हम है इसके मालिक, हिन्दुस्तान हमारा,
पाक वतन है कौम का, जन्नत से भी प्यारा।
ये है हमारी मिल्कियत, हिन्दुस्तान हमारा,
इसकी रूहानियत से, रौशन है जग सारा;
कितना कदीम कितना नईम, सब दुनिया से न्यारा,
करती है जरखेज जिसे, गंगो-जमन की धारा।
ऊपर बर्फ़ीला पर्वत, पहरेदार हमारा,
नीचे साहिल पर बजता, सागर का नकारा;
इसकी खानें उगल रही, सोना, हीरा, पारा,
इसकी शानो शौकत का, दुनिया में जयकारा।
आया फ़िरंगी दूर से, ऐसा मन्तर मारा,
लूटा दोनों हाथ से, प्यारा वतन हमारा;
आज शहीदों ने है तुमको, अहले वतन पुकारा,
तोड़ो गुलामी की जंजीरें, बरसाओ अंगारा।
हिन्दू, मुसलमां, सिख हमारा भाई-भाई प्यारा,
ये है आजादी का झन्डा, इसे सलाम हमारा।
-अजीमुल्ला खान
(सन 1857 में राष्ट्रध्वज की सलामी के समय जगह-जगह में यह गीत गाया जाता था। मूल गीत 57 क्रांति-अखबार 'पयामे-आजादी' में छपाया गया था। जिसकी एक नकल ब्रिटिश म्युजियम लंदन में आज भी मौजूद है।)
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