Friday, 16 July 2010

अलविदा कामरेड हुकम सिंह भण्डारी

टिहरी षहर के ठीक सामने पड़ने वाली पट्टी रैका । दोनों के बीच भीलींगना नदी, भागीरथी की सहायक। पट्टी दोगी की तरह रियासत का एक बेहद गरीब और उपेक्षित इलाका । लोक मान्यताओं के मुताबिक घोषित तौर पर रागस भूमि। राक्षस का विकट क्षेत्र, जिसमें जाने से ऐषतलब देवता भय खाते हैं । देवी-देवता वहां से दूर-दूर, बाहर-बाहर रहते हैं ।उस रैका कीे ऊँचाई पर, पहाड़ की चोटी पर बसे एक गांव पोड़या में बयासी साल पहले हुकमसिंह भण्डारी ने जन्म लिया था ।

अपने गांव से निकलने के बाद भण्डारी ने श्री सरस्वती मिडिल स्कूल लंबगांव में दाखिला ले लिया था, जिसे आज़ाद टिहरी सरकारने हाई स्कूल बना दिया था। इस विद्यालय को टिहरी रियासत के सामंतीष्षासन की ‘‘रियासत के अंदर सिर्फ सरकारी विद्यालयों के चलाए जाने की अनुमति ’’की हिटलरी षिक्षा नीति के विरोध में क्षेत्र की उत्साही जनता आपस में चंदा करके जर्बदस्ती संचालित करने लगी थी । इसके संस्थापकों-संचालकों में ज़्यादातर को सामंती ष्षासन ने गिरफ्तार कर टिहरी जेल में लंबी-लंबी सजाएं और यातनाएं दी थीं । उनमें पुरूषोŸादŸा रतूड़ी (मास्टरजी), खुषहालसिंह रांगड़, नत्थासिंह कष्यप, लक्ष्मी प्रसाद पैन्यूली भी थे ।

लंबगांव से हाईस्कूल करने के बाद भण्डारी मसूरी चले गए थे। उस जमाने में रैका के ज़्यादातर लोग होटलों में काम करने मसूरी चले जाते थे। वहां से स्नातक हो जाने के बाद एम ए की पढ़ाई करने लिए भण्डारी ने देहरादून आकर डीएवी कॉलेज में दाखिला ले लिया। देहरादून में वे कॉ ब्रजेन्द्र गुप्ता के और निकट संपर्क में आए और उनके द्वारा संचालित किए जाने वाले मार्क्सवादी विचारधारा के स्टडी सर्कलों में भाग लेने लगे। डीएवी कॉलेज के अनेक दूसरे विद्यार्थी भी उन स्टडी सर्कलों में भाग लेते हुए कम्युनिस्ट राजनीति से जुड़ने लगे। रूप नेगी, षांति गुप्ता जैसी लड़कियां भी उनमें षामिल थीं । स्टडी सर्कलों में षिरकत करने वाले छात्र एस एफ (स्टूडंेट्ंस फेडरेषन ) के सदस्य के रूप में अपने अध्ययन की बदौलत अपनी-अपनी कक्षाओं में छात्रों के बीच अपनी एक नई छवि का निर्माण करने लगे। मार्क्सवादी विचारधारा के घेार-विरोधी अध्यापक भी उनके अध्ययन के कायल होने लगते थे। दिन में छात्रों के बीच रह कर उनकी रोजमर्रा की समस्याओं का समाधान करने के लिए उन्हें संगठित करने के कार्याें में व्यस्त रहने के बाद वे रात-रात भर गंभीर विषयों पर लिखी पुस्तकों का अध्ययन करने में डूबे रहते। उपन्यास, साहित्य,इतिहास और अर्थषास्त्र के बारे में उनके नई किस्म के विचारों से आम छात्र प्रभावित होने लगे। यह बात पूरे भारत के तत्कालीन एस एफ छात्रों पर लागू होती थी।

सन् 1951 में एस एफ के आंदोलन में भाग लेने के कारण देहरादून प्रषासन ने उसके अनेक सदस्यों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। उनमें टिहरी के हुकमसिंह भण्डारी,विद्यादŸा रतूड़ी, गोविंदसिंह रांगड़, बलदेवसिंह रांगड़, राजेष्वरप्रसाद उनियाल (डाक्टर साहब), गोकुलचन्द रमोला और ललित भण्डारी, पौड़ी गढ़वाल के कॉ भारती और 11 अन्य जिलों के एस एफ सदस्य भी थे । उससे कुछ समय पहले तेज बुखार की हालत में गिरफ्तार करने के बाद संयुक्त प्रान्त(यू0पी0) की सरकार कॉ रूद्रदŸा भारद्वाज को ष्षहीद बना देने का कलंक अपने माथे पर ले चुकी थी। एस एफ के छात्रों को नौ दिनों तक बेवजह जेल में रखने के बाद ही सरकार ने उन्हें रिहा किया। गिरफ्तार होने वाले एस एफ के इन बहादुर लड़ाकू छात्रों के नाम रातों-रात समूचे गढ़वाल और मैदान के निकटवर्ती जिलों में मषहूर हो गए।

देहरादून से एम ए अर्थषास्त्र की डिग्री लेने के बाद कॉ भण्डारी लंबगांव लौट आए । सरस्वती हाई स्कूल में उन्हें अध्यापक बना दिया गया, जहां वे सेेवानिवृŸिा तक कार्यरत रहे । विद्यादŸा रतूड़ी प्रिंसिपल। इन लोगों के अथक परिश्रम की बदौलत उस विद्यालय को बहुत जल्द इंटर कॉलेज की मान्यता प्राप्त हो गई । अपने ज्ञान और सरल स्वभाव के कारण भण्डारी की अपने विद्यार्थियों के बीच बहुत अच्छी छवि बनने लगी । कॉलेज में उनके सहयोगी भी उनकी सम्मतियों को महत्वपूर्ण मानते हुए उनसे प्रभावित होने लगे ।

उनके संपर्क में आने वाले ग्रामीण जन पर भी उनके सरल व्यक्तित्व और मृदु व्यवहार की अमिट छाप पड़ने लगी । कॉ भण्डारी के आमजन को सरल भाव से समझाने का नतीजा था कि टिहरी क्षेत्र के ग्रामीण मतदाताओं ने आम निर्वाचन में कम्युनिस्ट प्रत्याषी कॉ गोविंदंिसंह नेगी को तीन बार विधान सभा में विजयी बना कर अपने प्रतिनिधि के रूप में लखनऊ भेजा ।

बाद के दिनों में क्षेत्रीय जनता के आग्रह पर कॉ भण्डारी को प्रतापनगर क्षेत्र समिति का प्रमुख बनने को सहमत होना पड़ा । कुछ समय पूर्व कॉ भण्डारी के पुराने साथी,देहरादून में सहबन्दी रहे गोकलचन्द रमोला इस क्षेत्र समिति के प्रमुख चुने गए थे । भण्डारी ने अपने कार्यकाल में साधनों की कमी के बावजूद उपेक्षित व अलग-थलग पड़े अनेक इलाकों में सार्वजनिक महत्व के अनेक ऐसे कार्यभी संपन्न करवा दिए, जिनकी ओर तब तक किसी ने तवज्जो नहीं दी थी ।

सेवानिवृŸा होते ही भण्डारी कम्युनिस्ट पार्टी की दैनिक कार्यवाहियों में व्यस्त होने लगे अपने दिन-प्रतिदिन बिगड़ते स्वास्थ्य की परवाह न करते हुए । मिलने वालों साथियों या आमजन को वे अपने स्वास्थ्य के बारे में कभी कुछ बताते ही नहीं थे । उनकी किडनी तक ने जवाब दे दिया था । सिवा आंखों के और जुबान के बाकी ष्षरीर के एक-एक अंग को असाध्य रोगों ने अपनी चपेट में ले लिया था । पार्टी कार्य करने के लिहाज से वे अपने गांव पोड़या से नई टिहरी की कोटी कॉलोनी में आकर निवास करने लगे थे । वहीं से 10 जून 2010 को फोन पर दिल्ली के एक अस्पताल में मेरे एंजियोप्लास्टी किए जाने की जानकारी होने पर उन्हांेने मुझसे बात की । इससे पहले कि मैं उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछूं, उन्होंने फोन रख दिया। अब ,10 जुलाई 2010 को उनके हमें छोड़ कर चले जाने के बाद उनकी वही आवाज लगातार मेरे कानों में गूंजती रहती है ।
लाल सलाम कॉ भण्डारी!

- विद्यासागर नौटियाल

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी

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