Friday 14 December, 2012

तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर



तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर,
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!

सुबह औ’ शाम के रंगे हुए गगन को चूमकर,

तू सुन ज़मीन गा रही है कब से झूम-झूमकर,
तू आ मेरा सिंगार कर, तू आ मुझे हसीन कर!
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!…. तू ज़िन्दा है

ये ग़म के और चार दिन, सितम के और चार दिन,

ये दिन भी जाएंगे गुज़र, गुज़र गए हज़ार दिन,
कभी तो होगी इस चमन पर भी बहार की नज़र!
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!…. तू ज़िन्दा है

हमारे कारवां का मंज़िलों को इन्तज़ार है,

यह आंधियों, ये बिजलियों की, पीठ पर सवार है,
जिधर पड़ेंगे ये क़दम बनेगी एक नई डगर
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!…. तू ज़िन्दा है

हज़ार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार पर

मगर तुझे न छल सकी चली गई वो हार कर
नई सुबह के संग सदा तुझे मिली नई उमर
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!…. तू ज़िन्दा है

ज़मीं के पेट में पली अगन, पले हैं ज़लज़ले,

टिके न टिक सकेंगे भूख रोग के स्वराज ये,
मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम,
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!…. तू ज़िन्दा है

बुरी है आग पेट की, बुरे हैं दिल के दाग़ ये,

न दब सकेंगे, एक दिन बनेंगे इन्क़लाब ये,
गिरेंगे जुल्म के महल, बनेंगे फिर नवीन घर!
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!…. तू ज़िन्दा है
 
 
-शैलेन्द्र

Saturday 1 December, 2012

ध्वज झुका दिया गया

भाकपा राज्य सचिव मंडल ने बांदा जनपद के वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता कामरेड बिहारी लाल के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। 70 वर्षीय कामरेड बिहारी लाल का आज सुबह निधन हो गया था। वे कई माह से अस्वस्थ चल रहे थे।
कामरेड बिहारी लाल 1967 में ही , में शामिल हो गये थे। वे एआईएसएफ तथा उत्तर प्रदेश नौजवान सभा के प्रांतीय पदाधिकारी रहे। वे भाकपा की राज्य कौंसिल के सदस्य रहे और बांदा जनपद की कम्युनिस्ट पार्टी के 2011 तक सचिव रहे थे। उन्होंने वहां लोकसभा एवं विधान सभा के चुनाव भी लड़े।
पेशे से अधिवक्ता कामरेड बिहारी लाल ने कभी भी अपने पेशे को जीवनयापन का साधन नहीं बनाया। उनकी वकालत भी शोषित-पीड़ित-दलित जनता और किसान-मजदूरों के हितों के लिए उनके निरन्तर संघर्ष का औजार थी। दलित पृष्ठभूमि से आने वाले कामरेड बिहारी लाल अपनी मार्क्सवाद-लेनिनवाद और भाकपा के प्रति प्रतिबद्धता के चलते आजीवन आर्थिक संकटों से जूझते रहे। उनके निधन से शोषितों-वंचितों ने उनके लिए संघर्ष करने वाले योद्धा को खो ही दिया है, जनपद बांदा की राजनीति में भीएक बड़ी शून्यता पैदा कर दी है।
कामरेड बिहारी लाल कई दशकों से भाकपा के जिला मुख्यालय पर ही निवास करते थे। वहीं उनका आज निधन भी हुआ। उनके निधन का समाचार तेजी से जनपद भर में फैल गया। बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता एवं अधिवक्तागण और आम जनता वहां एकत्रित हो गये और उनको अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। बाद में उनका पार्थिव शरीर भाकपा के झंडे में लपेट कर बबेरू तहसील अंतर्गत उनके पैत्रक गांव लोहरा ले जाया गया, वहां ”समाजवाद लायेंगे शोषण को मार भगायेंगे, कामरेड बिहारी लाल के सपनों को मंजिल तक पहुंचायेंगे“ आदि नारों के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।
भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने बताया कि उनके निधन के समाचार पर पार्टी के राज्य कार्यालय पर भी शोक व्याप्त हो गया और उनके सम्मान में पार्टी का ध्वज झुका दिया गया। अपने लक्ष्य और मिशन के प्रति अद्भुत समर्पण रखने वाले कामरेड बिहारी लाल वहां भाकपा के पूर्व सांसद द्वारा पार्टी छोड़ने पर भी ठस से मस नहीं हुए और भाकपा के संगठन की रक्षा के काम में जुटे रहे। ऐसे साथी के समर्पण की प्रेरणा के साथ उनके समाजवादी व्यवस्था के निर्माण के लक्ष्य को आगे बढ़ा कर ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है।

Sunday 14 October, 2012

सरकारी ऑफिसरों का सिर फोड़ दो, हम देख लेंगे: अंजान

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अतुल कुमार अंजान
गाजीपुर।। यूपी के गाजीपुर जिले में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में वहां मौजूद किसानों से उन्होंने कानून अपने हाथ में लेने की सलाह दे डाली। अंजान जमीन अधिग्रहण के मुद्दे पर भाषण देते- उन्होंने कहा कि अगर जमीन पर कब्जे का सरकारी आदेश लेकर अधिकारी आएं, तो सबसे पहले उनका सिर फोड़ दो, हम बाद में सब देख लेंगे।

सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव अतुल अंजान ने सोनिया गांधी और कांग्रेस पर भी चुटकी ली। उन्होंने कहा कि रॉबर्ट वाड्रा का मामला सोनिया गांधी के लिए काला धब्बा है। वाड्रा के मामले को कांग्रेस को सबके सामने रखना चाहिए।

उन्होंने संसद और सांसदों पर भी हमला बोला। अंजान ने कहा कि आज ससंद में 70 फीसदी चोर और डाकू पहुंच गए हैं। सलमान खुर्शीद और उनकी पत्नी लुईस खुर्शीद ने तो विकलांगों के हक पर भी डाका डाल दिया है। उन्होंने कहा कि अगर देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह में जरा भी नैतिकता होती तो वह खुर्शीद को कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा देते।

Tuesday 18 September, 2012

20 का प्रदर्शन यूपीए सरकार को देगा मेसेज: राजा


चेन्नै।। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) नेता डी राजा ने कहा कि डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी, मल्टी ब्रैंड रीटेल में एफडीआई और कुछ सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश के फैसलों के खिलाफ राजनीतिक दलों द्वारा बृहस्पतिवार को किए जा रहे प्रदर्शन से केंद्र सरकार को यह मेसेज जाएगा कि वह अपने निर्णय वापस ले वरना उसे नतीजे भुगतने पड़ेंगे।

उन्होंने कहा, 'सरकार का फैसला पूरे देश के हितों के खिलाफ है।' उन्होंने कहा कि इन फैसलों के खिलाफ 20 सितंबर को व्यापक प्रदर्शन किया जाएगा। राजा ने कहा कि सरकार को डीजल की कीमतों में की गई बढ़ोतरी को वापस लेनी चाहिए और मल्टी ब्रैंड रिटेल में एफडीआई के फैसले को त्याग देना चाहिए। 
नवभारत टाइम्स

Thursday 2 August, 2012

वो सुबह कभी तो आएगी



इन काली सदियों के सर से जब रात का आंचल ढलकेगा

जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर झलकेगा

जब अम्बर झूम के नाचेगा जब धरती नगमे गाएगी


वो सुबह कभी तो आएगी

जिस सुबह की ख़ातिर जुग जुग से हम सब मर मर के जीते हैं

जिस सुबह के अमृत की धुन में हम ज़हर के प्याले पीते हैं

इन भूखी प्यासी रूहों पर इक दिन तो करम फ़रमाएगी


वो सुबह कभी तो आएगी


माना कि अभी तेरे मेरे अरमानों की क़ीमत कुछ भी नहीं

मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर इन्सानों की क़ीमत कुछ भी नहीं

इन्सानों की इज्जत जब झूठे सिक्कों में न तोली जाएगी


वो सुबह कभी तो आएगी


दौलत के लिए जब औरत की इस्मत को ना बेचा जाएगा

चाहत को ना कुचला जाएगा, इज्जत को न बेचा जाएगा

अपनी काली करतूतों पर जब ये दुनिया शर्माएगी


वो सुबह कभी तो आएगी


बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर ये भूख के और बेकारी के

टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारादारी के

जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जाएगी


वो सुबह कभी तो आएगी


मजबूर बुढ़ापा जब सूनी राहों की धूल न फांकेगा

मासूम लड़कपन जब गंदी गलियों में भीख न मांगेगा

हक़ मांगने वालों को जिस दिन सूली न दिखाई जाएगी


वो सुबह कभी तो आएगी


फ़आक़ों की चिताओ पर जिस दिन इन्सां न जलाए जाएंगे

सीने के दहकते दोज़ख में अरमां न जलाए जाएंगे

ये नरक से भी गंदी दुनिया, जब स्वर्ग बनाई जाएगी


वो सुबह कभी तो आएगी


जिस सुबह की ख़ातिर जुग जुग से हम सब मर मर के जीते

जिस सुबह के अमृत की धुन में हम ज़हर के प्याले पीते हैं

वो सुबह न आए आज मगर, वो सुबह कभी तो आएगी

वो सुबह न आए आज मगर, वो सुबह कभी तो आएगी


वो सुबह कभी तो आएगी

Thursday 12 July, 2012

हिन्दुस्तान भी मेरा है और पाकिस्तान भी मेरा है / हबीब जालिब




हिन्दुस्तान भी मेरा है और पाकिस्तान भी मेरा है
लेकिन इन दोनों मुल्कों में अमरीका का डेरा है

ऐड की गंदम खाकर हमने कितने धोके खाए हैं
पूछ न हमने अमरीका के कितने नाज़ उठाए हैं

फिर भी अब तक वादी-ए-गुल को संगीनों ने घेरा है
हिन्दुस्तान भी मेरा है और पाकिस्तान भी मेरा है

खान बहादुर छोड़ना होगा अब तो साथ अँग्रेज़ों का
ता बह गरेबाँ आ पहुँचा है फिर से हाथ अंग्रेज़ों का

मैकमिलन तेरा न हुआ तो कैनेडी कब तेरा है
हिन्दुस्तान भी मेरा है और पाकिस्तान भी मेरा है

ये धरती है असल में प्यारे, मज़दूरों-दहक़ानों की
इस धरती पर चल न सकेगी मरज़ी चंद घरानों की

ज़ुल्म की रात रहेगी कब तक अब नज़दीक सवेरा है
हिन्दुस्तान भी मेरा है और पाकिस्तान भी मेरा है
-हबीब जालिब

Monday 11 June, 2012

सरफ़रोशी की तमन्ना


सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
रहबरे राहे मुहब्बत, रह न जाना राह में
लज्जते-सेहरा न वर्दी दूरिए-मंजिल में है
अब न अगले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़
एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है ।
ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-कातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर,
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ जिन में हो जुनून कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से,
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम.
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
यूँ खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें कोई रोको ना आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून
तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है।
-रामप्रसाद बिस्मिल

Monday 23 April, 2012

अनपढ़ तो छोड़िए पढ़े लिखों को और पढ़ाने की जरूरत : काटजू

अनपढ़ तो छोड़िए पढ़े-लिखों को और पढ़ाने की जरूरत है, तब ही लोगों में वैज्ञानिक सोच विकसित होगी। केवल डिग्री हासिल कर लेने से ही कुछ नहीं होगा। जब तक वैज्ञानिक सोच नहीं होगी, तब तक देश गरीब रहेगा। अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे लोग ज्योतिष और बाबाओं में भरोसा करते हैं। मीडिया भी टीआरपी बढ़ाने के लिए वही सब दिखा रहा है। उसे तो समाज के मार्गदर्शक की भूमिका निभानी चाहिए। यह बात प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष व सुप्रीमकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मरकडेय काटजू ने शुक्रवार को संवाददाता सम्मेलन में कही।

उन्होंने कहा कि यूरोप की तरह आधुनिक और विकसित बनना है तो हमें पिछड़े विचारों (जातिवाद, सांप्रदायिकता, भाई-भतीजावाद) को छोड़कर वैज्ञानिक सोच के साथ काम करना होगा। यूरोप के लोगोंे की जागरूकता और तरक्की का कारण वैज्ञानिक सोच है। इस सोच को विकसित करने में मीडिया की भूमिका भी अहम है। मीडिया का काम सिर्फ सूचना देना ही नहीं है बल्कि समाज को मार्गदर्शन देने का भी जिम्मा है। देश में प्रिंट मीडिया तो फिर भी अपनी भूमिका का सही निर्वहन कर रही है, लेकिन इलेक्ट्रोनिक मीडिया असल मुद्दों को छोड़कर ज्योतिष, बाबा और मनोरंजन कार्यक्रमों को ज्यादा तवज्जो दे रही है। देश की जनता का बौद्धिक स्तर कम है, उसे जो दिखाओगे वही देखेगी।

उन्होंने कहा कि पढ़े-लिखे लोग ही ज्योतिष और बाबाओं में ज्यादा आस्था रखते हैं। भारतीय समाज आज भी रूढ़िवादी विचारों में जकड़ा हुआ है। ज्ञान का स्तर कमजोर होने का ही नतीजा है कि चपरासी के एक पद के लिए ग्रेज्युएट और पोस्ट ग्रेज्युएट भी लाइन में लगे रहते हैं। यदि इनके ज्ञान का स्तर ऊंचा होता तो ऐसी नौबत नहीं आती। अपनी फील्ड में एक्सपर्ट लोगों को इस तरह की दिक्कतें नहीं आती हैं। पत्रकारों का बौद्धिक स्तर आम आदमी से ऊंचा होना चाहिए। तभी तो हम समाज को सही दिशा में ले जा पाएंगे। कार्यक्रम में वरिष्ठ नागरिक सेवा संस्थान के संस्थापक भूपेंद्र जैन भी उपस्थित थे।

न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार गहराया

श्री काटजू ने कहा कि न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार बढ़ गया है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सभी जज भ्रष्ट हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के संबंध में अपनी चर्चित टिप्पणी ‘यहां कुछ सड़ांध आती है’ करते हुए मुझे खुशी नहीं हुई थी, बल्कि पीड़ा हुई थी। लेकिन मुझे जो सही लगा मैंने वही किया। श्री काटजू ने वर्तमान सीजेआई एचएस कपाड़िया को तो ईमानदार बताया लेकिन इससे पहले के सीजेआई के बारे में कहा की उनके बारे में कोई टिप्पणी नहीं करूंगा।

वे चाहते हैं हम लड़ते रहें और देश कमजोर हो

भारत विविधताओं का देश है। यहां सभी धर्मो का समान आदर किया जाता है, यही हमारी एकता है। तमाम बड़ी ताकतें इस कोशिश में लगी हैं कि इस देश में हिन्दू-मुस्लिम आपस में लड़ते रहें, ताकि देश कमजोर होता रहे। हम आपस में लड़ते रहेंगे तो देश तरक्की कैसे करेगा? तरक्की के लिए जरूरी है धर्मनिरपेक्षता। यह बात प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मरकडेय काटजू ने शुक्रवार को चेंबर ऑफ कॉमर्स सभागार में धर्म निरपेक्षता क्यों जरूरी है, विषय पर बोलते हुए कही। आयोजन वरिष्ठ नागरिक सेवा संस्थान और रहनुमा वेलफेयर फाउंडेशन ने रखा था।

इतिहास के तमाम संदर्भो का हवाला देते हुए श्री काटजू ने कहा कि इस देश में 1857 से पहले सांप्रदायिकता की भावना इतनी नहीं थी, जितनी आज है। सांप्रदायिकता का जहर अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति के कारण फैला, जिसका नतीजा 1947 में भारत विभाजन के रूप में सामने आया। सांप्रदायिकता की भावना हिन्दू में भी है और मुसलमान में भी, इसीलिए जब भी कहीं कोई बम विस्फोट होता है, झट से किसी मुस्लिम का नाम आ जाता है। ये हमारी विविधता को कमजोर करने की कोशिश भी है। उन्होंने आगाह किया कि अगर धर्म के नाम पर राज्य बनाए जाएंगे तो आप अपनी जड़ों से भी कटते जाएंगे। हमें यह भी समझना होगी कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ नास्तिक होना नहीं है।

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90 फीसदी भारतीयों को मूर्ख बताने के पीछे काटजू ने गिनाए ये 10 कारण

90 फीसदी भारतीयों को मूर्ख बता चुके जस्टिस (रि.) मार्केंडेय काटजू ने अब कहा है कि 90 फीसदी भारतीयों के पास 'अनसाइंटिफिक टेंपर' है। उन्‍होंने 90 फीसदी भारतीयों को मूर्ख बताते हुए वे कारण गिनाए हैं जिनके आधार पर वह इस नतीजे पर पहुंचे हैं। 1. तमिल लोग भारत के सर्वश्रेष्‍ठ और सबसे तेज दिमाग वाले, प्रतिभावान लोगों में शुमार हैं। इसके बावजूद वे भारत में सबसे ज्‍यादा अंधविश्‍वास करने वाले लोग हैं।

2. दूसरी बात, ज्‍यादातर मंत्री और यहां तक कि हाई कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश अपने ज्‍योतिषियों से राय-मशविरा करके उनके द्वारा बताए गए मुहूर्त में ही शपथ ग्रहण करते हैं।

3. सुप्रीम कोर्ट के जजों के लिए कुछ फ्लैट तय हैं। उन्‍हीं फ्लैटों में से एक हर जज को आवंटित होता है। ऐसे ही एक फ्लैट में कभी किसी जज के साथ कोई हादसा हुआ था। इसके बाद से उस फ्लैट को मनहूस बताते हुए किसी जज ने उसमें रहना मंजूर ही नहीं किया। अंतत: तत्‍कालीन मुख्‍य न्‍यायाधीश ने चिट्ठी लिखी कि उस फ्लैट को जजों को आवंटित किए जाने वाले फ्लैट की सूची से ही हटा दिया जाए। इसके बाद ऐसा ही किया गया और उसके बदले दूसरा फ्लैट सूची में शुमार किया गया।

4. कुछ साल पहले मीडिया में खबर चली कि भगवान गणेश दूध पी रहे हैं। इसके बाद दूध पिलाने वाले भक्‍तों की भीड़ लग गई। इसी तरह एक चमत्‍कारिक चपाती की चर्चा भी खूब चली इस तरह के 'चमत्‍कार' होते ही रहते हैं।

5. हमारा समाज बाबाओं से प्रभावित है। इस कड़ी में ताजा वह हैं जो तीसरी आंख होने का दावा करते हैं। भगवान शिव की तरह।

6. जब मैं इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज था, उस दौरान ऐसी खबर आई थी कि तमिलनाडु में किसी शख्‍स ने पानी से पेट्रोल बनाने की तकनीक ईजाद कर ली है। कई लोगों ने इस पर यकीन किया। मेरे एक सहयोगी ने भी कहा कि अब पेट्रोल सस्‍ता हो जाएगा, लेकिन मैंने कहा कि यह धोखा है और बाद में यह धोखा साबित हुआ।

7. शादी पक्‍की करने से पहले ज्‍यादातर माता-पिता ज्‍योतिषि से मिलते हैं। कुंडली मेल खाने पर ही शादी पक्‍की होती है। बेचारी मांगलिक लड़कियों को अक्‍सर नकार दिया जाता है, जबकि उसकी कोई गलती नहीं होती।

8. हर रोज टीवी चैनलों पर अंधविश्‍वास को बढ़ावा देने वाले तमाम कार्यक्रम दिखाए जाते हैं। ब्रॉडकास्‍ट एडिटर्स एसोसिएशन इन्‍हें रोकने की बात करता है, लेकिन बाजार के दबाव में उन्‍हें रोका नहीं जा रहा है। अफसोस की बात है कि भारत में मध्‍य वर्ग का बौद्धिक स्‍तर काफी नीचा है। वे फिल्‍मी सितारों की जिंदगी, फैशन परेड, क्रिकेट और ज्‍योतिष से जुड़े कार्यक्रम ही पसंद करते हैं।

9. ज्‍यादातर हिंदू और ज्‍यादातर मुसलमान सांप्रदायिक हैं। 1857 के पहले ऐसा नहीं था। यह एक सच है कि हर समुदाय के 99 फीसदी लोग बेहतर हैं, लेकिन उनके अंदर से संप्रदायवाद का वायरस मिटाने में काफी समय लग जाएगा।


10. इज्‍जत के नाम पर जान लेना, दहेज के लिए हत्‍याएं, कन्‍या भ्रूण हत्‍या जैसी सामाजिक कुरीतियां आज भी भारत में मौजूद हैं।

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Sunday 22 April, 2012

मज़दूरों और किसानों का पहला राज्य

न् 1917 की फ़रवरी में रूस में पूँजीवादी क्रांति हुई और रूसी राजसत्ता अस्थायी सरकार के, पूँजीवादी अधिनायकत्व की उस संस्था के हाथ में आ गई जिस ने रूसी राज्य की शासन-मशीन को क़ाबू में कर लिया था।

राजनीतिक संग्राम के क्षेत्र में रूसी मज़दूर-वर्ग के हितों को लेनिन की बोल्शेबिक-पार्टी व्यक्त करती थी। ज़ारशही शासन के विरुद्ध की लडा़इयों में उस के नेतृत्व में पेत्रोग्राद (1924 से लेनिनग्राद, 1991 से सेंट पीटर्सबर्ग) के मज़दूर सोवियतों (रूसी: совет - परिषद्) की स्थापना करने लगे जिन में शुरू से ही वे सिपाही भी भाग लेते थे जो असल में फ़ौजी पोशाक पहने हुए किसान थे।
रूसी मज़दूर-वर्ग ने जल्दी से ट्रेड-यूनियनों को क़ायम किया, बिना हुक्म के आठ घंटे का काम का दिन लागू किया और क्रांति की रक्षा के लिए लाल गार्ड की स्थापना की।

सर्वहारा और किसान-जनता के क्रांतिकारी जनवादी अधिनायकत्व की संस्था पेत्रोग्राद सोवियत, जिस का देश भर में स्थापित बहुत सोवियतें साथ दे रही थीं, कोई राजसत्ता तो न थी, लेकिन हथियारबंद जनता उस का समर्थन कर रही थी और वास्तव में अधिकार उसी के हाथ में था।
इस तरह फ़रवरी की क्रांते ने दोहरा शासन क़ायम कर के नये क्रांति-संग्रामों का बीज ख़ुद ही बोया। इन क्रांति-संग्रामों की अनिवार्यता इसी बात से निश्चित थी कि संग्राम करते हुए वर्गों में से कोई भी फ़रवरी क्रांति के फलों से संतुष्ट न था।

अप्रैल सन् 1917 में लेनिन के रूस लौटने पर जनवादी क्रांति को समाजवादी क्रांति में बदल देने की साफ़ योजना बोल्शेविक पार्टी को प्राप्त हुई।

बोल्शेविक (1920), कुस्तोदेयेव का बना चित्र

अक्तूबर तक देश में आम राजनीतिक संकट और गंभीर हो उठा। लडा़ई के फलस्वरूप जिसे अस्थायी सरकार ने जारी रखा देश अकाल तथा विनाश की ओर बढ़ रहा था। मज़दूर वर्ग पूँजीवादी वर्ग के विरुद्ध और अधिक दृढ़ता से संग्राम चला रहा था। पेत्रोग्राद और को सोवियतें तथा देश के कई दूसरे औद्योगिक केंद्रों की सोवियतें बोल्शेविक हो गई थीं। सरकार से ज़मीन न पा कर किसानों ने बोल्शेविकों के आह्वान पर चलते हुए ख़ुद ही ज़मीन पर क़ब्ज़ा करना शुरू कर दिया। मुख्य मोर्चों और देश के भीतर स्थित नगर-सेनाओं के बहुत से सिपाही जो जनता-विरोधी हितों के लिए होनेवाली लड़ाई से ख़ास तौर से थक गये थे, बोल्शेविकों की तरफ़ चले आये। मज़दूर वर्ग की अगुआई में अधिकांश जनता के समर्थन का सहारा लेकर बोल्शेविकों ने लेनिन के नेतृत्व में हथियारबंद विद्रोह के लिए लोगों का खुला आह्वान किया। सन् 1917 के अक्तूबर की 24 तारीख़ को लेनिन स्मोल्नी इंस्टीट्यूट-भवन में पहुँचे। लाल गार्ड के सैनिक तथा मिलों और कार्ख़ानों के प्रतिनिधि हिदायतें पाने के लिए हर जगह से यहाँ आये। सर्वहारा-विद्रोह के प्रधान कार्यालय - सैनिक क्रांति-समिति की बैठक तीसरी मंज़िल पर बराबर चल रही थी। स्मोल्नी पहुँचते ही लेनिन ने विद्रोह का सीधा संचालन अपने हाथ में ले लिया। जल्दी ही मोटरों और साइकिलों पर संदेशवाहक निकल पडे़ और राजधानी के कारख़ानों, मुहल्लों और फ़ौजी दलों में सैनिक क्रांति-समिति के हुक्म पहुँचाने लगे।

अक्तूबर समाजवादी क्रांति का प्रचारपत्र "क्रांति की जय!"

पेत्रोग्राद के सर्वहारा और रेजीमेंटें काम करने लगे। फ़ौजी चौकियों और सरकारी दफ़्तरों पर क़बज़ा किया जाने लगा। 25 अक्तूबर की सुबह तक नेवा नदी पर के सभी पुल, केंद्रीय टेलीफ़ोन-स्टेशन, तारघर, पेत्रोग्राद समाचार-समिति, रेडियो-स्टेशन, रेलवे-स्टेशन, बिजलीघर, बैंक और दूसरे महत्त्वपूर्ण कार्यालय नौसैनिकों, लाल गार्डवालों और सिपाहियों के क़ब्ज़े में आ गये। शीत-महल जिस में अस्थायी सरकार बैठी थी और फ़ौजी इलाक़े के मुख्य कार्यालय को छोड़ कर बाक़ी सारा शहर हथियारबंद सर्वहारा और क्रांतिकारी सैनिकों के हाथों में आ चुका था। शीत-महल पर जल्दी ही क़ब्ज़ा करने के लिए नौसैनिकों, लाल गार्डवालों और सिपाहियों को लेनिन बढा़वा देता रहा। विद्रोह वास्तव में विजयी हो चुका था।

सुबह को सैनिक क्रांति-समिति ने लेनिन की लिखी "रूस के नागरिकों के नाम" ऐतिहासिक अपील का प्रकाशन किया। इस में आम जनता को यह ख़बर दी गयी थी कि अस्थायी सरकार का तख़्ता उलट दिया गया है और राजसत्ता पेत्रोग्राद के सर्वहारा और नगर-सेना की अगुआई करनेवाली सैनिक क्रांति-समिति के हाथों में आ गई है। पेत्रोग्राद में क्रांति की विजय की ख़बर तार द्वारा रूस के कोने-कोने में और सभी मोर्चों पर पहुँचाई गई। दिन के समय लेनिन ने पेत्रोग्राद नगर-सोवियत की असाधारण बैठक में सोवियत शासन के कर्त्तव्यों पर भाषण दिया। इस भाषण के ऐतिहासिक शब्द थे: "मज़दूरों और किसानों की क्रांति ... कामयाब हो गई है..."

26 अक्तूबर की सुबह के 5 बजे सोवियतों की दूसरी अखिल रूसी कांग्रेस के अधिवेशन में यह ख़बर सुनायी गई कि अस्थायी सरकार के आख़िरी क़िले - शीत-महल पर क़ब्ज़ा कर लिया गया है। केंद्र में और दूसरे स्थानों पर राज्यशासन सोवियतों के हाथों में आ गया है।
संसार के इतिहास में मज़दूरों और किसानों का पहला राज्य क़ायम हो गया था।

-विकिपीडिया से

आज लेनिन का जन्मदिन है-




माखनलाल चतुर्वेदी-
" क्रांति के बाद ही रूस में अकाल पड़ा। लोग भूखे मरने लगे। प्रतिक्रांतिकारियों ने लोगों को भड़काया कि लेनिन ने तुम्हें धोखा दिया। वह तो अपने महल में मजे उड़ा रहा था। भीड़ लेनिन के निवास पर पहुंची। लेनिन-विरोधी नारे लगाए, खिड़कियां तोड़ी। लेनिन फ़ाइलों पर काम करते रहे। तभी लेनिन की लड़की डब्बा लेकर आई और कहा- पिताजी, आपने तीन दिन से कुछ नहीं खाया। ये रोटी खा लीजिए। भीड़ स्तब्ध रह गई। लेनिन ने डिब्बा खोला और उसमें से रोटी के दो अधजले टुकड़े निकाले। भीड़ में कई लोग रो पड़े और लेनिन की जय बोली जाने लगी."

-माखनलाल चतुर्वेदी

Sunday 15 April, 2012

poonjivaad ka sankat



बाजार के मनमुताबिक रस्सी पर चलते हुए सरकार की बाजीगरी की कवायद नीति निर्धारण को त्वरा देने में बार बार नाकाम हो रही है। आखिर राजनीतिक बाध्यताओं से वित्तीय और मौद्रिक नीतियों की पीछा छूट नहीं रहा।भारतीय कंपनियां चाहती हैं कि रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती करे, जिससे आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने में मदद मिल सके।लेकिन कंपनियों के चाहने , न चाहने से कुछ होने वाला नहीं। सरकार को राजनीतिक माहौल का जायजा भी लेना होता है। अभी बंगाल में​ ​ ममता बनर्जी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खुलेआम जो कुठाराघात करने लगी, उस पर केंद्र और कांग्रेस ने चुप्पी साध रकी है। ममता, ​​अखिलेश और जयललिता की मर्जी के किलाफ सरकार कुछ करने की हालत में नहीं हैं। तीनों की सौदेबाजी से राजस्व संतुलन बुरी तरह दगमगाने लगा है और तमाम अहम वित्तीय कानून, जिन्हें आर्थिक सुधार के नजरिये से बजट सत्र में पास कराने थे,खटाई में पड़े हुए हैं। वर्ष 2010 व 2011 के ज्यादातर समय उच्च स्तर पर बनी रही मुद्रास्फीति फरवरी, 2012 में घटकर 6.95 प्रतिशत पर आ गई।वित्त वर्ष 2012-13 की ऋण नीति की घोषणा से पहले रिजर्व बैंक के गवर्नर डी़ सुब्बाराव ने शनिवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी से मुलाकात की। सूत्रों ने बताया कि उन्होंने इन नेताओं के साथ व्यापक आर्थिक स्थिति की समीक्षा की और आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट रोकने के उपायों पर चर्चा की। रिजर्व बैंक 17 अप्रैल को वार्षिक मौद्रिक नीति की घोषणा करेगा।रिजर्व बैंक के गवर्नर के लिए यह परंपरा रही है कि वह मौद्रिक नीति की समीक्षा से पहले वित्त मंत्री के साथ अर्थव्यवस्था की स्थिति पर चर्चा करते हैं।निवेशक बैंक मोर्गन स्टेनली का मानना है कि रिजर्व बैंक द्वारा 2012-13 के लिए जारी की जाने वाली मौद्रिक नीति में ब्याज दरों में कटौती की संभावना नहीं है।बजट से कुछ खास न मिलने ने निराश शेयर बाजार की नजर अब आगामी 17 अप्रैल को आने वाली रिजर्व बैंक की सालाना मौद्रिक नीति पर है।कहा जा रहा है कि आईआईपी के खराब आंकड़ों की परवाह बाजार ने इसलिए नहीं की क्योंकि उसे अगले हफ्ते रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति में ब्याज दरों में कटौती का भरोसा हो चला है।

विदेशी निवेशकों की आस्था भारतीय बाजार में लौटाने के लिए हालांकि सरकार हर संभव कोसिश कर रही है। वित्त मंत्रालय ने फॉरेन करेंसी कंवर्टिबल बॉन्ड (एफसीसीबी) जारी करने वाली कंपनियों के लिए 2 नए नियम बनाए हैं। नए नियमों से डीफॉल्ट की हालत में भी विदेशी निवेशकों को पैसा लौटाया जा सकेगा।एफसीसीबी जारी करने वाली कंपनियों को रिजर्व फंड बनाना जरूरी होगा। रिजर्व फंड में कंपनियों को एफसीसीबी के मैच्योरिटी की रकम के 25 फीसदी बराबर रकम रखनी होगी।

बिजली, खनन,तेल व प्राकृतिक गैस और स्वास्थ्य पर पहले से सौ फीसदी विदेशी निवेश की छूट है।इन सेक्टरों में विदेशी निवेशक अब नाममात्र सब्सिडी देने को तैयार नहीं हैं। इस पर गार की बला अभी टली नहीं है। बाजार गिरावट की ओर है, अगर मौद्रिक नीतियों में फिर सख्ती​
​ बरती गयी,तो कारोबार धड़ाम होने के आसार हैं। वैसे भी लगातार दो सप्ताहों की तेजी के बाद देश के शेयर बाजारों में इस सप्ताह गिरावट का रुख रहा। प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 2.24 फीसदी या 391.51 अंकों की गिरावट के साथ 17094.51 पर और निफ्टी 2.17 फीसदी या 115.45 अंकों की गिरावट के साथ 5207.45 पर बंद हुआ। इंफोसिस के खराब नतीजों और यूरोपीय बाजारों में गिरावट ने घरेलू बाजारों का मूड बिगाड़ा।अमेरिकी और एशियाई बाजारों में तेजी के बावजूद घरेलू बाजार गिरावट पर खुले। इंफोसिस के निराशाजनक नतीजों का बाजार का दबाव दिखा। वित्त वर्ष 2012 की चौथी तिमाही में इंफोसिस का मुनाफा 2.4 फीसदी घटकर 2,316 करोड़ रुपये हो गया है। वित्त वर्ष 2012 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में इंफोसिस का मुनाफा 2,372 करोड़ रुपये रहा था।वहीं वित्त वर्ष 2012 की जनवरी-मार्च तिमाही में इंफोसिस की आय 4.8 फीसदी घटकर 8,852 करोड़ रुपये पर पहुंच गई है। वित्त वर्ष 2012 की तीसरी तिमाही में इंफोसिस की आय 9,928 करोड़ रुपये रही थी।वित्त वर्ष 2012 की चौथी तिमाही में इंफोसिस का डॉलर राजस्व 2 फीसदी घटकर 177.1 करोड़ डॉलर हो गया है। वित्त वर्ष 2012 की तीसरी तिमाही में इंफोसिस का डॉलर राजस्व 180.6 करोड़ डॉलर रहा था। हालांकि जनवरी-मार्च तिमाही में इंफोसिस का डॉलर ईपीएस गाइडेंस के मुताबिक 0.81 डॉलर रहा है। वहीं इंफोसिस का रुपये में ईपीएस 145.55 रुपये रहा है।औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर के आंकड़ों को निराशाजनक बताते हुए वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने इसकी मुख्य वजह सख्त मौद्रिक नीति और वैश्विक कारणों को बताया है। उन्होंने कहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार औद्योगिक उत्पादन में सुधार के लिए कदम उठाएंगे।वित्त मंत्री ने कहा कि इन आंकड़ों का असर अगले सप्ताह पेश होने वाली मौद्रिक नीति की समीक्षा में दिखाई देगा। सरकार और रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए मिलकर कदम उठाएंगे।

पेट्रोल के साथ ही अब डीजल के भी दाम बढ़ने के आसार दिखाई देने लगे हैं। जानकारी के मुताबिक सरकार को बजट सत्र के खत्म होने का इंतजार है, जोकि 7 मई को खत्म हो रहा है। वहीं सूत्रों के मुताबिक 7 मई के बाद कभी भी डीजल महंगा हो सकता है।सरकार इसके लिए कच्चे तेल की ऊंची कीमतों का हवाला दे रही है। क्योंकि अगर दाम नहीं बढ़ाए गए तो इसका असर राजस्व पर पड़ेगा। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी पहले ही कह चुके हैं कि सरकार ज्यादा ऑयल सब्सिडी नहीं झेल सकती है।डीजल के दाम बढ़ाना सरकार के हाथ में है और इसकी कीमतें पिछले साल जुलाई में बढ़ाई गई थी जबकि पेट्रोल की कीमतें बाजार तय करता है। हालांकि राजनैतिक दबाव में अब तक पेट्रोल के दाम भी नहीं बढ़ाए गए हैं।

राष्ट्रपति सरकार के लिए सबसे बड़ी लाइफ लाइन बनी हुई हैं। कोल इंडिया को डिक्री जारी करने के बाद अब राष्ट्रपति सरकार को टेलीकाम संकट से भी उबारने में लगी है। सरकार के लिए अच्छी खबर यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2जी लाइसेंस रद्द करने पर सरकार की समीक्षा अर्जी स्वीकार कर ली है। इस मामले पर सुनवाई 1 मई को होगी। यही नहीं सरकार ने 2जी के याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण, सुब्रह्मण्यम स्वामी को भी नोटिस भेजा है।ज्यादातर कंपनियां उच्चतम न्यायालय के आदेश को चुनौती दे रही हैं और कई देशों का भी भारत पर दवाब है कि इस मामले में कानूनी लड़ाई लड़ी जाए। ऐसे में सरकार न्यायालय से उसके आदेश की पूर्ण व्याख्या चाहती है। राष्ट्रपति के माध्यम से सरकार उच्चतम न्यायालय के जजों की बेंच में कई सवाल भेजकर उस पर अदालत का नजरिया जानने की कोशिश करेगी।

सरकार को सुप्रीम कोर्ट से जिन मुद्दों पर सफाई चाहिए उसमें 1994 से 2007 में बांटे गए लाइसेंस रद्द हों या नहीं और नीलामी के बिना दिए गए स्पेक्ट्रम के लिए पुरानी तारीख से कीमत लेने जैसे मसले शामिल हैं। इसके अलावा सरकार को जिन कंपनियों के लाइसेंस रद्द हुए हैं उनके 3जी लाइसेंस के भविष्य और पहले आओ, पहले पाओ नीति किस आधार पर खारिज की गई इन मुद्दों पर भी सफाई चाहिए। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन पर नीलामी ही एकमात्र तरीका होने के मसले पर भी सफाई मांगी है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस साल फरवरी महीने में 122 टेलिकॉम लाइसेंस रद्द कर दिए थे। ये सभी लाइसेंस पूर्व टेलीकॉम मंत्री ए राजा के कार्यकाल में दिए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की पहले आओ, पहले पाओ नीति पर सवाल खड़े किए थे। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को 4 महीने के अंदर दोबारा स्पेक्ट्रम नीलामी का आदेश दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक की माइनिंग कंपनियों को थोड़ी राहत दी है। कोर्ट ने राज्य में कैटेगरी ए में कुछ शर्तों के साथ माइनिंग दोबारा शुरू करने की मंजूरी दे दी है। इसके अलावा इस मामले की जांच के लिए बनाई गई सेंट्रली एम्पावर्ड कमेटी- सीईसी की सिफारिश रिपोर्ट भी स्वीकार कर ली है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक कर्नाटक की माइंस को तीन कैटेगरीज- ए, बी और सी में बांटा गया था। अब कोर्ट की मंजूरी के बाद कम से कम 45 खदानों में माइनिंग दोबारा शुरू की जा सकेगी, जो ए कैटेगरी में आती हैं।

कोर्ट ने इन खदानों से आयरन ओर की माइनिंग के लिए सीमा भी तय की है, जिसके मुताबिक बेल्लारी की खदानों से सालाना 2.5 करोड़ टन और चित्रदुर्गा खदानों से सालाना 50 लाख टन से ज्यादा की माइनिंग नहीं की जाएगी। कोर्ट के इस फैसले से जिन माइनिंग कंपनियों को फायदा होगा, उनमें जेएसडब्ल्यू स्टील, कल्याणी स्टील और सेसा गोवा शामिल हैं।

इस बीच वायदा बाजार में बड़ा घोटाला का मामला संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून के ताजा बयान से तूल पकड़ सकता है, ऐसी ​
​आशंका है। भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में एग्री कमोडिटी की कीमतों में तेजी के लिए वायदा बाजार को जिम्मेदार माना जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून का मानना है कि दुनिया भर के वायदा बाजारों में सट्टेबाजी के चलते एग्री कमोडिटी की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव हो रहा है।बान की मून के मुताबिक दुनिया भर में एग्री कमोडिटी की कीमतों में तेजी को रोकने के लिए कर्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने सट्टेबाजी रोकने के लिए ग्लोबल कमोडिटी वायदा की समीक्षा करने का सुझाव दिया है।वायदा बाजार के कुप्रभाव का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा है कि एग्री कमोडिटी की कीमतों में बढ़ोत्तरी से दुनिया भर में भूखमरी के शिकार लोगों की संख्या बढ़कर करीब 1 अरब हो गई है। ऐसे हालातों ने काफी लोगों को गरीबी रेखा के नीचे धकेल दिया है। लिहाजा ग्लोबल एग्री कमोडिटी वायदा कारोबार की कड़ी निगरानी होनी चाहिए।

मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए रिजर्व बैंक ने मार्च, 2010 से ही सख्त मौद्रिक नीति अपना रखी है और वह 13 बार ब्याज दरें बढ़ा चुका है। हालांकि, इसने पिछली तीन नीतिगत समीक्षा में प्रमुख दर [रेपो] नहीं बढ़ाई।वर्ष 2011-12 के दौरान देश की आर्थिक वृद्धि दर 6.9 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया है, जो इससे पिछले वित्त वर्ष के 8.4 प्रतिशत के मुकाबले काफी कम है। हालांकि, सरकार को चालू वित्त वर्ष के दौरान इसके 7.6 प्रतिशत रहने की संभावना है।

 एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
 मुंबई
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Monday 2 April, 2012

जनता के सवालों को लेकर संघर्ष तेज किया जाएगा


पटना : भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नवनिर्वाचित राष्ट्रीय महासचिव सुधाकर रेड्डी ने कहा है कि बिहार में पार्टी अपनी पुरानी हैसियत में लौटेगी। पार्टी महाधिवेशन के यहां सफल आयोजन ने साबित कर दिया है कि सूबे में भाकपा का जनाधार जरा भी कम नहीं हुआ है। जनता के सवालों को लेकर संघर्ष तेज किया जाएगा।
                                                                राष्ट्रीय महासचिव बनने के पश्चात श्री रेड्डी का रविवार को पार्टी के प्रदेश कार्यालय में स्वागत किया गया। सुधाकर रेड्डी ने महाधिवेशन के सफल आयोजन और विशाल रैली के लिए पार्टी की राज्य इकाई को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि तेज संघर्ष के बूते पर ही पार्टी आगे बढ़ेगी। अपनी पुरानी हैसियत में लौटेगी। भाकपा के उभार की शुरुआत महाधिवेशन के सफल आयोजन से हो चुकी है।
इस अवसर पर मौजूद पार्टी के राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अंजान ने महाधिवेशन की तैयारी के सिलसिले में अपने प्रदेश के दौरे के अनुभव बताए। उन्होंने कहा कि लोग उनकी पार्टी की ओर आ रहे हैं। राज्य सचिव बद्री नारायण लाल ने श्री रेड्डी को भरोसा दिलाया कि महाधिवेशन की तैयारी के क्रम में पार्टी की बिहार इकाई ने जो गति पकड़ी है, वह आगे भी जारी रहेगी। जून में आयोजित राज्य सम्मेलन की तैयारी जल्द ही शुरू हो जाएगी। इसके लिए 9 अप्रैल को राज्य कार्यकारिणी एवं जिला मंत्रियों की संयुक्त बैठक बुलायी गयी है। बैठक में राज्य सम्मेलन का स्थान एवं तिथि तय की जाएगी।

Saturday 31 March, 2012

सुधाकर रेड्डी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नए जनरल सेक्रेटरी

पटना  भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी    की केंद्रीय परिषद ने ए. बी. वर्द्धन के स्थान पर एस. सुधाकर रेड्डी को अपना नया जनरल सेक्रेटरी मनोनीत किया है।

पटना में गत 27 मार्च से चल रहे सीपीआई के 21वें नैशनल कॉन्फ्रेंस के अंतिम दिन शनिवार को सीपीआई की केंद्रीय परिषद ने वर्द्धन के स्थान पर एस. सुधाकर रेड्डी को अपना नया जनरल सेक्रेटरी मनोनीत किया। सीपीआई के नए जनरल सेक्रेटरी चुने जाने के बाद रेड्डी ने कहा कि उन्हें जो जिम्मेदारी सौंपी गई है, वह उसे निभाने की पूरी कोशिश करेंगे।

वर्द्धन को एक बड़ा और कद्दावर नेता बताते हुए रेड्डी ने कहा कि वह उनके साथ-साथ पार्टी के अन्य सहयोगियों के मार्गदर्शन में पार्टी के इस नैशनल कॉन्फ्रेंस में लिए गए निर्णयों को अमल में लाने की कोशिश करेंगे। उन्होंने कहा कि उनकी वरीयताओं में हिंदी भाषी इलाकों में पार्टी को और अधिक मजबूत करने के साथ-साथ जन समस्याओं जैसे जल, जंगल और जमीन तथा कामगारों की समस्याओं के निदान और उनकी सामाजिक सुरक्षा को लेकर आंदोलन छेड़ना शामिल है। रेड्डी ने कहा कि देश के हिंदी भाषी इलाकों में जातीय और धार्मिक समस्याओं को लेकर लोगों के बीच चेतना की जरूरत है और इसके लिए पार्टी स्तर पर राजनीतिक और वैचारिक तौर पर काम किया जाएगा।

भाकपा अपने कार्यक्रमों में आज लाएगी ऐतिहासिक बदलाव

पटना : देश एवं दुनिया की मौजूदा राजनीतिक-आर्थिक स्थिति के मद्देनजर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी(भाकपा) अपने कार्यक्रमों में ऐतिहासिक बदलाव लाएगी। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव एबी बर्धन ने इसका मसौदा तैयार किया है जिसे 21वें महाधिवेशन के अंतिम दिन शनिवार को मंजूरी दी जाएगी। शनिवार को ही पार्टी के नए राष्ट्रीय महासचिव की घोषणा की जाएगी। महाधिवेशन में पश्चिम बंगाल के संबंध में अलग से एक प्रस्ताव पेश किया गया, जिसमें कहा गया कि वहां आपातकाल जैसी स्थिति है। अन्य दलों की तरह पार्टी में अध्यक्ष का पद सृजित करने पर भी बहस हो रही है।
सूत्रों ने बताया कि नए कार्यक्रमों में कारपोरेट एवं निजी क्षेत्रों में दखलअंदाजी बढ़ाने एवं युवाओं को पार्टी से जोड़ने के प्रयास प्रमुख हैं। पार्टी का कहना है कि भारी-भरकम वेतनों के साथ लंबे कार्य घंटों ने युवाओं के एक ऐसे तबके को खड़ा कर दिया है जिनका कोई सामाजिक सरोकार नहीं है। समाज को एनजीओ और तथाकथित सिविल सोसायटी ग्रुपों के हाथों में अब और अधिक नहीं छोड़ा जा सकता।
महाधिवेशन में जारी बहस की जानकारी देते हुए पार्टी के राष्ट्रीय सचिव शमीम फैजी और अतुल कुमार अंजान ने शुक्रवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा कि 1992 में हुए महाधिवेशन में पार्टी के कार्यक्रम तय किए गए थे, जो आज की परिस्थिति में बहुत प्रभावी नहीं रह गये हैं। वर्तमान राजनीतिक-आर्थिक पृष्ठभूमि में नए धारदार कार्यक्रमों की आवश्यकता है। इनकी शनिवार को घोषणा की जाएगी। पश्चिम बंगाल के संबंध में उन्होंने कहा कि पिछले दस माह में भाकपा एवं माकपा के 35 कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है। भाकपा के दस से अधिक कार्यालयों पर कब्जा किया गया है। यह तय किया जा रहा है कि लोग क्यों पढ़ें, क्या नहीं। ममता बनर्जी के पक्ष में मुखर रहने वाली महाश्वेता देवी भी अभी पश्चिम बंगाल सरकार की कड़े शब्दों में निंदा कर रही हैं। वहां भाकपा अपना जनांदोलन तेज करेगी। उप-महासचिव सुधाकर रेड्डी को नया महासचिव बनाने संबंधी प्रश्न पर श्री अंजान ने कहा कि तत्कालीन महासचिव इंद्रजीत गुप्ता जब गृह मंत्री बने थे, तब उप महासचिव एबी बर्धन को महासचिव बनाया गया था। इसी को आधार मानकर ये अटकलें लगायी जा रही हैं। नए महासचिव का शनिवार को चुनाव होगा। उन्होंने बताया कि राजनीतिक प्रस्ताव पर 300 से अधिक संशोधन एवं सुझाव आए हैं। इन पर बहस जारी है। अन्य दलों की तरह भाकपा में भी अध्यक्ष का पद सृजित करने का सुझाव भी आया है। इस पर भी बहस हो रही है। श्री फैजी ने स्पष्ट किया कि महाधिवेशन में ही पार्टी संविधान में कोई संशोधन किया जाता है, परन्तु इसके लिए प्रस्ताव दो माह पहले लिखित रूप में आने चाहिए। वाम एकता और कामन मैनिफेस्टो के संबंध में उन्होंने कहा कि एकता के लिए सभी वाम दलों में सहमति है। इस पर काम हो रहा है। कामन मैनिफेस्टो इसकी अगली कड़ी है। जनवितरण प्रणाली, पास्को आदि पर भी महाधिवेशन में राजनीतिक प्रस्ताव आए हैं। इस मौके पर वरिष्ठ नेता राम बाबू कुंवर भी उपस्थित थे।

Friday 30 March, 2012

राजनीतिक और आर्थिक संकट का दौर : बर्धन



भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के राष्ट्रीय महासचिव एबी बर्धन ने कहा कि आज जो संकट हम देख रहे हैं वह महज आर्थिक संकट नहीं है। देश एक साथ सर्वव्यापक राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक संकट का सामना कर रहा है। समाज के सभी तबके आंदोलन और संघर्ष के रास्ते पर हैं। ऐसी स्थिति में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को जनता की कार्रवाइयों में कूदना होगा, उनके संघर्ष का हिस्सा बनना पड़ेगा और उनके संघर्ष का मार्गदर्शन एवं नेतृत्व करना होगा। पार्टी के 20 वें महाधिवेशन के बाद देश में लोकसभा चुनाव हुआ। साथ ही विधानसभा चुनावों के कई दौर हुए। हमारा प्रदर्शन निराशाजनक रहा। इस संबंध में राज्य स्तर पर सर्वागीण समीक्षा की जरूरत है। श्री बर्धन बृहस्पतिवार को पार्टी के 21 वें महाधिवेशन के मौके पर सुनील मुखर्जी सभागार (श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल) में राजनीतिक समीक्षा रिपोर्ट का प्रारूप प्रस्तुत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि शहरों और गांवों के मेहनतकश लोगों को इन संघर्ष में लामबंद करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल और केरल में पराजय से समूचे वामपंथ के लिए राष्ट्रीय स्तर पर गंभीर चिंता पैदा हुई है। उन्होंने कहा कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी व्यापक चुनावी सुधारों के लिए अभियान चलाती रही है। उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति को रोकने और महंगाई पर लगाम लगाने के लिए देशव्यापी आंदोलन चलाना होगा। राजनीतिक प्रस्ताव का प्रारूप पेश करते हुए भाकपा महासचिव ने कहा कि 21 वां राष्ट्रीय महाधिवेशन ऐसे समय में हो रहा है जब देश गंभीरतम संकट का सामना कर रहा है। अर्थव्यवस्था गंभीर गिरावट का शिकार हो रही है। मुद्रास्फीति आसमान छूने लगी है। निवेश कम हो रहा है। औद्योगिक उत्पादन में इतनी गिरावट हो रही है, जितनी पहले कभी नहीं थी। उन्होंने कहा कि भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की एक के बाद दूसरी रिपोर्ट में दोषी ठहरायी गयी यह दागदार केंद्र सरकार कुछ भी नहीं कर रही है। आम आदमी की अभूतपूर्व तकलीफों के प्रति पूरी तरह असंवेदनशील है। सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह की सरकार नव उदारवादी नीतियों को आगे बढ़ाने में लगी हुई है। महाधिवेशन में राष्ट्रीय घटनाक्रम, यूपीए एक सरकार से समर्थन वापसी, 2009 में हुए लोकसभा के आम चुनाव, देश की आर्थिक नीति, परमाणु नीति, परमाणु दायित्व कानून, जन विरोध, जलवायु व पर्यावरण नीति, विदेश नीति, विधानसभा चुनाव, सांप्रदायिकता व दक्षिपंथी उग्रवाद, आतंकवाद व बम विस्फोट, महंगाई, भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान आदि विषयों पर चर्चा की गयी। इस मौके पर भाकपा के उप महासचिव एस सुधाकर रेड्डी, राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अंजान, डी राजा, गुरुदास दास गुप्ता,शमीम फैजी, राज्य सचिव बद्रीनारायण लाल सहित एक हजार से अधिक प्रतिनिधि मौजूद थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता पार्टी की राष्ट्रीय सचिव अमरजीत कौर ने की।

केंद्र सरकार ले रक्षा सौदों में दलाली की जिम्मेदारी



पटना ]। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी [भाकपा] ने कहा है कि देशभक्ति की आड़ में रक्षा सौदों में दलाली बंद की जाए। हर प्रकार के रक्षा सौदों को नियंत्रक एवं महालेखाकार [कैग] के दायरे में लाया जाए।
देशभक्ति एवं सुरक्षा के नाम पर इन सौदों की कैग से जांच नहीं करायी जाती और दलाली एवं भ्रष्टाचार धड़ल्ले से जारी रहता है। इस दलाली में अभी यूरोप के कई देशों के अलावा इजरायल भी सक्रिय है। सेना प्रमुख घूस आफर किए जाने की बात कर रहे हैं। पार्टी ने 21वें महाधिवेशन में कहा कि केन्द्र सरकार को इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी। महाधिवेशन में रक्षा सौदे, सेना प्रमुख को रिश्वत देने के अलावा आदिवासी एवं कोल माफिया से संबंधित प्रस्ताव भी राजनीति मसौदे के रूप में पेश हुए।
पत्रकारों को संवाददाता सम्मेलन में जानकारी देते हुए पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव शमीम फैजी और अतुल कुमार अंजान ने कहा कि ये राजनीतिक मसौदे 2014 के आम चुनाव में पार्टी के गाइडलाइन होंगे। केन्द्र सरकार ने बोफोर्स घोटाले, विन चड्डा प्रकरण, तहलका खुलासा [जार्ज फर्नाडीज का कार्यकाल] आदि से कोई सीख नहीं ली है। रक्षा सौदों में दलाली स्थायी आकार ले चुकी है। अब तो यूरोप के कई देशों के अलावा इजरायल भी इसमें शामिल है। यह हमेशा तर्क दिया जाता है कि देश की सुरक्षा का मामला है, इसे विवाद से न जोड़ा जाए। हथियार खरीद से लेकर रक्षा संबंधी हर सौदे की जांच 'कैग' से करायी जाए।
अतुल कुमार अंजान ने कहा कि रक्षा संबंधी खरीद के लिए इस बार बजट की राशि काफी बढ़ायी गयी है। परन्तु खरीद में पारदर्शिता का कभी ख्याल नहीं रखा जाता। सेना प्रमुख को 14 करोड़ रुपये की घूस आफर करने का मामला गंभीर है। उन्होंने कहा कि सरकार महंगाई को रोकने में विफल तो साबित हो ही रही है, रेलवे में माल ढुलाई का भाड़ा बढ़ाकर महंगाई में और इजाफा करने में लगी है। जन वितरण प्रणाली को सुदृढ़ करने की बजाय 'कैश सब्सिडी' की बात कर इसे बंद करने पर तुली है। 1993 से लेकर अबतक अवैध रूप से 289 कोल ब्लाक का आवंटन किया गया है। कैग ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में 10.67 लाख करोड़ के राजस्व के नुकसान की बात कही है। श्री फैजी ने कहा कि इन प्रस्तावों पर अबतक 14 राज्यों के 17 प्रतिनिधियों ने अपने विचार रखे हैं। शुक्रवार को इन राजनीतिक प्रस्तावों पर अंतिम रूप से फैसला लिया जाएगा।

Thursday 29 March, 2012

कम्युनिस्टों का राजनीतिक विकल्प बनने पर जोर


democratic left alliance to work together

पटना। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी [भाकपा] के महाधिवेशन के खुले सत्र में बुधवार को पांच बड़े वामपंथी दलों का शीर्ष नेतृत्व एक मंच पर जुटा। सभी ने कांग्रेस, भाजपा की गिरती साख और उनके कमजोर होने का हवाला देते हुए विकल्प बनने के लिए कम्युनिस्ट पार्टियों की एकजुटता पर बल दिया। इस दौरान भाकपा के राष्ट्रीय महासचिव एबी ब‌र्द्धन के नेतृत्व में वाम एकता का मसौदा तैयार करने का निर्णय लिया गया।
खुले सत्र का उद्घाटन भाकपा महासचिव ब‌र्द्धन ने किया। जबकि माकपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रकाश करात, भाकपा [माले] के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य, फारवर्ड ब्लाक के राष्ट्रीय महासचिव देवव्रत विश्वास और आरएसपी के राष्ट्रीय सचिव अबनी रॉय ने एकता पर अपना-अपना नजरिया पेश किया। सभी ने वाम एकता पर यह कहते हुए सहमति जतायी-'देश हमें सही विकल्प के रूप में देख रहा है।' प्रकाश करात ने कहा कि दो दशक पहले सोवियत संघ के विघटन के बाद विश्वभर में पूंजीवाद के फतह की जो गूंज उठी थी, वह खामोश हो गई है। पिछले चार सालों से पूंजीवाद संकट में है। जैसी मंदी देखी जा रही है, वैसी 1930 में भी नहीं थी। लोग अब समाजवाद को ही नव-उदारवादी पूंजीवाद के विकल्प के रूप में देख रहे हैं। भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस और भाजपा में कोई अंतर नहीं है।

Wednesday 28 March, 2012

रैली से हुई भाकपा महाधिवेशन की शुरुआत



भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के 21 वें राष्ट्रीय महाधिवेशन की शुरुआत विशाल रैली से हुई। गांधी मैदान में कार्यकर्ता करीब नौ बजे ही अपने-अपने जिलों के बैनर के पीछे कतारबद्ध हो गये थे। रैली गांधी मैदान से निकलती रही है और कार्यकर्ता लाल झंडा हाथ में थामे गाजे बाजे के साथ आते रहे। भाकपा की रैली गांधी मैदान से करीब 12 बजे निकली। 21 घोड़ों पर लाल झंडा लिए जनसेवा दल का सबसे आगे चल रहे थे। उसके पीछे 21 मोटरसाइकिलों पर 63 लाल वर्दीधारी जवान मार्च कर रहे थे। इनके जन सेवा दल के कई टुकड़ियां मार्च कर रही थी, जिसमें एक हजार युवक और युवतियां थीं। रैली का नेतृत्व भाकपा के राष्ट्रीय उप महासचिव एस सुधाकर रेड्डी, राष्ट्रीय सचिव अमजीत कौर, अतुल कुमार अंजान, गुरुदास दास गुप्ता, भाकपा के राज्य सचिव बद्रीनारायण लाल, पूर्व विधायक रामनरेश पांडेय, पूर्व विधान पाषर्द संजय कुमार सहित कई राष्ट्रीय नेताओं ने किया। इन नेताओं के पीछे-पीछे विभिन्न जिलों का जत्था मार्च कर रहा था। जन सेवा दल के जवान राज्य कमांडर चंदेरी प्रसाद सिंह और विद्या सिंह के नेतृत्व में पैदल मार्च कर रहे थे। वहीं पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह घोड़े पर सवाड़ जनसेवा दल के का नेतृत्व कर रहे थे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव एबी बर्धन ने पार्टी के 21 वें राष्ट्रीय महाधिवेशन का झंडोत्तोलन किया। इस मौके पर जनसेवा दल के सैकड़ों युवक युवतियों ने झंडे की सलामी दी और 21 बम पटाखे भी फोड़े गये। महासचिव श्री बर्धन और राज्य सचिव बद्रीनारायण लाल ने 21 लाल गुब्बारे हवा में उड़ाये। इस मौके पर भाकपा के उप महासचिव एस सुधाकर रेड्डी, राष्ट्रीय सचिव डी राज, अतुल कुमार अंजान, अमरजीत कौर, सचिव मंडल सदस्य जितेंद्रनाथ, पूर्व विधायक रामनरेश पांडेय, राज्य कार्यकारिणी सदस्य चंदेरी प्रसाद सिंह आदि मौजूद थे। भाकपा नेताओं ने झंडोत्तोलन के बाद शहीद वेदी पर माल्यार्पण भी किया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने रैली शुरू होने से पहले भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों की प्रतिमा और शहीद स्मारकों पर माल्यापर्ण भी किया। इनमें वीर कुवंर सिंह, शहीस स्मारक, करगिल शहीदों की याद में बनाये गये शहीद स्मारक, पीर अली, शहीदे आजम भगत सिंह और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा शामिल है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक मंगलवार को हुई। बैठक में 21 वें राष्ट्रीय महाधिवेशन के संचालन को लेकर योजना बनायी गयी। महाधिवेशन का संचालन 31 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी करेगी। साथ ही चार दिवसीय प्रतिनिधि सत्र की अध्यक्षता की जिम्मेवारी नौ सदस्यीय अध्यक्ष मंडली को दी गयी है। अध्यक्ष मंडल का संयोजक अमरजीत कौर को बनाया गया है।

रैली से हुई भाकपा महाधिवेशन की शुरुआत


Tuesday 27 March, 2012

भाकपा ने क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस व भाजपा से दूर रहे


पटना,  भाकपा ने क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस  भाजपा से दूर रहने की सलाह दी है।
गठबंधन राजनीति को वक्त का तकाजा बताते हुए पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव एबी र्द्धन ने
मंगलवार को पटना में कहा कि देश में नए राजनीतिक समीकरण के लिए क्षेत्रीय पार्टियों को कांग्रेस एवं
भाजपा से दूर रहकर अपनी अलग पहचान बनानी चाहिए।
वे पूंजीवादी व्यवस्था एवं कारपोरेट घरानों से प्रभावित हुए बिना अपनी स्पष्ट आर्थिक नीति बनाएं,
उन्हें वाम दलों का साथ मिलेगा।
मंगलवार को पटना के गांधी मैदान में जनसभा के माध्यम से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के 21 वें महाधिवेशन
की शुरुआत हुई। जनसभा में श्री र्द्धन ने कहा कि
'कांग्रेस-भाजपा ने सभी हथकंडे अपनाए, लेकिन पांच राज्यों में हुए चुनाव में जनता ने
दूसरी पार्टियों को पसंद किया। लोग इन्हें जात-पांत पर आधारित क्षेत्रीय दल कहते हैं।
मैं कहता हूं इन्हें कांग्रेस एवं भाजपा से हटकर अपनी अलग पहचान बनानी होगी।
इन्हें तय करना होगा कि मजदूरों-मेहनतकशों के साथ जाएंगे या कारपोरेट घराने-पूंजीवादी व्यवस्था के साथ रहेंगे।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर इशारा करते हु
उन्होंने कहा कि भाजपा जैसी फिरकापरस्त ताकतों के साथ रहने से कुछ हासिल नहीं होगा।
राज्य सरकार का बहुत तरक्की करने का दावा शेखचिल्ली के दावे जैसा है। विशेष राज्य के दर्जे की
मांग का हम समर्थन करते हैं, लेकिन इसके लिए जनता का भी सहयोग चाहिए।
उन्होंने कहा कि राजनीति वहां नहीं है जहां सोनिया गांधी हैं, या हाइकमान है।
राजनीति वहां है जहां लोग ज्वलंत मुद्दों को लेकर सड़क पर आंदोलन कर रहे हैं।
भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। उस राजनीति से हमें जुड़ना होगा। छंटनी,
बेरोजगारी, खाद्य सुरक्षा, भ्रष्टाचार, जमीन आदि मुद्दों पर संघर्ष तेज होगा।
गोलियों और लाठियों का सामना भी करना होगा।
श्री र्द्धन ने कहा कि कांग्रेस और भाजपा से इतर एक विकल्प तैयार करने की रणनीति महाधिवेशन में तय की जाएगी।
भाकपा इस पहल का नेतृत्व करेगी। अन्य वाम दलों से भी इस मुद्दों पर सहयोग एवं सलाह ली जाएगी।
जनसभा को पार्टी के उप हासचिव सुधाकर रेड्डी, राष्ट्रीय सचिव अमरजीत कौर,
अतुल कुमार अंजान और राज्य सचिव बद्री नारायण लाल ने भी संबोधित किया। मंच पर डी।राजा, गुरुदास गुप्ता,
शत्रुघ्न प्रसाद सिंह सहित अनेक वरिष्ठ नेता उपस्थित थे।

Thursday 22 March, 2012

कामरेड सी. के. चन्द्रप्पन दिवंगत



लखनऊ 22 मार्च। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के सचिव एवं पार्टी की केरल
राज्य परिषद के सचिव कामरेड सी. के. चन्द्रप्पन का केरल की राजधानी स्थित तिरूअनन्तपुरम
अस्पताल में आज दोपहर में निधन हो गया। वे केवल 67 वर्ष के थे। उनके शव को जनता के
दर्शनार्थ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के केरल राज्य मुख्यालय पर रखा गया है, जहां से उसे
व्यालार ले जाया जायेगा जहां उनका अंतिम संस्कार कल दोपहर में होगा।
कामरेड चन्द्रप्पन पुन्नप्रा व्यालार जनसंघर्ष के अप्रतिम योद्धा सी. के. कुमार पनिक्कर तथा
अम्मुकुट्टी की संतान थे जो अपने छात्र जीवन से ही राजनीति में आ गये थे। 11 नवम्बर 1936
को जन्मे कामरेड चन्द्रप्पन 1956 में आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईएसएफ) के केरल
राज्य के अध्यक्ष चुने गये थे। बाद में वे आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईवाॅयएफ) तथा
अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लम्बे समय तक रहे। वे तीन बार 1971, 1977
तथा 2004 में लोकसभा के सदस्य चुने गये तथा एक बार केरल विधान सभा के भी सदस्य रहे।
वनवासियों को वन उपजों का अधिकार देने वाले कानून को ड्राफ्ट करने में तथा उसे संसद में
पास करवाने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा।
कामरेड चन्द्रप्पन की शुरूआती शिक्षा चेरथला और थिरूपुंथुरा में हुई। बाद में उन्होंने चित्तूर
राजकीय कालेज से स्नातक की उपाधि ली तथा परास्नातक स्तर की शिक्षा थिरूअनंतपुरम के
यूनिवर्सिटी कालेज में ग्रहण की।
उन्होंने बहुत कम उम्र में गोवा की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में हिस्सा लिया था। वे कई बार
जनता के लिए संघर्ष करते हुए गिरफ्तार किये गये और जेल भेज गये। जनसंघर्षों में उन्हें
दिल्ली की तिहाड़ तथा कोलकाता की रेजीडेंसी जेल में लम्बे समय तक रहना पड़ा।
1970 में वे भाकपा की राष्ट्रीय परिषद के लिए चुने गये और लम्बे समय तक उसकी राष्ट्रीय
कार्यकारिणी और सचिव मंडल के सदस्य रहे। मृत्युपर्यन्त वे राष्ट्रीय परिषद के सचिव तथा केरल
के राज्य सचिव रहे। जनसंघर्षों के योद्धा कामरेड चन्द्रप्पन के निधन से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
को बड़ा आघात लगा है। उनकी मृत्यु से उत्पन्न शून्य को निकट भविष्य में भरा नहीं जा
सकेगा।
उनके निधन का समाचार मिलते ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य मुख्यालय पर उनके
सम्मान में पार्टी का ध्वज झुका दिया गया। राज्य कार्यालय पर आयोजित एक शोक सभा में
भाकपा के वरिष्ठ नेता अशोक मिश्र, प्रदीप तिवारी, आशा मिश्रा, शमशेर बहादुर सिंह, मुख्तार
अहमद तथा ओ. पी. अवस्थी आदि ने उन्हें अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये।

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