कार्ल मार्क्स की बरसी पर उन्हें याद करते हुए लेनिन की एक कविता:
पैरों से रौंदे जाते हैं आज़ादी के फूल
पैरों से
रौंदे जाते हैं आज़ादी के फूल
और अधिक चटख रंगों में
फिर से खिलने के लिए।
जब भी बहता है
मेहनतकश का लहू सड़कों पर,
परचम और अधिक सुर्ख़रू
हो जाता है।
शहादतें इरादों को
फ़ौलाद बनाती हैं।
क्रान्तियाँ हारती हैं
परवान चढ़ने के लिए।
गिरे हुए परचम को
आगे बढ़कर उठा लेने वाले
हाथों की कमी नहीं होती।
- व्लीदिमीर इलीच लेनिन
पैरों से रौंदे जाते हैं आज़ादी के फूल
पैरों से
रौंदे जाते हैं आज़ादी के फूल
और अधिक चटख रंगों में
फिर से खिलने के लिए।
जब भी बहता है
मेहनतकश का लहू सड़कों पर,
परचम और अधिक सुर्ख़रू
हो जाता है।
शहादतें इरादों को
फ़ौलाद बनाती हैं।
क्रान्तियाँ हारती हैं
परवान चढ़ने के लिए।
गिरे हुए परचम को
आगे बढ़कर उठा लेने वाले
हाथों की कमी नहीं होती।
- व्लीदिमीर इलीच लेनिन
पैरों से
रौंदे जाते हैं आज़ादी के फूल
और अधिक चटख रंगों में
फिर से खिलने के लिए।
जब भी बहता है
मेहनतकश का लहू सड़कों पर,
परचम और अधिक सुर्ख़रू
हो जाता है।
शहादतें इरादों को
फ़ौलाद बनाती हैं।
क्रान्तियाँ हारती हैं
परवान चढ़ने के लिए।
गिरे हुए परचम को
आगे बढ़कर उठा लेने वाले
हाथों की कमी नहीं होती।
- व्लीदिमीर इलीच लेनिन
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