सम्मेलन की स्थापना के बाद 1936 और 1937 का साल छात्रों की अभूतपूर्व गतिविधियों और सक्रियता का दौर था। इन छात्र गतिविधियों को कुचलने के लिए फैजाबाद, कानपुर और अलीगढ़ में कई छात्रों को निलम्बित कर दिया गया। इस कार्यवाही ने छात्र आन्दोलन और उनकी गतिविधियों को और हवा दी जिससे लगातार धरने, प्रदर्शनों और छात्र हड़तालों का लम्बा सिलसिला शुरू हो गया। आन्दोलन की इस अविराम आँधी के बाद 1937 में होने वाले चुनावों में ए0आई0एस0एफ0 ने कांग्रेस का खुलकर समर्थन किया जिससे कांग्रेस को चुनावों में जीत हासिल हुई।
छात्र नेता रमेश चन्द्र सिन्हा और जे0जे0 भट्टाचार्य की गिरफ्तारी के विरोध में यू0पी0 के छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया। गिरफ्तारी का विरोध करते हुए और अपनी 37 सूत्री माँगों के लिए प्रदर्शन करते हुए 15 हजार छात्र उस समय के यू0पी0 के मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पन्त के निवास के सामने पहुँच गए। इसी तरह के छात्र आंदोलन कलकत्ता, मद्रास सहित देश के अन्य भागों में भी दिखाई दिए। स्टूडेन्ट्स फैडरेशन ने नवम्बर 1936 से अपने मुखपत्र स्टूडेन्ट्स ट्रिब्यून का प्रकाशन शुरू किया तो वहीं मुम्बई से स्टूडेन्ट्स काॅल और कलकत्ता से छात्र अभिजन का प्रकाशन शुरू हुआ। ए0आई0एस0एफ0 के गठन ने केवल भारत में ही नहीं विदेशों में शिक्षा ग्रहण कर रहे भारतीय छात्रों को भी संगठन बनाने के लिए प्रेरित किया। यूरोप में पढ़ने वाले छात्रों द्वारा 1937 में ऐसी ही एक कोशिश आॅक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज मजलिस की पहल पर एक सम्मेलन के रूप में लंदन में हुई। इस सम्मेलन में दस ब्रिटिश विश्वविद्यालयों के अलावा कई छात्र संगठनांे एवं भारत से आए बिरादराना संगठनों के छात्र नेताओं ने हिस्सा लिया। यहाँ पर ब्रिटेन और आयरलैंड में शिक्षारत भारतीय छात्रों का एक फैडरेशन बनाने का निर्णय लिया गया इसके अलावा भारत में ए0आई0एस0एफ0 से संपर्क बनाने का भी फैसला हुआ।
1939 में ए0आई0एस0एफ0 ने कई देशव्यापी आंदोलनों का नेतृत्व किया। उड़ीसा के मेडिकल छात्रों की माँगांे को लेकर राज्य में बडे़ अंादोलन की शुरुआत हुई जिसका बाद में देश भर में प्रभाव नजर आया। छात्रों ने प्रदर्शन, हड़ताल और सत्याग्रह जैसे विरोध के सभी तरीकों का प्रयोग किया। अन्ततोगत्वा प्रशासन को छात्रों की माँगों के समक्ष झुकना पड़ा। नाजीवाद और फासीवाद के बढ़ते खतरे के बीच 1 सितम्बर 1939 को दूसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत हुई। ब्रिटिश सरकार ने बगैर भारतीय नेताआंे से मंत्रणा किए भारत के युद्ध में शामिल होने की घोषणा कर दी। अंग्रेजांे की इस घोषणा का पूरे देश में जोरदार विरोध हुआ और बम्बई के मजदूरों ने 2 अक्टूबर 1939 को ऐतिहासिक युद्ध विरोधी हड़ताल का आयोजन किया। इस ऐतिहासिक हड़ताल के समर्थन मंे छात्रों ने 8-9 अक्टूबर 1939 को नागपुर में एक बड़ी रैली और कन्वेंशन का आयोजन किया। इस रैली की अध्यक्षता सुभाष चन्द्र बोस और स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने की।
ए0आई0एस0एफ0 का छठा सम्मेलन एक महत्वपूर्ण घटना थी। यह समय संगठन के लिए बेहद कठिन एवं निर्णायक था। ए0आई0एस0एफ0 के इस ऐतिहासिक सम्मेलन का आयोजन 25-26 दिसम्बर 1940 को नागपुर में किया गया। कई तरह की राजनैतिक धाराओं और राष्ट्रवादी आंदोलनों के साँझे छात्र आन्दोलन के अन्तर्विरोध इस सम्मेलन के दौरान उभर कर सतह पर आ गए थे। लम्बे समय के वैचारिक संघर्ष अब एक नए निर्णायक मुक़ाम पर पहँुच चुके थे। वामपंथी, दक्षिणपंथी, मध्यमार्गी और कई अन्य राजनैतिक रुझान वाले इसी छठें सम्मेलन में कई तरह के मुद्दों के साथ ही राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सवालों पर बहस में उलझ गए थे। ब्रिटिश सरकार के रुख से लेकर राष्ट्रीय सरकार के गठन के कांग्रेस के प्रस्ताव विश्वयुद्ध के प्रति और उसके चरित्र को लेकर सभी के अपने विचार थे। गांधीवादी, माक्र्सवादी, सोशलिस्ट, कांग्रेसी सोशलिस्ट से लेकर रायवादी और ट्राटस्कीवादियों सहित सभी के इन परिस्थितियांे को लेकर अपने-अपने विचार थे। हालाँकि छात्रों का एक बड़ा हिस्सा इन विचारधाराओं से इतर छात्रों की समस्याआंे को लेकर चिन्तित था।
अन्ततोगत्वा सम्मेलन के प्रतिनिधि दो हिस्सों में बँट गए। एक हिस्सा जो अति राष्ट्रवादी था और दूसरा हिस्सा जो कम्युनिस्टों से संबंधित था और सांगठनिक एवं राजनैतिक तौर पर अधिक स्पष्ट भी था। दोनांे गुटों ने राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय सवालों को लेकर अपना-अपना कठोर रुख कायम कर लिया। इस गुटबाजी के कारण नागपुर सम्मेलन में ए0आई0एस0एफ0 दो भागों में बँट गया। एक हिस्सा जिसने वामपंथी नेता एम0 फारूकी को अपना महासचिव चुना तो दूसरे हिस्से ने एम0एल0 शाह को अपना महासचिव चुना। प्रो0 सतीश कालेकर ने दोनांे गुटों को मिलाने की भरपूर कोशिश की मगर दोनों गुटों के कठोर रुख के कारण उन्हंे असफलता ही हाथ लगी। इस फूट के कारण देश का छात्र आंदोलन दो फाड़ हो गया और जिसके कारण छात्रों में काफी निराशा और असंतोष था।
इसी बीच 22 जून 1941 में नाजी जर्मनी ने समाजवादी सोवियत संघ पर बड़ा हमला कर दिया। अब द्वितीय विश्वयुद्ध में एक गुणात्मक परिवर्तन आ चुका था। हिटलर के फासीवादी इरादांे के खिलाफ लड़ाई में ब्रिटेन भी सोवियत संघ के साथ शामिल हो गया। दुनिया में पहले सर्वहारा राज्य पर आक्रमण के साथ ही अब यह संघर्ष साम्राज्यवादी अन्तर्विरोधों के संघर्ष से बदलकर सर्वहारा पर हमले और नाजीवादी हमले से बचाव का एक जनयुद्ध बन चुका था।
पूरी दुनिया में फासीवादी खतरे और भारतीय सीमा पर खड़ी हिटलर की सहयोगी जापानी फौजों के कारण ए0आई0एस0एफ0 ‘‘भारत छोड़ो‘‘ आंदोलन और उसके समय से सहमत नहीं था। बावजूद इसके ए0आई0एस0एफ0 ने आंदोलन के दौरान गिरफ्तार राजनेताआंे की रिहाई के लिए देशव्यापी आन्दोलन चलाया। इसी के साथ ए0आई0एस0एफ0 ने जापानी खतरे का सामना करने के लिए आसाम, बंगाल और मणिपुर के सीमावर्ती इलाकों में सशस्त्र और बिना हथियारांे के जत्थों का गठन किया।
1943 में देश बडे़ अकाल की चपेट में आ चुका था। बम्बई, आसाम, बंगाल, उड़ीसा, बिहार और मद्रास आदि बुरी तरह इस अकाल की चपेट में आ चुके थे। जहाँ देश की एक तिहाई आबादी इस अकाल का शिकार थी वहीं बंगाल इस अकाल की सबसे बुरी तरह चपेट में था। ए0आई0एस0एफ0 ने इस संकट के समय में राहत कार्यों में बढ़-चढ़कर भागेदारी की, साथ ही राहत सामग्री और फण्ड के लिए देशव्यापी अभियान भी चलाया। ए0आई0एस0एफ0 ने इस दौरान सस्ता अनाज मुहैया कराने के लिए जहाँ बंगाल में ढेरों सस्ती दर की दुकानंे चलाईं तो वहीं कई सारी रसोइयाँ भी भूखों को खाना खिलाने के लिए चलाई। इस सारे राहत कार्यो में ए0आई0एस0एफ0 के तीन हजार कार्यकर्ताओं ने प्रतिबद्धता के साथ काम किया।
क्रमश:
छात्र नेता रमेश चन्द्र सिन्हा और जे0जे0 भट्टाचार्य की गिरफ्तारी के विरोध में यू0पी0 के छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया। गिरफ्तारी का विरोध करते हुए और अपनी 37 सूत्री माँगों के लिए प्रदर्शन करते हुए 15 हजार छात्र उस समय के यू0पी0 के मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पन्त के निवास के सामने पहुँच गए। इसी तरह के छात्र आंदोलन कलकत्ता, मद्रास सहित देश के अन्य भागों में भी दिखाई दिए। स्टूडेन्ट्स फैडरेशन ने नवम्बर 1936 से अपने मुखपत्र स्टूडेन्ट्स ट्रिब्यून का प्रकाशन शुरू किया तो वहीं मुम्बई से स्टूडेन्ट्स काॅल और कलकत्ता से छात्र अभिजन का प्रकाशन शुरू हुआ। ए0आई0एस0एफ0 के गठन ने केवल भारत में ही नहीं विदेशों में शिक्षा ग्रहण कर रहे भारतीय छात्रों को भी संगठन बनाने के लिए प्रेरित किया। यूरोप में पढ़ने वाले छात्रों द्वारा 1937 में ऐसी ही एक कोशिश आॅक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज मजलिस की पहल पर एक सम्मेलन के रूप में लंदन में हुई। इस सम्मेलन में दस ब्रिटिश विश्वविद्यालयों के अलावा कई छात्र संगठनांे एवं भारत से आए बिरादराना संगठनों के छात्र नेताओं ने हिस्सा लिया। यहाँ पर ब्रिटेन और आयरलैंड में शिक्षारत भारतीय छात्रों का एक फैडरेशन बनाने का निर्णय लिया गया इसके अलावा भारत में ए0आई0एस0एफ0 से संपर्क बनाने का भी फैसला हुआ।
तीसरा ए0आई0एस0एफ0 सम्मेलन
ए0आई0एस0एफ0 का तीसरा सम्मेलन 1938 में 1 से 3 जनवरी तक मद्रास में आयोजित किया गया। इस बीच ए0आई0एस0एफ0 का फैलाव दूर दराज के गाँवांे और कई प्रांतों में भी हुआ। ए0आई0एस0एफ0 के काम का फैलाव राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तेजी से हुआ। तीसरे सम्मेलन ने अंसार हरवानी को महासचिव के तौर पर चुना।
चैथा सम्मेलन
ए0आई0एस0एफ0 एक व्यापक जनाधार वाले छात्र आंदोलन के रूप में उभर रहा था। ए0आई0एस0एफ0 का चैथा सम्मेलन 1 से तीन जनवरी 1939 को कलकत्ता में आयोजित किया गया। चालीस हजार से अधिक सदस्य छात्रों के प्रतिनिधि के रूप में देश भर से इस सम्मेलन में 800 छात्रों ने भाग लिया। इसके अलावा 1500 और छात्रों ने पर्यवेक्षक के रूप मंे सम्मेलन की तमाम कार्यवाही में भाग लिया। एम0एल0 शाह सम्मेलन में नए महासचिव चुने गए।
1939 में ए0आई0एस0एफ0 ने कई देशव्यापी आंदोलनों का नेतृत्व किया। उड़ीसा के मेडिकल छात्रों की माँगांे को लेकर राज्य में बडे़ अंादोलन की शुरुआत हुई जिसका बाद में देश भर में प्रभाव नजर आया। छात्रों ने प्रदर्शन, हड़ताल और सत्याग्रह जैसे विरोध के सभी तरीकों का प्रयोग किया। अन्ततोगत्वा प्रशासन को छात्रों की माँगों के समक्ष झुकना पड़ा। नाजीवाद और फासीवाद के बढ़ते खतरे के बीच 1 सितम्बर 1939 को दूसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत हुई। ब्रिटिश सरकार ने बगैर भारतीय नेताआंे से मंत्रणा किए भारत के युद्ध में शामिल होने की घोषणा कर दी। अंग्रेजांे की इस घोषणा का पूरे देश में जोरदार विरोध हुआ और बम्बई के मजदूरों ने 2 अक्टूबर 1939 को ऐतिहासिक युद्ध विरोधी हड़ताल का आयोजन किया। इस ऐतिहासिक हड़ताल के समर्थन मंे छात्रों ने 8-9 अक्टूबर 1939 को नागपुर में एक बड़ी रैली और कन्वेंशन का आयोजन किया। इस रैली की अध्यक्षता सुभाष चन्द्र बोस और स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने की।
पाँचवाँ सम्मेलन
विश्वयुद्ध की इसी छाया के बीच 1-2 जनवरी 1940 को ए0आई0एस0एफ0 का पाँचवाँ सम्मेलन दिल्ली में आयोजित किया गया। सम्मेलन ने युद्ध की कठोर शब्दों में निन्दा करते हुए 26 जनवरी को भारत का स्वतंत्रता दिवस मनाने का निर्णय किया। एम0एल0 शाह को फिर से संगठन का महासचिव निर्वाचित किया गया।
भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के नेताओं ने युद्ध के दौरान एक प्रोविजनल सरकार बनाने की माँग की जिसे ब्रिटिश सरकार ने खारिज कर दिया। इसके जवाब में ब्रिटिश सरकार 8 अगस्त 1940 को 1 अगस्त प्रस्ताव लेकर आ गई। ए0आई0एस0एफ0 ने पहले भी इस प्रकार के डिफेंस आॅफ आॅर्डिनेंस का बंगाल में विरोध किया था। इसके अलावा ए0आई0एस0एफ0 ने कपड़ा मजदूरांे की युद्ध विरोधी 1940 की बम्बई हड़ताल का बेहद सक्रिय ढ़ंग से समर्थन किया था। इसके बाद देशभर में विरोध प्रदर्शनों, हड़तालों और विरोधांे का दौर शुरू हुआ। छात्र भी बड़ी संख्या में ब्रिटिश सरकार के इस विरोध के समर्थन में आए। ए0आई0एस0एफ0 की एक बुकलेट ‘‘रोल आॅफ स्टूडेन्ट्स इन एन्टी इम्पीरियस्टि स्ट्रगल’’ भी अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया।
ए0आई0एस0एफ0 का छठाँ सम्मेलन अन्ततोगत्वा सम्मेलन के प्रतिनिधि दो हिस्सों में बँट गए। एक हिस्सा जो अति राष्ट्रवादी था और दूसरा हिस्सा जो कम्युनिस्टों से संबंधित था और सांगठनिक एवं राजनैतिक तौर पर अधिक स्पष्ट भी था। दोनांे गुटों ने राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय सवालों को लेकर अपना-अपना कठोर रुख कायम कर लिया। इस गुटबाजी के कारण नागपुर सम्मेलन में ए0आई0एस0एफ0 दो भागों में बँट गया। एक हिस्सा जिसने वामपंथी नेता एम0 फारूकी को अपना महासचिव चुना तो दूसरे हिस्से ने एम0एल0 शाह को अपना महासचिव चुना। प्रो0 सतीश कालेकर ने दोनांे गुटों को मिलाने की भरपूर कोशिश की मगर दोनों गुटों के कठोर रुख के कारण उन्हंे असफलता ही हाथ लगी। इस फूट के कारण देश का छात्र आंदोलन दो फाड़ हो गया और जिसके कारण छात्रों में काफी निराशा और असंतोष था।
इसी बीच 22 जून 1941 में नाजी जर्मनी ने समाजवादी सोवियत संघ पर बड़ा हमला कर दिया। अब द्वितीय विश्वयुद्ध में एक गुणात्मक परिवर्तन आ चुका था। हिटलर के फासीवादी इरादांे के खिलाफ लड़ाई में ब्रिटेन भी सोवियत संघ के साथ शामिल हो गया। दुनिया में पहले सर्वहारा राज्य पर आक्रमण के साथ ही अब यह संघर्ष साम्राज्यवादी अन्तर्विरोधों के संघर्ष से बदलकर सर्वहारा पर हमले और नाजीवादी हमले से बचाव का एक जनयुद्ध बन चुका था।
सातवाँ सम्मेलन
ऐसी परिस्थितियांे में ए0आई0एस0एफ0 का सातवाँ सममेलन 31 दिसम्बर 1941 को शुरू हुआ। विश्वयुद्ध के चरित्र पर लम्बी और बड़ी बहस के बाद संगठन ने नाजी जर्मनी के खिलाफ युद्ध की किसी भी कोशिश के समर्थन करने का प्रस्ताव पारित किया। विश्वयुद्ध में आए इस गुणात्मक परिवर्तन और नाजी जर्मनी के खिलाफ सोवियत संघ के समर्थन का आवाह्न संगठन की बड़ी उपलब्धि थी। दरअसल नाजी जर्मनी के सामने इस युद्ध में सोवियत संघ ही सबसे बड़ा खतरा और बाधा थी, अब सोवियत का समर्थन ही दुनिया में फासीवाद के खतरे को रोक सकता था। इतिहास गवाह है कि ऐसा हुआ भी। ए0आई0एस0एफ0 के इस आवह्न के बावजूद सरकार ने संगठन की राह में रुकावटें खड़ी करना जारी रखा। ए0आई0एस0एफ0 ने एक राष्ट्रीय सरकार गठित करने की माँग रखी। संगठन के कुछ राष्ट्रवादी छात्रों ने जापानी सेनाआंे के सामने समर्पण की बात भी रखी जिसे ए0आई0एस0एफ0 ने आत्मघाती कदम कह कर एकदम खारिज कर दिया। फासीवादी खतरे का सामना करने के लिए ए0आई0एस0एफ0 ने देशव्यापी सघन अभियान चलाया। फासीवादी खतरे के खिलाफ इस मुहिम के तहत संगठन ने 15 मई 1942 को दिल्ली में एक सफल डिफेंस कंवेंशन का भी आयोजन किया जिसके फौरन बाद 9 अगस्त 1942 से कांग्रेस ने ‘‘भारत छोड़ो‘‘ आंदोलन का आवाह्न कर दिया।
पूरी दुनिया में फासीवादी खतरे और भारतीय सीमा पर खड़ी हिटलर की सहयोगी जापानी फौजों के कारण ए0आई0एस0एफ0 ‘‘भारत छोड़ो‘‘ आंदोलन और उसके समय से सहमत नहीं था। बावजूद इसके ए0आई0एस0एफ0 ने आंदोलन के दौरान गिरफ्तार राजनेताआंे की रिहाई के लिए देशव्यापी आन्दोलन चलाया। इसी के साथ ए0आई0एस0एफ0 ने जापानी खतरे का सामना करने के लिए आसाम, बंगाल और मणिपुर के सीमावर्ती इलाकों में सशस्त्र और बिना हथियारांे के जत्थों का गठन किया।
1943 में देश बडे़ अकाल की चपेट में आ चुका था। बम्बई, आसाम, बंगाल, उड़ीसा, बिहार और मद्रास आदि बुरी तरह इस अकाल की चपेट में आ चुके थे। जहाँ देश की एक तिहाई आबादी इस अकाल का शिकार थी वहीं बंगाल इस अकाल की सबसे बुरी तरह चपेट में था। ए0आई0एस0एफ0 ने इस संकट के समय में राहत कार्यों में बढ़-चढ़कर भागेदारी की, साथ ही राहत सामग्री और फण्ड के लिए देशव्यापी अभियान भी चलाया। ए0आई0एस0एफ0 ने इस दौरान सस्ता अनाज मुहैया कराने के लिए जहाँ बंगाल में ढेरों सस्ती दर की दुकानंे चलाईं तो वहीं कई सारी रसोइयाँ भी भूखों को खाना खिलाने के लिए चलाई। इस सारे राहत कार्यो में ए0आई0एस0एफ0 के तीन हजार कार्यकर्ताओं ने प्रतिबद्धता के साथ काम किया।
क्रमश:
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