Friday, 14 December 2012

तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर



तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर,
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!

सुबह औ’ शाम के रंगे हुए गगन को चूमकर,

तू सुन ज़मीन गा रही है कब से झूम-झूमकर,
तू आ मेरा सिंगार कर, तू आ मुझे हसीन कर!
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!…. तू ज़िन्दा है

ये ग़म के और चार दिन, सितम के और चार दिन,

ये दिन भी जाएंगे गुज़र, गुज़र गए हज़ार दिन,
कभी तो होगी इस चमन पर भी बहार की नज़र!
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!…. तू ज़िन्दा है

हमारे कारवां का मंज़िलों को इन्तज़ार है,

यह आंधियों, ये बिजलियों की, पीठ पर सवार है,
जिधर पड़ेंगे ये क़दम बनेगी एक नई डगर
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!…. तू ज़िन्दा है

हज़ार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार पर

मगर तुझे न छल सकी चली गई वो हार कर
नई सुबह के संग सदा तुझे मिली नई उमर
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!…. तू ज़िन्दा है

ज़मीं के पेट में पली अगन, पले हैं ज़लज़ले,

टिके न टिक सकेंगे भूख रोग के स्वराज ये,
मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम,
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!…. तू ज़िन्दा है

बुरी है आग पेट की, बुरे हैं दिल के दाग़ ये,

न दब सकेंगे, एक दिन बनेंगे इन्क़लाब ये,
गिरेंगे जुल्म के महल, बनेंगे फिर नवीन घर!
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!…. तू ज़िन्दा है
 
 
-शैलेन्द्र

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