जय, फिर होगी वाम की !
शोषित जनता जागी है
पीड़ित जनता बाग़ी है
आएँ, सड़कों पर आएँ,
क्या अब चिंता धाम की !
ना यह अवसर छोड़ेंगे
काल-चक्र को मोडेंगे
शक्लें बदलेंगे, साथी
मूक सुबह की, शाम की !
नारा अब यह घर-घर है
हर इंसान बराबर है
रोटी जन-जन खाएगा
अपने-अपने काम की !
झेलें गोली सीने से
लथपथ ख़ून-पसीने से
इज़्ज़त कभी घटेगी ना
‘मेहनतकश’ के नाम की !
- महेंद्र भटनागर
0 Comments:
Post a Comment