उत्तर प्रदेश को प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना का गौरव प्राप्त है। बनारस के पास लमही में जन्मे प्रेमचंद ने 1936 में लखनऊ में हुए पहले अधिवेशल की अध्यक्षता की थी। प्रेमचंद ने ही हिन्दी-उर्दू साहित्य को राजमहल से निकाल कर किसान-मजदूर की झोपड़ी में प्रतिष्ठित किया था। प्रेमचंद सज्जाद ज़हीर, डाॅ. रशीद जहां से शुरू हुई जनवादी प्रगतिशील धारा पर आज बाजारवाद साम्प्रदायिकता, जातीयता के हमले हो रहे हैं।
ऐसे समय में जब साहित्य, कला, संस्कृति को उपभोक्ता माल में तब्दील कर दिया गया हो लेखक- संस्कृतिकर्मियों की जिम्मेदारी कहीं अधिक बढ़ जाती है। प्रगतिशील लेखक संघ, उ.प्र. का प्रान्तीय सम्मेलन आगामी 20-21 फरवरी 2010 को वाराणसी में हो रहा है। जहां इन्हीं चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए साहित्यिक, सांस्कृतिक रणनीति पर विचार किया जाएगा। 20 फरवरी 2010 का दिन प्रख्यात अवामी शायर नजीर बनारसी की स्वर्ण जयंती को समर्पित रहेगा। 21 फरवरी 2010 को भोजन से पहले वैचारिक सत्र तथा शाम को सांगठनिक सत्र होगा।
प्रगतिशील लेखक संघ निश्चय ही लेखकों का संगठन है लेकिन देश के किसान-मजदूरों के संघर्ष जहां उनके लेखन को धार देते हैं वहीं उनकी लेखनी संघर्षों को दिशा देती हैं। इसलिए इस रिश्ते को और मजबूत बनाने की जरूरत है।
पार्टी की जिला इकाइयों, जन संगठनों से आग्रह है कि प्रगतिशील लेखक संघ के इस सम्मेलन को सफल बनाने के लिए प्रगतिशील प्रबुद्ध साथियों को प्रेरित करें।
राकेश, महामंत्री, इप्टा, उ. प्र.
संयोजक, सांस्कृतिक प्रकोष्ठ
Friday, 12 February 2010
प्रगतिशील लेखक संघ का प्रान्तीय सम्मेलन
Posted by Randhir Singh Suman at 11:58 am
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