भाकपा राज्य सचिव मंडल ने बांदा जनपद के वरिष्ठ कम्युनिस्ट
नेता कामरेड बिहारी लाल के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। 70 वर्षीय
कामरेड बिहारी लाल का आज सुबह निधन हो गया था। वे कई माह से अस्वस्थ चल रहे
थे।
कामरेड बिहारी लाल 1967 में ही , में शामिल हो गये थे। वे एआईएसएफ तथा उत्तर प्रदेश नौजवान सभा के प्रांतीय पदाधिकारी रहे। वे भाकपा की राज्य कौंसिल के सदस्य रहे और बांदा जनपद की कम्युनिस्ट पार्टी के 2011 तक सचिव रहे थे। उन्होंने वहां लोकसभा एवं विधान सभा के चुनाव भी लड़े।
पेशे से अधिवक्ता कामरेड बिहारी लाल ने कभी भी अपने पेशे को जीवनयापन का साधन नहीं बनाया। उनकी वकालत भी शोषित-पीड़ित-दलित जनता और किसान-मजदूरों के हितों के लिए उनके निरन्तर संघर्ष का औजार थी। दलित पृष्ठभूमि से आने वाले कामरेड बिहारी लाल अपनी मार्क्सवाद-लेनिनवाद और भाकपा के प्रति प्रतिबद्धता के चलते आजीवन आर्थिक संकटों से जूझते रहे। उनके निधन से शोषितों-वंचितों ने उनके लिए संघर्ष करने वाले योद्धा को खो ही दिया है, जनपद बांदा की राजनीति में भीएक बड़ी शून्यता पैदा कर दी है।
कामरेड बिहारी लाल कई दशकों से भाकपा के जिला मुख्यालय पर ही निवास करते थे। वहीं उनका आज निधन भी हुआ। उनके निधन का समाचार तेजी से जनपद भर में फैल गया। बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता एवं अधिवक्तागण और आम जनता वहां एकत्रित हो गये और उनको अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। बाद में उनका पार्थिव शरीर भाकपा के झंडे में लपेट कर बबेरू तहसील अंतर्गत उनके पैत्रक गांव लोहरा ले जाया गया, वहां ”समाजवाद लायेंगे शोषण को मार भगायेंगे, कामरेड बिहारी लाल के सपनों को मंजिल तक पहुंचायेंगे“ आदि नारों के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।
भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने बताया कि उनके निधन के समाचार पर पार्टी के राज्य कार्यालय पर भी शोक व्याप्त हो गया और उनके सम्मान में पार्टी का ध्वज झुका दिया गया। अपने लक्ष्य और मिशन के प्रति अद्भुत समर्पण रखने वाले कामरेड बिहारी लाल वहां भाकपा के पूर्व सांसद द्वारा पार्टी छोड़ने पर भी ठस से मस नहीं हुए और भाकपा के संगठन की रक्षा के काम में जुटे रहे। ऐसे साथी के समर्पण की प्रेरणा के साथ उनके समाजवादी व्यवस्था के निर्माण के लक्ष्य को आगे बढ़ा कर ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है।
कामरेड बिहारी लाल 1967 में ही , में शामिल हो गये थे। वे एआईएसएफ तथा उत्तर प्रदेश नौजवान सभा के प्रांतीय पदाधिकारी रहे। वे भाकपा की राज्य कौंसिल के सदस्य रहे और बांदा जनपद की कम्युनिस्ट पार्टी के 2011 तक सचिव रहे थे। उन्होंने वहां लोकसभा एवं विधान सभा के चुनाव भी लड़े।
पेशे से अधिवक्ता कामरेड बिहारी लाल ने कभी भी अपने पेशे को जीवनयापन का साधन नहीं बनाया। उनकी वकालत भी शोषित-पीड़ित-दलित जनता और किसान-मजदूरों के हितों के लिए उनके निरन्तर संघर्ष का औजार थी। दलित पृष्ठभूमि से आने वाले कामरेड बिहारी लाल अपनी मार्क्सवाद-लेनिनवाद और भाकपा के प्रति प्रतिबद्धता के चलते आजीवन आर्थिक संकटों से जूझते रहे। उनके निधन से शोषितों-वंचितों ने उनके लिए संघर्ष करने वाले योद्धा को खो ही दिया है, जनपद बांदा की राजनीति में भीएक बड़ी शून्यता पैदा कर दी है।
कामरेड बिहारी लाल कई दशकों से भाकपा के जिला मुख्यालय पर ही निवास करते थे। वहीं उनका आज निधन भी हुआ। उनके निधन का समाचार तेजी से जनपद भर में फैल गया। बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता एवं अधिवक्तागण और आम जनता वहां एकत्रित हो गये और उनको अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। बाद में उनका पार्थिव शरीर भाकपा के झंडे में लपेट कर बबेरू तहसील अंतर्गत उनके पैत्रक गांव लोहरा ले जाया गया, वहां ”समाजवाद लायेंगे शोषण को मार भगायेंगे, कामरेड बिहारी लाल के सपनों को मंजिल तक पहुंचायेंगे“ आदि नारों के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।
भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने बताया कि उनके निधन के समाचार पर पार्टी के राज्य कार्यालय पर भी शोक व्याप्त हो गया और उनके सम्मान में पार्टी का ध्वज झुका दिया गया। अपने लक्ष्य और मिशन के प्रति अद्भुत समर्पण रखने वाले कामरेड बिहारी लाल वहां भाकपा के पूर्व सांसद द्वारा पार्टी छोड़ने पर भी ठस से मस नहीं हुए और भाकपा के संगठन की रक्षा के काम में जुटे रहे। ऐसे साथी के समर्पण की प्रेरणा के साथ उनके समाजवादी व्यवस्था के निर्माण के लक्ष्य को आगे बढ़ा कर ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है।
0 Comments:
Post a Comment