Monday, 12 April 2010

जवाहर लाल कौल ‘व्यग्र’ के कहानी-संग्रह ‘चक्कर’ का लोकार्पण










वाराणसी: प्रगतिशील लेखक संघ वाराणसी इकाई तथा सर्जना साहित्य मंच वाराणसी के संयुक्त तत्वाधान में प्रसिद्ध कवि एवं कथाकार जवाहर लाल कौल ‘व्यग्र’ के प्रथम कहानी संग्रह ‘चक्कर’ का लोकार्पण दिनांक 14 फरवरी 2010 को उदय प्रताप महाविद्यालय वाराणसी के पुस्तकालय कक्ष में प्रख्यात कथाकार प्रो. काशी नाथ सिंह की अध्यक्षता में किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में सुप्रसिद्ध दलित साहित्यकार एवं ‘बयान’ पत्रिका के सम्पादक मोहनदास नैमिशराय की उपस्थिति विशेष रूप से उल्लेखनीय रही।समारोह के प्रारम्भ में अपनी कहानियों की रचना-प्रक्रिया के सम्बंध में जवाहर लाल जी ने बताया। अपने उद्घाटन भाषण में डा. राम सुधार ने संकलन की कई कहानियों को संदर्भित करते हुए कहा कि व्यग्र जी के अन्दर एक सफल कहानीकार के बीज हैं। उनकी प्रत्येक कहानी एक सन्देश की तरफ ले जाती है। शायर दानिश जमाल सिद्दीकी का कहना था कि वाराणसी में कहानी के क्षेत्र में प्रो. काशी नाथ सिंह के बाद व्यग्र जी के आगमन से एक नई उम्मीद पैदा होती है। प्रो. चौथी राम यादव ने संग्रह की कहानी ‘औकात’ को रेखांकित करते हुए इस बात पर चिंता व्यक्त की कि आज की अस्पृश्यता दलित समाज की सबसे मारक एवं अपमानजनक स्थिति है जिसके कारण वह सवर्णीय चारपाई तो बुन सकता है लेकिन उस पर बैठ नहीं सकता।मुख्य अतिथि नैमिशराय ने कहा कि दलित साहित्यकार एक स्वस्थ समाज की रचना करना चाहता है। जब तक यह स्थिति नहीं आयेगी, दलित लेखन की आवश्यकता बनी रहेगी। ‘चक्कर’ कहानी पर विशेष रूप से चर्चा करते हुए उन्होंने इसे जातिगत दम्भ के अभिव्यक्ति की श्रेष्ठ मनोवैज्ञानिक कहानी बताया। प्रो. काशी नाथ सिंह ने कहा कि जवाहर लाल जी प्रेम चन्द्र की तर्ज के कथाकार हैं इसलिए उनके यहां प्रेम चन्द का विरोध भी प्रेम चन्द का विकास है। उन्होंने वाराणसी में पुरूष कथाकारों की कमी जाहिर करते हुए व्यग्र को अपना जोड़ीदार बताया। संग्रह की दो कहानियाँ ‘औकात’ और ’डाँगर’ पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि कौल जी में इस बात का सेंस है कि कहानी कहाँ से बनती है।आयोजन में डा. संजय कुमार, प्रगतिशील लेखक संघ के प्रदेश महासचिव डा. संजय श्रीवास्तव तथा संगम जी विद्रोही ने भी अपने विचार रखे। स्वागत वाराणसी प्रलेस के सचिव डा. गोरख नाथ एवं आभार जलेस के सह सचिव नईम अख्तर ने ज्ञापित किया। संचालन अशोक आनन्द ने किया।(प्रस्तुति: मूल चन्द्र सोनकर)

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