चीनी आक्रमण के प्रतिफल स्वरूप लोगांे के बीच में कम्युनिस्ट पार्टी और कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रति एक गलत संदेश गया। चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में एक समाजवादी व्यवस्था थी और चीन के इस आक्रमण ने समाजवादी विचारधारा पर ही सवालिया निशान लगा दिया। चीनी कम्युनिस्ट नेतृत्व के इस निर्णय ने भारत की कम्युनिस्ट, प्रगतिशील एवं जनवादी ताकतांे के बीच एक स्पष्ट विभाजन की रेखा खींच दी थी। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर भी ऐसी शक्तियों ने विभाजक गतिविधयाँ तेज कर दीं। जिसके परिणाम स्वरूप 1964 में पार्टी में विभाजन हो गया और एक नई पार्टी भा0क0पा0एम0 का उदय हुआ। इस विभाजन ने ए0आई0एस0एफ0 को भी एक गंभीर संकट में धकेल दिया।
वास्तव में यह चीनी संकट देश के कम्युनिस्ट आन्दोलन के लिए दोहरा संकट लेकर आया। एक कम्युनिस्ट आन्दोलन में विभाजन और दूसरे आर0एस0एस0 जैसे देश की दक्षिणपंथी और फासीवादी ताकतों को कम्युनिस्ट, प्रगतिशील और जनवादी आन्दोलन पर हमले का सुनहरा मौका मिल गया था। ए0आई0एस0एफ0 की नियमित गतिविधियों के लिए यह एक झटका था। विभाजक शक्तियों ने संगठन की सभी परम्पराओं, नियमों और विचारधारात्मक परम्पराओं को ताक पर रख कर सामानान्तर संगठन खड़ा करने का काम किया। उन्होनंे प्रत्येक स्तर पर सामानान्तर संगठन बनाने अपना साहित्य छापने, समाचार पत्र, पत्रिकाएँ छापने का काम प्रारम्भ कर दिया। ए0आई0एस0एफ0 को भारी नुकसान हो रहा था और यह नुकसान प0 बंगाल, आन्ध्र प्रदेश और केरल में कहीं अधिक था, हालाँकि यह नुकसान लगभग सभी राज्यांे में हो रहा था।
आर0एस0एस0 और जनसंघ ने इस मौके का देश भर में कम्युनिस्ट विरोधी माहौल बनाने में भरपूर लाभ उठाया। परन्तु ए0आई0एस0एफ0 और भा0क0पा0 द्वारा चीनी आक्रमण की स्पष्ट निन्दा किए जाने से स्थिति काफी हद तक सँभली और साथ ही देश की अन्य प्रगतिशील ताकतों ने भी इस समय काफी सहायता की। सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा भारत पर चीनी आक्रमण की आलोचना की गई और देश के
प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू के दक्षिणपंथी छलावांे में नही फँसने के कारण भी स्थिति में काफी हद तक सुधार हुआ। भा0क0पा0 से अलग होकर सी0पी0एम0 बनाने वाले पार्टी विभाजकांे ने छात्र आंदोलन सहित सभी जनांदोलनों में फूट की नींव रख दी थी। 1970 में ए0आई0एस0एफ0 से टूटकर जाने वालों ने एस0एफ0आई0 नामक छात्र संगठन का गठन किया।
ए0आई0एस0एफ0 का पुनर्गठन 1964-66
ए0आई0एस0एफ0 के पुनर्गठन का निर्णय किया गया और 1964 में केरल, बिहार, आन्ध्र प्रदेश और चंडीगढ़ में राज्य सम्मेलनों का आयोजन किया गया। कई राज्यों में राज्य इकाइयों का गठन किया गया। हिंद महासागर में अमेरिकी नौसेना के प्रवेश के खिलाफ बिहार स्टूडेन्ट्स फेडरेशन ने यू0एस0आई0एस0 पर प्रदर्शन किया। चीनी आक्रमण के अस्थाई प्रभाव के बाद यूथ स्टूडेन्ट्स आन्दोलन में फिर उभार दिखने लगा। 1965 में एक यूथ स्टूडेन्ट्स कैडर मीटिंग का आयोजन दिल्ली में किया गया। इस बैठक में आसाम, बंगाल, बिहार, उडीसा, पंजाब, आन्ध्र प्रदेश, केरल और दिल्ली में सम्पन्न राज्य सम्मेलनांे का विशेष उल्लेख किया गया। जब साठ के दशक में छात्र-नौजवान आन्दोलन में एक उभार दिखने लगा था उसी समय 1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध की शुरुआत हो गई, जिसके कारण अंध राष्ट्रवादी दक्षिणपंथी ताकतों को भारत-सोवियत संघ की दोस्ती के खिलाफ प्रचार का मौका मिल गया। परन्तु कामयाब ताशकंद संधि ने इस अभियान को विफल कर दिया। भारत-पाकिस्तान के इस युद्ध के समय ए0आई0एस0एफ0 ने देश की रक्षा के लिए छात्रों और नौजवानों को आगे आने का आवाह्न किया। यह ऐसा समय था जिसमें विघटनकारी शक्तियाँ काफी सक्रिय हो र्गइं और भाषाई विघटनकारी शक्तियों ने हिन्दी और गैर हिन्दी लोगों के बीच तनाव पैदा करके भाषाई आधार पर दंगे भड़काने का काम किया।
पूरे देश में आर्थिक स्थितियाँ बद से बदतर हो रही थीं। सरकार ने आम जनता पर ढेरों कर लाद दिए थे। भारत ने इसी समय पी0एल0 480 समझौते के तहत अमेरिका से गेहूँ आयात किया। चैथी पंचवर्षीय योजना स्थगित कर दी गई। विश्व बैंक के दबाव में रुपये का अवमूल्यन किया गया। देश पर कर्ज 1300 करोड़ रुपए की बड़ी रकम तक पहँुच गया। बड़े पूँजीपतियों और एकाधिकारियों को बड़ी छूट दी गई जिससे उन्होनें खुले तौर पर आमजन के हितांे पर कुठाराघात कराने शुरू कर दिए। आम आवश्यकता की वस्तुओं के दामो में भारी बढ़ोŸारी हुई जिससे आम आदमी का जीना दूभर हो गया। सरकार की नीतियों के खिलाफ जनाक्रोश दिन पर दिन बढ़ता जा रहा था। छात्र और नौजवान बड़ी संख्या में सरकारी नीतियों के खिलाफ सड़कांे पर उतर रहे थे। सरकार के खिलाफ इस गुस्से की अभिव्यक्ति आम चुनावों में भी दिखाई पड़ रही थी। 1967 के आम चुनावों में कांग्रेस को 17 में से 9 राज्यांे में करारी हार का मुँह देखना पड़ा। इसके अलावा देश में छात्रांे और नौजवानांे ने कई महत्वपूर्ण आंदोलनों की अगुवाई की, इसमें बंगाल में 1965 का आंदोलन और बिहार का अगस्त आन्दोलन प्रमुख थे जिसमें सरकार की दमनकारी नीतियों के कारण कई छात्रों ने अपनी जानों की कुर्बानी दी।
संयुक्त सम्मेलन
ए0आई0एस0एफ0 और ए0आई0वाई0एफ0 ने 29 दिसम्बर 1965 से 3 जनवरी 1966 को पांडेचेरी में संयुक्त सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन ने भारत-पाक ताशकन्द समझौते का समर्थन करते हुए उसमें सोवियत संघ की भूमिका की भी सराहना की। इसी सम्मेलन में दोनों संगठनांे ने अपने आपको एक दूसरे से संबद्ध घोषित किया। जून 1966 में सरकार ने विश्व बैंक के दबाव में रुपए का अवमूल्यन किया जिससे पूरे देश में सरकार के खिलाफ आंदोलनांे की बाढ़ सी आ गई। 1966 में पूरे समय देश भर में आंदोलन चलते रहे । सितम्बर 1966 में भा0क0पा0 ने संसद मार्च का नारा दिया जिसमें ए0आई0एस0एफ0 ने बढ़-चढ़कर बड़ी तादाद में शिरकत की। सितम्बर-अक्टूबर 1966 में पूरे उत्तर प्रदेश में सरकार विरोधी आंदोलन शुरू हो गए। जिसमें सैंकड़ांे छात्र नौजवान घायल हुए, दर्जनों शहीद हुए और 6000 के लगभग लोगों को जेल जाना पड़ा। कानपुर में एक कालेज प्रधानाचार्य की हत्या हो गई। हत्या के आरोप में कुछ छात्रों को जेल जाना पड़ा। स्टूडेन्ट्स फेडरेशन ने इसके खिलाफ एक मुहिम छेड़ दी। जिसके कारण छात्रांे का दमन शुरू हो गया और दो दिन तक कानपुर में गोलीबारी हुई। यू0पी0 के गर्वनर ने कहा कि यदि ए0आई0एस0एफ0 अपना आंदोलन वापस नहीं लेता है तो इसी तरह दमन और गोलीबारी जारी रहेगी। प्रतिक्रिया स्वरूप यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया। 15 अक्टूबर 1966 को पूरे देश में प्रतिरोध दिवस के रूप में मनाया गया।
छात्रों की विभिन्न माँगांे के लिए 4 नवम्बर 1966 को एक व्यापक आधार वाली संयुक्त स्टूडेन्ट्स कमेटी का गठन किया। विभिन्न छात्र समस्याओं और माँगांे को लेकर कमेटी ने 18 नवम्बर 1966 को दिल्ली मार्च का निर्णय किया। सरकार ने इसे एक धमकी की तरह समझकर इस छात्र आंदोलन को कुचलने के उपाय शुरू किए। दिल्ली और आसपास के छात्र नेताओं को रातो-रात गिरफ्तार कर लिया गया। दिल्ली आने के रास्ते बन्द कर दिए गए, दिल्ली की सीमाओं पर भी अवरोध खड़े किए गए। हजारों छात्रों को दिल्ली पहुँचने के रास्ते में ही पकड़ लिया गया। इसी कड़ी में पूरे बिहार में भी विरोध की आग भड़क उठी जो नवम्बर 1966 से जनवरी 1967 तक अभूतपूर्व ऊँचाई पर थी। विभिन्न राज्यों में भी राज्य स्तरीय छात्र एक्शन कमेटी का गठन किया गया। जिसने 8 दिसम्बर 1966 को माँग दिवस के रूप में मनाया। समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर में पुलिस ने छात्रांे पर जबरदस्त ज्यादतियाँ कीं। पटना और उसके आसपास के इलाकों में भी बड़ी संख्या में छात्रांे की गिरफ्तारियाँ हुईं।
1967 के चुनाव और उसके बाद का समय
1967 में सम्पन्न चैथे आम चुनाव में आजादी के बाद कांग्रेस को पहली बार हार का मुँह देखना पड़ा। बहुमत राज्यांे में कांग्रेस की हार हुई, 17 में से 9 राज्यों में कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ा। बहुमत राज्यांे में विपक्षी सरकारांे का गठन हुआ, केरल और प0 बंगाल में वामपंथी सरकार का गठन हुआ। देश में बदलते इन हालातों के बीच सरकारी नीतियों के खिलाफ लगातार आन्दोलनांे का दौर जारी रहा। इसी बीच 17 नवम्बर 1969 को ए0आई0एस0एफ0 और ए0आई0वाई0एफ0 ने संयुक्त रूप से बेरोजगारी के खिलाफ अखिल भारतीय संसद मार्च का आवाह्न किया, जिसमें हजारों छात्रों और नौजवानों ने भागीदारी की। इसीके साथ लाखों हस्ताक्षरों के साथ छात्र और नौजवानों द्वारा तैयार एक माँग पत्र भी संसद को दिया गया। असल में यह बेरोजगारी के खिलाफ छात्र-युवा आंदोलन की तीसरी अवस्था थी, इससे पहले दिसम्बर 1968 में छात्र युवाओं ने दिल्ली में एक कंवेंशन आयोजित किया था और देश भर में बेरोजगारी के सवाल पर जत्थे निकाले गए थे।
क्रमश:
वास्तव में यह चीनी संकट देश के कम्युनिस्ट आन्दोलन के लिए दोहरा संकट लेकर आया। एक कम्युनिस्ट आन्दोलन में विभाजन और दूसरे आर0एस0एस0 जैसे देश की दक्षिणपंथी और फासीवादी ताकतों को कम्युनिस्ट, प्रगतिशील और जनवादी आन्दोलन पर हमले का सुनहरा मौका मिल गया था। ए0आई0एस0एफ0 की नियमित गतिविधियों के लिए यह एक झटका था। विभाजक शक्तियों ने संगठन की सभी परम्पराओं, नियमों और विचारधारात्मक परम्पराओं को ताक पर रख कर सामानान्तर संगठन खड़ा करने का काम किया। उन्होनंे प्रत्येक स्तर पर सामानान्तर संगठन बनाने अपना साहित्य छापने, समाचार पत्र, पत्रिकाएँ छापने का काम प्रारम्भ कर दिया। ए0आई0एस0एफ0 को भारी नुकसान हो रहा था और यह नुकसान प0 बंगाल, आन्ध्र प्रदेश और केरल में कहीं अधिक था, हालाँकि यह नुकसान लगभग सभी राज्यांे में हो रहा था।
आर0एस0एस0 और जनसंघ ने इस मौके का देश भर में कम्युनिस्ट विरोधी माहौल बनाने में भरपूर लाभ उठाया। परन्तु ए0आई0एस0एफ0 और भा0क0पा0 द्वारा चीनी आक्रमण की स्पष्ट निन्दा किए जाने से स्थिति काफी हद तक सँभली और साथ ही देश की अन्य प्रगतिशील ताकतों ने भी इस समय काफी सहायता की। सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा भारत पर चीनी आक्रमण की आलोचना की गई और देश के
प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू के दक्षिणपंथी छलावांे में नही फँसने के कारण भी स्थिति में काफी हद तक सुधार हुआ। भा0क0पा0 से अलग होकर सी0पी0एम0 बनाने वाले पार्टी विभाजकांे ने छात्र आंदोलन सहित सभी जनांदोलनों में फूट की नींव रख दी थी। 1970 में ए0आई0एस0एफ0 से टूटकर जाने वालों ने एस0एफ0आई0 नामक छात्र संगठन का गठन किया।
ए0आई0एस0एफ0 का पुनर्गठन 1964-66
ए0आई0एस0एफ0 के पुनर्गठन का निर्णय किया गया और 1964 में केरल, बिहार, आन्ध्र प्रदेश और चंडीगढ़ में राज्य सम्मेलनों का आयोजन किया गया। कई राज्यों में राज्य इकाइयों का गठन किया गया। हिंद महासागर में अमेरिकी नौसेना के प्रवेश के खिलाफ बिहार स्टूडेन्ट्स फेडरेशन ने यू0एस0आई0एस0 पर प्रदर्शन किया। चीनी आक्रमण के अस्थाई प्रभाव के बाद यूथ स्टूडेन्ट्स आन्दोलन में फिर उभार दिखने लगा। 1965 में एक यूथ स्टूडेन्ट्स कैडर मीटिंग का आयोजन दिल्ली में किया गया। इस बैठक में आसाम, बंगाल, बिहार, उडीसा, पंजाब, आन्ध्र प्रदेश, केरल और दिल्ली में सम्पन्न राज्य सम्मेलनांे का विशेष उल्लेख किया गया। जब साठ के दशक में छात्र-नौजवान आन्दोलन में एक उभार दिखने लगा था उसी समय 1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध की शुरुआत हो गई, जिसके कारण अंध राष्ट्रवादी दक्षिणपंथी ताकतों को भारत-सोवियत संघ की दोस्ती के खिलाफ प्रचार का मौका मिल गया। परन्तु कामयाब ताशकंद संधि ने इस अभियान को विफल कर दिया। भारत-पाकिस्तान के इस युद्ध के समय ए0आई0एस0एफ0 ने देश की रक्षा के लिए छात्रों और नौजवानों को आगे आने का आवाह्न किया। यह ऐसा समय था जिसमें विघटनकारी शक्तियाँ काफी सक्रिय हो र्गइं और भाषाई विघटनकारी शक्तियों ने हिन्दी और गैर हिन्दी लोगों के बीच तनाव पैदा करके भाषाई आधार पर दंगे भड़काने का काम किया।
पूरे देश में आर्थिक स्थितियाँ बद से बदतर हो रही थीं। सरकार ने आम जनता पर ढेरों कर लाद दिए थे। भारत ने इसी समय पी0एल0 480 समझौते के तहत अमेरिका से गेहूँ आयात किया। चैथी पंचवर्षीय योजना स्थगित कर दी गई। विश्व बैंक के दबाव में रुपये का अवमूल्यन किया गया। देश पर कर्ज 1300 करोड़ रुपए की बड़ी रकम तक पहँुच गया। बड़े पूँजीपतियों और एकाधिकारियों को बड़ी छूट दी गई जिससे उन्होनें खुले तौर पर आमजन के हितांे पर कुठाराघात कराने शुरू कर दिए। आम आवश्यकता की वस्तुओं के दामो में भारी बढ़ोŸारी हुई जिससे आम आदमी का जीना दूभर हो गया। सरकार की नीतियों के खिलाफ जनाक्रोश दिन पर दिन बढ़ता जा रहा था। छात्र और नौजवान बड़ी संख्या में सरकारी नीतियों के खिलाफ सड़कांे पर उतर रहे थे। सरकार के खिलाफ इस गुस्से की अभिव्यक्ति आम चुनावों में भी दिखाई पड़ रही थी। 1967 के आम चुनावों में कांग्रेस को 17 में से 9 राज्यांे में करारी हार का मुँह देखना पड़ा। इसके अलावा देश में छात्रांे और नौजवानांे ने कई महत्वपूर्ण आंदोलनों की अगुवाई की, इसमें बंगाल में 1965 का आंदोलन और बिहार का अगस्त आन्दोलन प्रमुख थे जिसमें सरकार की दमनकारी नीतियों के कारण कई छात्रों ने अपनी जानों की कुर्बानी दी।
संयुक्त सम्मेलन
ए0आई0एस0एफ0 और ए0आई0वाई0एफ0 ने 29 दिसम्बर 1965 से 3 जनवरी 1966 को पांडेचेरी में संयुक्त सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन ने भारत-पाक ताशकन्द समझौते का समर्थन करते हुए उसमें सोवियत संघ की भूमिका की भी सराहना की। इसी सम्मेलन में दोनों संगठनांे ने अपने आपको एक दूसरे से संबद्ध घोषित किया। जून 1966 में सरकार ने विश्व बैंक के दबाव में रुपए का अवमूल्यन किया जिससे पूरे देश में सरकार के खिलाफ आंदोलनांे की बाढ़ सी आ गई। 1966 में पूरे समय देश भर में आंदोलन चलते रहे । सितम्बर 1966 में भा0क0पा0 ने संसद मार्च का नारा दिया जिसमें ए0आई0एस0एफ0 ने बढ़-चढ़कर बड़ी तादाद में शिरकत की। सितम्बर-अक्टूबर 1966 में पूरे उत्तर प्रदेश में सरकार विरोधी आंदोलन शुरू हो गए। जिसमें सैंकड़ांे छात्र नौजवान घायल हुए, दर्जनों शहीद हुए और 6000 के लगभग लोगों को जेल जाना पड़ा। कानपुर में एक कालेज प्रधानाचार्य की हत्या हो गई। हत्या के आरोप में कुछ छात्रों को जेल जाना पड़ा। स्टूडेन्ट्स फेडरेशन ने इसके खिलाफ एक मुहिम छेड़ दी। जिसके कारण छात्रांे का दमन शुरू हो गया और दो दिन तक कानपुर में गोलीबारी हुई। यू0पी0 के गर्वनर ने कहा कि यदि ए0आई0एस0एफ0 अपना आंदोलन वापस नहीं लेता है तो इसी तरह दमन और गोलीबारी जारी रहेगी। प्रतिक्रिया स्वरूप यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया। 15 अक्टूबर 1966 को पूरे देश में प्रतिरोध दिवस के रूप में मनाया गया।
छात्रों की विभिन्न माँगांे के लिए 4 नवम्बर 1966 को एक व्यापक आधार वाली संयुक्त स्टूडेन्ट्स कमेटी का गठन किया। विभिन्न छात्र समस्याओं और माँगांे को लेकर कमेटी ने 18 नवम्बर 1966 को दिल्ली मार्च का निर्णय किया। सरकार ने इसे एक धमकी की तरह समझकर इस छात्र आंदोलन को कुचलने के उपाय शुरू किए। दिल्ली और आसपास के छात्र नेताओं को रातो-रात गिरफ्तार कर लिया गया। दिल्ली आने के रास्ते बन्द कर दिए गए, दिल्ली की सीमाओं पर भी अवरोध खड़े किए गए। हजारों छात्रों को दिल्ली पहुँचने के रास्ते में ही पकड़ लिया गया। इसी कड़ी में पूरे बिहार में भी विरोध की आग भड़क उठी जो नवम्बर 1966 से जनवरी 1967 तक अभूतपूर्व ऊँचाई पर थी। विभिन्न राज्यों में भी राज्य स्तरीय छात्र एक्शन कमेटी का गठन किया गया। जिसने 8 दिसम्बर 1966 को माँग दिवस के रूप में मनाया। समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर में पुलिस ने छात्रांे पर जबरदस्त ज्यादतियाँ कीं। पटना और उसके आसपास के इलाकों में भी बड़ी संख्या में छात्रांे की गिरफ्तारियाँ हुईं।
1967 के चुनाव और उसके बाद का समय
1967 में सम्पन्न चैथे आम चुनाव में आजादी के बाद कांग्रेस को पहली बार हार का मुँह देखना पड़ा। बहुमत राज्यांे में कांग्रेस की हार हुई, 17 में से 9 राज्यों में कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ा। बहुमत राज्यांे में विपक्षी सरकारांे का गठन हुआ, केरल और प0 बंगाल में वामपंथी सरकार का गठन हुआ। देश में बदलते इन हालातों के बीच सरकारी नीतियों के खिलाफ लगातार आन्दोलनांे का दौर जारी रहा। इसी बीच 17 नवम्बर 1969 को ए0आई0एस0एफ0 और ए0आई0वाई0एफ0 ने संयुक्त रूप से बेरोजगारी के खिलाफ अखिल भारतीय संसद मार्च का आवाह्न किया, जिसमें हजारों छात्रों और नौजवानों ने भागीदारी की। इसीके साथ लाखों हस्ताक्षरों के साथ छात्र और नौजवानों द्वारा तैयार एक माँग पत्र भी संसद को दिया गया। असल में यह बेरोजगारी के खिलाफ छात्र-युवा आंदोलन की तीसरी अवस्था थी, इससे पहले दिसम्बर 1968 में छात्र युवाओं ने दिल्ली में एक कंवेंशन आयोजित किया था और देश भर में बेरोजगारी के सवाल पर जत्थे निकाले गए थे।
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