Saturday, 10 December 2011

संप्रग सरकार के शासन में भ्रष्टाचार जबर्दस्त ढंग से बढ रहा है और पढ़ें: http://aajtak.intoday.in/story.php/content/view/56859/13/0/CPI-to-witness-le

पश्चिम बंगाल के हाल के विधानसभा चुनावों में मुंह की खाने के बाद भाकपा ने इसे चुनावी हार के साथ साथ ‘राजनीतिक शिकस्त’ करार देते हुए नेतृत्व परिवर्तन के संकेत दिये हैं. भाकपा महासचिव ए बी बर्धन ने पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘हमने पांचों राज्यों के हाल के चुनावी नतीजों विशेषकर पश्चिम बंगाल में अपने प्रदर्शन पर विस्तार से चर्चा की. हम इसे सिर्फ चुनावी हार नहीं, बल्कि राजनीतिक शिकस्त भी मानते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘विशेषकर पश्चिम बंगाल के संदर्भ में यह राजनीतिक शिकस्त इसलिये है क्योंकि वहां लगातार 34 वर्ष से वाम मोर्चे के शासन ने हमें राष्ट्रीय राजनीति में मजबूती दी थी. हमारे लिये वहां चुनाव हारना बड़ी राजनीतिक शिकस्त है.’ बर्धन ने संकेत दिये कि मार्च 2012 में पार्टी की पटना में होने वाली राष्ट्रीय कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है. उन्होंने हालांकि कहा कि नेतृत्व परिवर्तन का चुनावी हार से कोई संबंध नहीं होगा.

कम्युनिस्ट नेता ने कहा, ‘पार्टी संविधान कहता है कि कोई भी नेता तीन बार से अधिक महासचिव पद पर नहीं रह सकता. भाकपा में बदलाव होगा क्योंकि मैं अपना कार्यकाल पूरा कर रहा हूं. लेकिन इसका हालिया चुनावी हार से कोई संबंध नहीं होगा. हम हमेशा सामूहिक और व्यक्तिगत स्तर पर जिम्मेदारी लेते हैं.’ इंद्रजीत गुप्ता के वर्ष 1996 में महासचिव पद से हटने के बाद बर्धन भाकपा के शीर्ष पद के लिये चुने गये थे. इस सवाल पर कि क्या पश्चिम बंगाल की पूर्ववर्ती वाम मोर्चा सरकार की भूमि अधिग्रहण नीतियां चुनावी हार के लिये जिम्मेदार रहीं, वर्धन ने कहा, ‘यह हार के विभिन्न कारणों में से एक है.’

भाकपा केरल विधानसभा में 13 और पश्चिम बंगाल में दो ही सीटें जीत पायी है. माना जाता है कि भाकपा की राष्ट्रीय कांग्रेस में बर्धन के हटने की स्थिति में महासचिव पद के मुख्य दावेदार आंध्र प्रदेश के सांसद और पार्टी के उप महासचिव एस सुधाकर रेड्डी होंगे. भाकपा की राष्ट्रीय कांग्रेस हर तीन वर्ष में एक बार होती है.

केरल विधानसभा चुनाव में वाम मोर्चे के प्रदर्शन पर पार्टी का क्या रुख है, इस सवाल पर बर्धन ने कहा, ‘वहां हर विधानसभा चुनाव में सरकार बदल जाती थी लेकिन इस बार हम इस चलन को तोड़ने के बेहद करीब थे. वहां हम छोटे से अंतर के कारण सरकार नहीं बना पाये.’ बर्धन ने कहा, ‘राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद अगले महीने राष्ट्रीय परिषद की भी बैठक होगी, जिसमें चुनावी प्रदर्शन से जुड़े मुद्दों पर आगे चर्चा की जायेगी. लेकिन चुनावी हार स्वीकार करने के साथ ही हम यह भी महसूस करते हैं कि भारतीय लोकतंत्र का सशक्तिकरण और समाज में सकारात्मक परिवर्तन वाम दलों के बिना नहीं लाया जा सकता.’

भाकपा महासचिव ने कहा कि हम संप्रग सरकार की नीतियों सहित हर उस नीति के खिलाफ लड़ाई जारी रखेंगे जो आम आदमी को नुकसान पहुंचाती है. वाम मोर्चे के सहयोगी दलों के साथ मिलकर संप्रग की नीतियों के खिलाफ जनांदोलन शुरू करने का फैसला किया जायेगा.

उन्होंने कहा कि भाकपा महंगाई, खाद्य सुरक्षा, गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों की योजना आयोग की परिभाषा, भूमि अधिग्रहण नीति और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर संप्रग सरकार के खिलाफ आंदोलन करेगी. बर्धन ने कहा कि संप्रग सरकार के दावों के बावजूद महंगाई बेतहाशा बढ़ रही है. पेट्रोल के दाम बढ़ चुके हैं और अब रसोई गैस के दाम बढ़ाये जाने की तैयारी है.

बर्धन ने कहा कि संप्रग सरकार के शासन में भ्रष्टाचार जबर्दस्त ढंग से बढ रहा है. जब कभी यह सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाने की बात कहती है, कोई नया घोटाला सामने आ जाता है. खाद्य सुरक्षा के बारे में बर्धन ने कहा कि हमारा मानना है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूती देने से ही देश की 75 से 80 फीसदी की आबादी के लिये खाद्यान्न सुनिश्चित किया जा सकता है. संप्रग सरकार लंबे समय इस संबंध में कानून लाने की बात कर रही है लेकिन उसने अब तक वादा पूरा नहीं किया है.

भाकपा महासचिव ने कहा कि तीसरा मुद्दा योजना आयोग द्वारा गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों की संख्या तय करने के लिये आंकड़े निर्धारित करने का है. हमारा मानना है कि शहरों में 20 रुपये प्रतिदिन से कम आमदनी वालों और गांवों में 15 रुपये प्रतिदिन से कम कमाने वालों को गरीब मानने का मानदंड ‘मजाक’ है.

वाम नेता ने कहा कि अगर यह पैमाना अपनाया गया तो इससे 20 और 15 रुपये से कुछ ही अधिक कमाने वाले गरीब योजनाओं के दायरे से बाहर हो जायेंगे. वर्धन ने कहा कि हम उपजाउ कृषि भूमि का जबर्दस्ती अधिग्रहण करने के खिलाफ भी संप्रग सरकार पर दबाव बनायेंगे.

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