे हैं। जानकारी के मुताबिक
सरकार को बजट सत्र के खत्म होने
का इंतजार है, जोकि 7 मई को खत्म
हो रहा है। वहीं सूत्रों के
मुताबिक 7 मई के बाद कभी भी डीजल
महंगा हो सकता है।सरकार इसके
लिए कच्चे तेल की ऊंची कीमतों
का हवाला दे रही है। क्योंकि
अगर दाम नहीं बढ़ाए गए तो इसका
असर राजस्व पर पड़ेगा। वित्त
मंत्री प्रणव मुखर्जी पहले
ही कह चुके हैं कि सरकार ज्यादा
ऑयल सब्सिडी नहीं झेल सकती
है।डीजल के दाम बढ़ाना सरकार
के हाथ में है और इसकी कीमतें
पिछले साल जुलाई में बढ़ाई गई
थी जबकि पेट्रोल की कीमतें
बाजार तय करता है। हालांकि
राजनैतिक दबाव में अब तक पेट्रोल
के दाम भी नहीं बढ़ाए गए हैं।
राष्ट्रपति सरकार के लिए सबसे
बड़ी लाइफ लाइन बनी हुई हैं।
कोल इंडिया को डिक्री जारी
करने के बाद अब राष्ट्रपति
सरकार को टेलीकाम संकट से भी
उबारने में लगी है। सरकार के
लिए अच्छी खबर यह है कि सुप्रीम
कोर्ट ने 2जी लाइसेंस रद्द करने
पर सरकार की समीक्षा अर्जी
स्वीकार कर ली है। इस मामले
पर सुनवाई 1 मई को होगी। यही
नहीं सरकार ने 2जी के याचिकाकर्ता
प्रशांत भूषण, सुब्रह्मण्यम
स्वामी को भी नोटिस भेजा है।ज्यादातर
कंपनियां उच्चतम न्यायालय
के आदेश को चुनौती दे रही हैं
और कई देशों का भी भारत पर दवाब
है कि इस मामले में कानूनी लड़ाई
लड़ी जाए। ऐसे में सरकार न्यायालय
से उसके आदेश की पूर्ण व्याख्या
चाहती है। राष्ट्रपति के माध्यम
से सरकार उच्चतम न्यायालय के
जजों की बेंच में कई सवाल भेजकर
उस पर अदालत का नजरिया जानने
की कोशिश करेगी।
सरकार को सुप्रीम कोर्ट से
जिन मुद्दों पर सफाई चाहिए
उसमें 1994 से 2007 में बांटे गए लाइसेंस
रद्द हों या नहीं और नीलामी
के बिना दिए गए स्पेक्ट्रम
के लिए पुरानी तारीख से कीमत
लेने जैसे मसले शामिल हैं।
इसके अलावा सरकार को जिन कंपनियों
के लाइसेंस रद्द हुए हैं उनके
3जी लाइसेंस के भविष्य और पहले
आओ, पहले पाओ नीति किस आधार पर
खारिज की गई इन मुद्दों पर भी
सफाई चाहिए। सरकार ने सुप्रीम
कोर्ट से प्राकृतिक संसाधनों
के आवंटन पर नीलामी ही एकमात्र
तरीका होने के मसले पर भी सफाई
मांगी है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल फरवरी
महीने में 122 टेलिकॉम लाइसेंस
रद्द कर दिए थे। ये सभी लाइसेंस
पूर्व टेलीकॉम मंत्री ए राजा
के कार्यकाल में दिए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की
पहले आओ, पहले पाओ नीति पर सवाल
खड़े किए थे। सुप्रीम कोर्ट
ने सरकार को 4 महीने के अंदर
दोबारा स्पेक्ट्रम नीलामी
का आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक
की माइनिंग कंपनियों को थोड़ी
राहत दी है। कोर्ट ने राज्य
में कैटेगरी ए में कुछ शर्तों
के साथ माइनिंग दोबारा शुरू
करने की मंजूरी दे दी है। इसके
अलावा इस मामले की जांच के लिए
बनाई गई सेंट्रली एम्पावर्ड
कमेटी- सीईसी की सिफारिश रिपोर्ट
भी स्वीकार कर ली है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक कर्नाटक
की माइंस को तीन कैटेगरीज- ए,
बी और सी में बांटा गया था। अब
कोर्ट की मंजूरी के बाद कम से
कम 45 खदानों में माइनिंग दोबारा
शुरू की जा सकेगी, जो ए कैटेगरी
में आती हैं।
कोर्ट ने इन खदानों से आयरन
ओर की माइनिंग के लिए सीमा भी
तय की है, जिसके मुताबिक बेल्लारी
की खदानों से सालाना 2.5 करोड़
टन और चित्रदुर्गा खदानों से
सालाना 50 लाख टन से ज्यादा की
माइनिंग नहीं की जाएगी। कोर्ट
के इस फैसले से जिन माइनिंग
कंपनियों को फायदा होगा, उनमें
जेएसडब्ल्यू स्टील, कल्याणी
स्टील और सेसा गोवा शामिल हैं।
इस बीच वायदा बाजार में बड़ा
घोटाला का मामला संयुक्त राष्ट्र
के महासचिव बान की मून के ताजा
बयान से तूल पकड़ सकता है, ऐसी
आशंका है। भारत ही नहीं बल्कि दुनिया
भर में एग्री कमोडिटी की कीमतों
में तेजी के लिए वायदा बाजार
को जिम्मेदार माना जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव
बान की मून का मानना है कि दुनिया
भर के वायदा बाजारों में सट्टेबाजी
के चलते एग्री कमोडिटी की कीमतों
में भारी उतार-चढ़ाव हो रहा
है।बान की मून के मुताबिक दुनिया
भर में एग्री कमोडिटी की कीमतों
में तेजी को रोकने के लिए कर्रवाई
होनी चाहिए। उन्होंने सट्टेबाजी
रोकने के लिए ग्लोबल कमोडिटी
वायदा की समीक्षा करने का सुझाव
दिया है।वायदा बाजार के कुप्रभाव
का जिक्र करते हुए उन्होंने
कहा है कि एग्री कमोडिटी की
कीमतों में बढ़ोत्तरी से दुनिया
भर में भूखमरी के शिकार लोगों
की संख्या बढ़कर करीब 1 अरब हो
गई है। ऐसे हालातों ने काफी
लोगों को गरीबी रेखा के नीचे
धकेल दिया है। लिहाजा ग्लोबल
एग्री कमोडिटी वायदा कारोबार
की कड़ी निगरानी होनी चाहिए।
मुद्रास्फीति पर काबू पाने
के लिए रिजर्व बैंक ने मार्च,
2010 से ही सख्त मौद्रिक नीति अपना
रखी है और वह 13 बार ब्याज दरें
बढ़ा चुका है। हालांकि, इसने
पिछली तीन नीतिगत समीक्षा में
प्रमुख दर [रेपो] नहीं बढ़ाई।वर्ष 2011-12 के दौरान
देश की आर्थिक वृद्धि दर 6.9 प्रतिशत
रहने का अनुमान जताया गया है,
जो इससे पिछले वित्त वर्ष के
8.4 प्रतिशत के मुकाबले काफी
कम है। हालांकि, सरकार को चालू
वित्त वर्ष के दौरान इसके 7.6
प्रतिशत रहने की संभावना है।
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