Thursday 25 March, 2010

तू जिंदा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर


तू जिंदा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर। तू जिंदा है ....

ये ग़म के और चार दिन, सितम के और चार दिन,
ये दिन भी जायेंगे गुज़र, गुज़र गए हज़ार दिन।
कभी तो होगी इस चमन पे भी बहार की नज़र,
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर। तू जिंदा है...

हमारे कारवां को मंजिलों का इंतज़ार है,
ये आँधियों, ये बिजलियों की पीठ पर सवार है।
तू आ कदम मिला के चल, चलेंगे एक साथ हम,
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर. तू जिंदा है ...

ज़मीं के पेट में पली अगन, पले हैं ज़लज़ले,
टिके न टिक सकेंगे भूख रोग के स्वराज ये,
मुसीबतों के सर कुचल चलेंगे एक साथ हम,
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर। तू जिंदा है...

बुरी है आग पेट की, बुरे हैं दिल के दाग ये,
न दब सकेंगे, एक दिन बनेंगे इन्कलाब ये,
गिरेंगे ज़ुल्म के महल, बनेंगे फिर नवीन घर,
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर. तू जिंदा है...

Tuesday 23 March, 2010

वीर भगत सिंह आज अगर, उस देश की तुम दुर्दशा देखते


शहीद दिवस के अवसर पर विशेष

जिस पर अपना सर्वस्व लुटाया, जिसके खातिर प्राण दिए थे।
वीर भगत सिंह आज अगर, उस देश की तुम दुर्दशा देखते॥
आँख सजल तुम्हारी होती, प्राणों में कटु विष घुल जाता।
पीड़ित जनता की दशा देखकर, ह्रदय विकल व्यथित हो जाता ॥
जहाँ देश के कर्णधार ही, लाशों पर रोटियाँ सेकते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
तुम जैसे वीर सपूतों ने, निज रक्त से जिसको सींचा था।
यह देश तुम्हारे लिए स्वर्ग से सुन्दर एक बगीचा था॥
अपनी आँखों के समक्ष, तुम कैसे जलता इसे देखते ।
वीर भगत सिंह आज अगर........
जिस स्वाधीन देश का तुमने, देखा था सुन्दर सपना।
फांसी के फंदे को चूमा था, करने को साकार कल्पना॥
उसी स्वतन्त्र देश के वासी, आज न्याय की भीख मांगते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
अपराधी, भ्रष्टों के आगे, असहाय दिख रहा न्यायतंत्र।
धनपशु, दबंगों के समक्ष, दम तोड़ रहा है लोकतंत्र।
जहाँ देश के रखवालों से, प्राण बचाते लोग घुमते॥
वीर भगत सिंह आज अगर........
साम्राज्यवाद का सिंहासन, भुजबल से तोड़ गिराया था
देश के नव युवकों को तुमने, मुक्ति मार्ग दिखाया था॥
जो दीप जलाये थे तुमने, अन्याय की आंधी से बुझते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
जिधर देखिये उधर आज, हिंसा अपहरण घोटाला है।
अन्याय से पीड़ित जनता, भ्रष्टाचार का बोल बाला है॥
लुट रही अस्मिता चौराहे पर, भीष्म पितामह खड़े देखते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
साम्राज्यवाद के प्रतिनिधि बनकर, देश लुटेरे लूट रहे।
बंधुता, एकता, देश प्रेम के बंधन दिन-दिन टूट रहे॥
जनता के सेवक जनता का ही, आज यहाँ पर रक्त चूसते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
बंधू! आज दुर्गन्ध आ रही, सत्ता के गलियारों से।
विधान सभाएं, संसद शोभित अपराधी हत्यारों से।
आज विदेशी नहीं, स्वदेशी ही जनता को यहाँ लूटते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
पूँजीपतियों नेताओं का अब, सत्ता में गठजोड़ यहाँ।
किसके साथ माफिया कितने, लगा हुआ है होड़ यहाँ ॥
अत्याचारी अन्यायी, निर्बल जनता की खाल नोचते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
शहरों, गाँवों की गलियों में, चीखें आज सुनाई देती।
अमिट लकीरें चिंता की, माथों पर साफ़ दिखाई देती॥
घुट-घुट कर मरती अबलाओं के, प्रतिदिन यहाँ चिता जलते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
घायल राम, मूर्छित लक्ष्मण, रावण रण में हुंकार रहा।
कंस कृष्ण को, पांडवों को, दुःशासन ललकार रहा॥
जनरल डायर के वंशज, आतंक मचाते यहाँ घूमते।
वीर भगत सिंह आज अगर, उस देश की तुम दुर्दशा देखते॥


-मोहम्मद जमील शास्त्री
( सलाहकार लोकसंघर्ष पत्रिका )
शहीद दिवस के अवसर पर भगत सिंह, राजगुरु सहदेव को लोकसंघर्ष परिवार का शत्-शत् नमन

Tuesday 16 March, 2010

लो क सं घ र्ष !: उक्रेन में राष्ट्रपति चुनावः अमरीकी साम्राज्यवाद के लिए एक झटका

1990-91 में विश्व में एकध्रुवीय हो जाने और अमरीका का इसका अगुआ बन जाने के बाद से ही उसने विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। लेकिन यूरोप और खासकर पूर्वी यूरोप पर उसका विशेष ध्यान है। इस अभियान में उसने सर्वप्रथम युगोस्वालिया को सभी अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और मान्यताओं की अवहेलना करते हुए कई भागों में विभक्त कर दिया। इसके साथ ही उसका दूसरा निशाना उन राष्ट्रों पर था, जो पहले समाजवादी खेमों के सदस्य थे। इस मुहिम में इन राष्ट्रों को नाटो सैनिक संगठन में सम्मिलित करना शामिल थे। इसके साथ ही मध्य एशिया के राष्ट्रों और इनके माध्यम से कैस्पियन सागर के तेल सम्पदा पर अधिकार जमाना इनकी नीति का भाग था।
शुरू में उसे कुछ सफलता भी मिली, जैसे कि बुल्गारिया, पोलैंड, रूमानिया आदि को नाटो का सदस्य बनाया गया और इनमें से कुछ में अमरीकी नाटो फौजी अड्डे भी स्थापित किये गये। लेकिन अभियान के इस क्रम में उसे बड़ा झटका ज्याॅर्जिया संकट के रूप में लगा। लम्बे समय से अमरीका उक्रेन को नाटो में शामिल करने के लिए प्रयत्नशील है। इस संबंध में उतार-चढ़ाव होता रहा है।
उक्रेन में अभी-अभी राष्ट्रपति का आम चुनाव संपन्न हुआ है। वहां की चुनाव प्रणाली के अनुसार राष्ट्रपति प्रत्यक्ष वोटरों द्वारा दो चरणों में चुना जाता है। पहले चरण में कई उम्मीदवार लड़ सकते हैं। यदि किसी को 50 प्रतिशत से अधिक नहीं मिला तो दो अधिक मत पाने वाले दूसरे चरण में लड़ते हैं। इस चुनाव के पहले दौर (31 जनवरी) में विक्टर यानुकोविच और वर्तमान प्रधानमंत्री युलिया तिमोशेको को क्रमशः 35 अज्ञैर 25 प्रशित मत मिले हैं जबकि उक्रेन के नाटों में शामिल करने की नीति के समर्थक वर्तमान राष्ट्रपति युश्चेको को मात्र 5 प्रतिशत ही मत मिल पाए हैं। इसका मतलब था कि अन्तिम दौर में जीतने वाला अमरीका समर्थक नहीं होता। क्योंकि यानुकोविच और तिमोशेकों दोनों ही अमरीका-विरोधी हैं। इस प्रकार उक्रेन को नाटो में शामिल करने के अमरीका मंसूबे पर पूर्ण विराम लग जाएगा। यह अमरीका के लिए बड़ा झटका है। इसके अलावा और अन्य तरह से भी उक्रेन महत्वपूर्ण है। यानुकोविच को मात्र 5 प्रतिशत मत मिलना नाटो सदस्य बनाने की उनकी अमरीका परस्त नीति को रद्द किया जाना है।
कैस्पियन सागर से तेल और गैस की आपूर्ति पश्चिम यूरोप के राष्ट्रों को कई माध्यम से होती है। इसमें रूस, तर्कमेनिस्तान समझौता अजरबैजान के तेल गैस के रूस के रास्ते पश्चिम यूरोप जाने और रूस-तुर्की के रास्ते पश्चिम यूरोप जाने और रूस-तुर्की समझौता जो गैस/तेल को दक्षिण यूरोप भेजेंगे, प्रमुख हैं। येश्चेंका इन सबके खिलाफ थे और वे चाहते थे कि रूस को इन सबसे अलग कर सारी तेल/गैस उक्रेन से ही होकर पश्चिम यूरोप को जाये। लेकिन स्पष्ट रूप से यह सब ख्याली पुलाव बन कर ही रह जायगा।
उपरोक्त तेल राजनीति का सीधा संबंध कैस्पियन सागर के तेल और गैस भंडार से है। पहले वह पूर्व सोवियत संघ की सम्पदा थी। उसके ध्वस्त होने के बाद वह सोवियत संघ से अलग हुए और कैस्पियन सागर से लगे राष्ट्रों की सम्पत्ति है। विभिन्न समझौतों के कारण इस तेल/गैस भंडार पर वर्चस्व स्थापित करना भी एक उद्देश्य रहा है। लेकिन उक्रेन के इस चुनाव से उसकी इस नीति को मुंह की खानी पड़ी है।
यूश्चेंको उक्रेन में सेवास्तोपोल में रूसी सैनिक अड्डे के भी खिलाफ थे। इस सैनिक अड्डे का काला सागर पर वर्चस्व से सम्बंध है। काला सागर से लगे बुल्गारिया और रूमानिया में पहले से ही अमरीका ने सैनिक अड्डा स्थापित कर रखा है और उसका उद्देश्य काला सागर पर अपना दबदबा जमाना है। उसका यह मंसूबा भी धराशायी होता दीख रहा है।
ज्याॅर्जिया के संबंध में भी युश्चेंको/रूस की संकट भत्र्सना के पक्षधर थे। उक्रेन की आने वाली सरकार की इस मामले में भी अलग नीति होगी। कुछ दिन पहले उक्रेन से गुजरने वाली पाइप-लाइन के संबंध में रूस के साथ उक्रेन का संकट हुआ था। ये पाइप-लाइन पश्चिम यूरोप को भी जा रही है और इस संकट का असर पश्चिम यूरोप को पहुंचने वाले तेल और गैैस की आपूर्ति पर पड़ा था। इसलिए पश्चिम यूरोप के देश भी इस संबंध में अमरीका के विरूद्ध और रूस समर्थक नीति रखते हैं। इन सब घटनाओं का यह अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए कि उक्रेन में रूस पक्षी सरकार आने वाली है। लेकिन लड़ने वाले दोनों उम्मीदवारों ने साफ कर दिया है कि उनकी नीति तर्कसंगत और उक्रेनपक्षी होगी।
कुल मिलाकर आने वाले दिनों में अमरीकी नीति को इस क्षेत्र में भारी झटका लगने जा रहा है और ओबामा के लिए सांप-छछंुदर की स्थिति उत्पन्न होने वाली है। अगर ओबामा उक्रेन के संबंध में रूस के साथ टकराव की स्थिति पैदा करते हैं तो उनका रूस के साथ संबंध को ‘रिसेट’ करने (सामान्य बनाने) का कार्यक्रम धरा रह जायगा। अगर वह उक्रेन संबंधी नीति पर पीछे हटते हैं तो इसकी विरोधी रिपब्लिकन पार्टी इसकी नींद हराम करेगी।
चुनाव के दूसरे और अंतिम दौर में जिसमें सिर्फ दो सबसे अधिक मत पाने वाले उम्मीदवार ही लड़ते हैं। 7 फरवरी को दूसरे दौर में उक्रेन के विरोधी उम्मीदवार यानुकोविच ने प्रधानमंत्री तिमोशेको को राष्ट्रपति की दौड़ में बहुत थोड़े से मतों से हरा दिया। यानुकोविच को 48.40 तथा तिमोशेको को 45.99 प्रतिशत मत मिले। पश्चिमी देशों ने अपनी निराशा स्पष्ट की है। यूरोपीय संसद की परिषद के ‘रैपोर्टियर’ ने चुनावी नतीजे को ‘त्रासदी’ करार दिया है।
चुनाव नतीजे यानुकोविच के लिए नाटकीय वापसी है। वे भूतपूर्व प्रधानमंत्री हैं। 2004 के चुनावों में पश्चिम के हस्तक्षेप से चुनावी नतीजे उनके विरोध में गए जिसे “नारंगी क्रांति“ (!) कहा गया।
अब वे राष्ट्रपति के रूप में वापस आ गए हैं। जाहिर है उक्रेन दृढ़तापूर्वक पश्चिम-विरोध पर चलेगा; कम से कम संभावना तो यही लगती हैं।

भारत भूषण प्रसाद

Thursday 11 March, 2010

लो क सं घ र्ष !: हम डाक्टर भेजते हैं, सैनिक नहीं


हैती में प्राकृतिक आपदा, जिसने हमारे इस पड़ोसी देश को तबाह कर दिया, के दो दिन बाद 14 जनवरी 2010 को मैंने लिखा था, “स्वास्थ्य एवं अन्य क्षेत्रों में हैती के लोगों को क्यूबा का सहयोग मिला है यद्यपि वह एक छोटा सा और प्रतिबंधित देश है। हमारे करीब 400 डाक्टर और स्वास्थ्यकर्मी निःशुल्क हैती के लोगों की मदद कर रहे हैं। हमारे डाक्टर उस देश के 237 में 227 कम्यूनों में प्रति दिन काम कर रहे हैं। इसके अलावा हैती में 400 युवाओं को हमारे देश ने मेडिकल ग्रेज्युएट बना कर भेजा है। वे अब अपने देश में लोगों की जान बचाने के लिए काम करेंगे। इस प्रकार एक हजार डाक्टर और स्वास्थ्य कर्मी बिना किसी विशेष प्रयास के वहां तैनात किये जा सकते हैं तथा उनमें से अधिकांश पहले से वहां हैं जो किसी भी अन्य देश के साथ सहयोग करने के लिए तैयार हैं जो हैती के लोगों की जान बचाना चाहते हैं।“

“हमारे मेडिकल ब्रिगेड के प्रधान ने सूचित किया है कि वहां स्थिति कठिन है लेकिन हम लोगों की जान बचा रहे हैं।“

क्यूबा के स्वास्थ्यकर्मी दिन रात घंटों जो भी सुविधाएं वहां उपलब्ध हैं - शिविरों में या पार्कों में खुले आसमान के नीचे बिना रूके लगातार काम कर रहे हैं चूंकि वहां के लोगों को फिर भूकंप आने की आशंका थी। जितना पहले सोचा गया था, स्थिति उससे कहीं ज्यादा भयावह है। पोर्ट-ओ-प्रिंस की सड़कों पर हजारों घायल लोग सहायता के लिए गुहार लगा रहे हैं। अनगिनत लोग जिंदा या मुर्दा ढह गये मकानों के मलबे में दबे हुए हैं। बहुत ठोस मकान भी धराशायी हो गये।

संयुक्त राष्ट्र के कुछ अधिकारी भी अपने कमरों में फंस गये तथा दसियों लोगों की जानें चली गयी जिनमें संयुक्त राष्ट्र दल की टुकड़ी मिनुस्था के अनेक प्रमुख अधिकारी भी शामिल थे। संयुक्त राष्ट्र के अन्य सैकड़ों कर्मचारियों का कोई अता-पता नहीं है।

हैती के राष्ट्रपति का महल ढह गया तथा अनेक अस्पताल और अन्य सार्वजनिक दफ्तर नष्ट हो गये।

इस अभूतपूर्व प्राकृतिक आपदा को देखकर सारा विश्व स्तब्ध रह गया। दुनिया भर के लोगों ने प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय टीवी नेटवर्कों पर वहां की तबाही का मंजर देखा। विश्व भर की सरकारों ने बचाव दलों, खाद्य सामग्रियों, दवाइयों, उपकरण एवं अन्स संसाधन भेजने की घोषणा की। क्यूबा द्वारा की गयी सार्वजनिक रूप से घोषणा के अनुरूप स्पेन, मेक्सिको, कोलम्बिया एवं अन्य देशों के मेडिकल स्टाफ ने हमारे डाक्टरों के साथ मिलकर कड़ी मेहनत की। पीएएचओ जैसे संगठनों तथा वेनेजुएला जैसे दोस्ताना देशों ने दवा एवं अन्य समान भेजे। क्यूबा के पेशेवरों एवं उनके नेताओं ने बिना किसी प्रचार और ताम-झाम के काम किया।

क्यूबा ने ऐसी ही परिस्थिति में जब न्यू ओर्लीन्स शहर में भयंकर तूफान आया था और हजारों अमरीकी नागरिकों की जान खतरे में थी, तो वहां के लोगों के साथ सहयोग करने के लिए अमरीका जैसे देश में जो अपने विशाल संसाधनों के लिए जाना जाता है, एक पूरा मेडिकल ब्रिगेड भेजने की पेशकश की थी। उस समय प्रशिक्षित एवं साज समानों से परिपूर्ण डाक्टरों की जरूरत थी ताकि लोगों की जान बचायी जा सके। न्यू ओर्लीन्स की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए “हेनरी रीव“ टुकड़ी के एक हजार से अधिक डाक्टरों को तैयार रखा गया जो अपने साथ जरूरी दवाइयां एवं अन्य उपकरणों के साथ किसी भी वक्त वहां जाने के लिए तैयार थे। हमने कभी सोचा भी नहीं था कि उस देश के राष्ट्रपति हमारी पेशकश को ठुकरा देंगे और अनेक अमरीकी नागरिकों को मरने देंगे, जिन्हें बचाया जा सकता था। उस देश की सरकार ने शायद यह गलती की कि वह यह नहीं समझ पायी कि क्यूबा के लोग अमरीका के लोगों को अपना दुश्मन नहीं मानते और न ही क्यूबा पर हमले के लिए उन्हें दोषी समझते हैं। वहां की सरकार यह नहीं समझ पा रही थी कि हमारा देश उन लोगों से कुछ पाने की इच्छा नहीं रखता है जो आधी शताब्दी से हमें झुकाने का व्यर्थ प्रयास कर रहे हैं। हैती के संबंध में भी हमारे देश ने अमरीकी अधिकारियों के इस अनुरोध को कि सहयता सामग्रियों एवं जरूरी अन्य चीजों को यथासंभव हैती पहुंचाने के लिए क्यूबा के पूर्वी हिस्से के ऊपर से उड़ने दिया जाये, तुरन्त मान लिया ताकि अमरीका के और हैती के लोगों को जो तबाही से प्रभावित हुए है मदद पहुंच सके।

हमारे लोगों का इस तरह का शानदार नृजातीय चरित्र रहा है।
धीरज के साथ दृढ़ता, यह हमारी विदेश नीति का हमेशा ही विशेषता रही है और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में जो लोग हमारे विरोधी रहे हैं उन्हें भी यह अच्छी तरह मालूम है। क्यूबा इस राय से पूरी तरह एवं दृढ़ता पूर्वक सहमत है कि दक्षिण गोलार्ध के सबसे गरीब देश हैती में जो त्रासदी हुई है वह विश्व के सबसे शक्तिशाली एवं धनी देशों के लिए एक चुनौती है।

हैती विश्व में थोपी गयी औपनिवेशिक, पूंजीवादी और साम्राज्यवादी व्यवस्था की उपज है। हैती की गुलामी तथा बाद की गरीबी बाहर से थोपी गयी है। यह भयंकर भूकंप कोपेनहेगन शिखर सम्मेलन के बाद हुआ जहां संयुक्त राष्ट्र के 192 सदस्य देशों के सर्वाधिक मूलभूत
अधिकारों को कुचल दिया गया। इस त्रासदी के बाद हैती में जल्दबाजी में गैर कानूनी ढंग से लड़के-लड़कियों को गोद लेने की स्पर्धा चल रही है। इसे देखते हुए यूनिसेफ को इन बच्चों को बचाने के लिए निरोधात्मक कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा ताकि ये बच्चे अपनी जड़ों से इस तरह न उखड़ें और अपने अधिकारों को अपने सगे-संबंधियों से पाने से वंचित न हो जायंे। इस त्रासदी में एक लाख से अधिक लोग मारे गये। बड़ी संख्या में लोगों के हाथ, पैर टूट गये या फ्रैक्चर हो गये जिन्हें पुनर्वास की जरूरत है ताकि वे फिर से काम शुरू कर सके।

देश के 80 प्रतिशत हिस्से को फिर से बसाने की जरूरत है। हैती को ऐसी अर्थव्यवस्था की जरूरत है जो उत्पादन क्षमता के अनुसार इतनी विकसित हो कि अपनी जरूरतों को पूरा कर सके। हैती में जिन प्रयासों की जरूरत है उनकी तुलना में यूरोप और जापान का पुनर्निर्माण जो कि उत्पादन क्षमता और लोगों के तकनीकी स्तर पर आधारित था, आसान था। हैती तथा अधिकांश अफ्रीकी देशों और अन्य विकासशील देशों में स्थायी विकास के लिए हालात पैदा करना बहुत जरूरी है। केवल 40 सालों में दुनिया की आबादी नौ अरब हो जायेगी जिसे अभी वायुमंडल परिवर्तन की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वैज्ञानिकों की राय में जलवायु परिवर्तन एक ऐसी वास्तविकता है जिससे बचा नहीं जा सकता।

हैती में आयी त्रासदी के बीच, किसी को पता नहीं क्यों और कैसे अमरीकी नौसेना के हजारों सैनिकों, 82वां एयरबोर्न डिविजन सैनिकों एवं अन्य सैनिकों ने हैती पर कब्जा कर लिया। इससे भी बदतर बात यह है कि न तो संयुक्त राष्ट्र ने और न ही अमरीकी सरकार ने सैनिकों की तैनाती के बारे में विश्व को कुछ बताया।

अनेक सरकारों ने शिकायत की है कि उनके विमानों को हैती में उतरने नहीं दिया गया जो मानवीय एवं तकनीकी संसाधनों को लेकर गये थे।

कुछ देशों ने घोषणा की है कि वे वहां अतिरिक्त सैनिक एवं सैनिक उपकरण भेजेंगे। मेरे विचार में ऐसी घटनाओं से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में जटिलता और अराजकता पैदा होगी जो कि पहले से ही जटिल है। इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र को ऐसे नाजुक मामलों में अग्रणी भूमिका निभाने की जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए।

हमारा देश बिल्कुल एक मानवीय मिशन को पूरा करने में लगा हुआ है। यथासंभव हमारा देश मानवीय एवं अन्य संसाधन वहां भेजेंगा। हमारे लोगों की इच्छा काफी मजबूत हे जिन्हें अपने डाक्टरों और अन्य कर्मियों पर जो वहां काफी महत्वपूर्ण सेवाएं दे रहे हैं, नाज है। हमारे देश को यदि किसी महत्वपूर्ण सहयेाग की पेशकश की जायेगी तो उसे अस्वीकार नहीं किया जायेगा बशर्ते कि वह बिना किसी शर्त के और महत्वपूर्ण हो तथा जिसके लिए हमारे यहां से अनुरोध किया गया हो।

यह कहना उचित होगा कि अभी तक क्यूबा ने जो भी अपने विमान एंव अन्य मानवीय संसाधन हैती के लोगों की सहायता के लिए भेजे वे वहां बिना किसी कठिनाई के पहुंच गये हैं। हम डाक्टर भेजते हैं, सैनिक नहीं।

(23 जनवरी, 2010)

फिडेल कास्ट्रो रूज

Wednesday 10 March, 2010

मार्च 12: दिल्ली में वामपंथी पार्टियों की रैली

वामपथी पार्टियों-भाकपा, भाकपा (मा), आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक तथा आरएसपी ने 12 मार्च 2010 को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक अखिल भारतीय रैली के आयोजन का फैसला किया है।
इस संदर्भ में ए.बी. बर्धन, महासचिव भाकपा, प्रकाश करात, महासचिव, भाकपा (मा.) देवब्रत विश्वास, महासचिव, एआईएफबी तथा टी.जे. चंद्रचूड़न, महासचिव आरएसपी ने निम्नलिखित बयान जारी किया है।
रैली का उद्देश्य जनता की गंभीर और फौरी समस्याओं पर जोर देना और उन्हें हल करने के लिए वामपंथी पार्टियों के द्वारा मांगे बुलंद करना है।
ये मांगे हैं
- खाद्यान्नों और आश्वयक वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोत्तरी को रोकना।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत करना और किसानों को
अधिक अन्न उपजाने में मदद करना।
- भूमि सुधार कदम लागू करना तथा किसानों और आदिवासियों की भूमि की रक्षा करना।
- सबों को काम देना; बेकारी पर रोक लगाने के लिए फौरी कदम उठाना।
- पश्चिम बंगाल में वामपंथ के खिलाफ तूणमूल-माओवादी हिंसा रोकना; जनतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करना।
वामपंकी पार्टियों द्वारा इन समस्याओं के हल के लिए प्रस्तावित उपाय तथा मांगे अलग से दी जा रही हैं।
रैली इन मांगों की पूर्ति के लिए तुरन्त कदम उठाने का आह्वान करेगी।
वामपंथी पार्टियां जनता के सभी हिस्सों से रैली को सफल बनाने का आह्वान करती है।
12 मार्च को रैली की मांगे
मूल्य-वृद्धि पर रोक लगाओ।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली तोड़ना बंद करो और उसे सार्वजनिक एवं प्रभावशाली बनाओ; इस प्रणाली को योजना कमीशन के बोगस गरीबी के आंकड़ों से अलग करो।
- कानून बनाकर पर्याप्त मात्रा में सस्ते खाद्यान्न, दाल, चीनी और पकाने के तेल की सप्लाई की गारंटी करना।
- वादा बाजार और खाद्यान्नों में सट्टेबाजी बन्द करो।
- पेट्रोल और डीजल की कीमतें कम करे और तेल पर कस्टम और एक्साइज ड्यूटियां कम करो।
- जमाखोरों और कालेबाजारियों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी अभियान आरम्भ करो।
- गोदामों और भंडारों में निजी खाद्यान्नों के भंडारों को स्पष्ट लेखाजोखा दो।
रोजगार बढ़ाओ और नौकरियों की रक्षा करो
- महिलाओं के लिए समान वेतन और अधिकारों के साथ शहरी रोजगार गारंटी विधेयक पास करो।
- सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र (पब्लिक सेक्टर) में भर्ती पर पाबंदी हटाओ, एससी/एसटी तथा अपंगों का वर्तमान कोटा पूरा करो।
- कार्यदिवस तथा वेतन बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट में सुधार लाओ।
- मंदी के नाम पर मजदूरों की छंटनी बंद करो।
गरीबों के भूमि संबंधी
अधिकारों की रक्षा करो
और उन्हें बढ़ाओ
- व्यापक पुनर्वितरणीय भूमि सुधार लागू करो; भूमि सुधार को खारिज करना और चकबंदी में ढिलाई बन्द करो।
- सरकार बंजर और बेकार भूमि का गरीबों में बंटवारा करे; इस भूूमि को निगमित (कार्पाेरेट) क्षेत्र को देना बंद करो।
- बेघरबारों/भूमिहीनों और सीमांत किसानों को वासभूमि (बासगीत) और निवास नियम समय में बनाकर दी जाए।
- भूमि अधिग्रहण एक्ट 1894 सुधारा जाए और विस्थापन कम करने तथा उचित मुआवजा देने के लिए एक पुनस्र्थापन विधेयक पास किया जाए; मुनाफे में हिस्सेदारी और काम की सुरक्षा की गारंटी की जाए।
पश्चिम बंगाल के साथ एकजुटता
- पश्चिम बंगाल में तूणमूल- माओवादी गठजोड़ के खिलाफ संघर्ष किया जाए; उनके द्वारा वामपंथी कार्यकर्ताओं एवं हमदर्दों पर की जा रही हिंसा का विरोध किया जाय।
- जनतंत्र की रक्षा करें, हिंसा खत्म करें।

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