भारत की भूमि पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना सम्मेलन उत्तर प्रदेश
के कानपुर में 90 साल पहले 26-28 दिसम्बर, 1925 को सम्पन्न हुआ था। भारतीय
कम्युनिस्ट पार्टी के केन्द्रीय सचिव मंडल सदस्य रहे तथा वर्षों तक गहन
अनुसंधान के बाद कई खंडों में प्रकाशित पार्टी इतिहास का सम्पादन करने वाले
डॉ. गंगाधर अधिकारी ने ‘डाक्युमेंट्स ऑफ दि हिस्ट्री ऑफ दि कम्युनिस्ट
पार्टी ऑफ इंडिया’ के द्वितीय खंड (1923-1925) में लिखा है कि सबसे पहले
कानपुर बोल्शेविक षड्यंत्र केस में गिरफ्तार कम्युनिस्ट गुटों के नेताओं
ने, विशेषकर कॉ. एस.ए. डांगे को ऐसा सम्मेलन कराने का विचार आया था।
कम्युनिस्ट रहे एस. सत्यभक्त ने इंडियन कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव के नाम
पर जारी एक परिपत्र द्वारा देश के विभिन्न शहरों में कार्यरत कम्युनिस्ट
गुटों के सदस्यों तथा उन सभी को जिनको पार्टी के कार्यों पर विश्वास था,
आग्रह किया था कि वे सभी कानपुर में 26 से 28 दिसम्बर, 1925 को आयोजित इस
सम्मेलन में भाग लें। 20 सितम्बर, 1925 को हुई बैठक में इस सम्मेलन के लिए
स्वागत समिति का गठन किया गया। उसके अध्यक्ष बने मौलाना हसरत मोहानी और
सचिव गणेश शंकर विद्यार्थी। ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य के रूप में
वहाँ के पार्लियामेंट में चुने गए एक भारतीय कॉ. शापुरजी सकलतवाला को
सत्यभक्त ने इस सम्मेलन की अध्यक्षता करने का आमंत्रण पत्र भेजा था। उनके
असमर्थता जताने पर मद्रास के कम्युनिस्ट नेता कॉ. सिंगारावेलु चेट्टीयार को
अध्यक्षता के लिए आमंत्रित किया गया। कॉ. सकलतवाला द्वारा भेजे गए संदेश
को सम्मेलन में पढ़कर सुनाया गया। कॉ. सिंगारावेलु ने अपने अध्यक्षीय भाषण
में पढ़ा-ऐसे समय जबकि कम्युनिज्म के विरोधी लोग इस धरती पर बसने वाले सभी
मनुष्यों के लिए दुनिया को ज्यादा से ज्यादा खुशहाल और सुख-सम्पन्न बनाने
वाले हमारे लोकोपकारी आंदोलन को कुचलने का प्रयास कर रहे हैं, भारत के हम
कम्युनिस्ट भारत की राजनैतिक और आर्थिक स्थिति पर सामान्य रूप से विचार
करने आज इस हॉल में एकत्र हुए हैं। हम उम्मीद करते हैं कि इस सम्मेलन में
होने वाले विचार-विमर्शों के माध्यम से हमारे देशवासी और हमारे शासक दोनों
ही हमारे शांतिपूर्ण आंदोलन को अच्छी तरह समझेंगे तथा हम अपनी इच्छा व्यक्त
करते हैं कि सामान्य जनता, खासकर उद्योग-धंधों और कृषि क्षेत्रों के
मजदूर, जिनके लाभ के लिए ही यह सम्मेलन हो रहा है, हमारे कार्यों का
भली-भाँति मूल्यांकन करेंगे।
के.मुरुगेसन और सी.एस. सुब्रह्मण्यम द्वारा लिखित, ‘सिंगारावेलु दक्षिण भारत में कम्युनिज्म के अग्रदूत’ अंग्रेजी पुस्तक जिसका हिन्दी अनुवाद श्री कन्हैया द्वारा किया गया, उसे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की 50वें वर्षगाँठ के अवसर पर पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित की गई थी। उसे पढ़ने से हम जान पाते हैं कि, सिंगारावेलु दक्षिण में कम्युनिज्म के जनक थे। वे अपने कम्युनिस्ट विचारों को मजदूर-वर्ग के संघर्षों के प्रत्येक कार्य क्षेत्र में, कांग्रेस के आत्मगौरव आंदोलन में और नागरिक मामलों में भी लागू करते थे। 1860 में मद्रास के एक मछेरे परिवार में जन्मे सिंगारावेलु ने कानून की डिग्री हासिल की और हाईकोर्ट में वकालत की। 1902 में इंग्लैंड की यात्रा कर वहाँ विश्व बौद्ध सम्मेलन में भाग लिया। जब वह भारत लौटकर आए, तो उनके घर में ही महाबोधि सोसायटी की बैठक होने लगी। बाद में वे रूस की 1905 की क्रांति के समाचार से प्रेरित हुए, जलियांवाला बाग हत्याकांड और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए गांधीजी के आह्वान के बाद मद्रास शहर में नौजवानों के एक दल का नेतृत्व करना शुरू किया। उन्होंने 1922 में कांग्रेस प्रतिनिधि के रूप में गया-अधिवेशन में भी भाग लिया। सिंगारावेलु ने 1923 में मद्रास में हिन्दुस्तान मजदूर-किसान पार्टी की स्थापना की और मद्रास नगर में मई दिवस सभा का आयोजन किया। इतिहास में भारत में आयोजित पहला मई दिवस वही था। दैनिक समाचार पत्र कीर्ति के अनुसार कानपुर में आयोजित कांग्रेस पार्टी के
अधिवेशन पंडाल के पास ही सड़क के दूसरी तरफ विशेष रूप से बनाए गए अस्थायी सभागृह में कम्युनिस्ट पार्टी के सम्मेलन में 300 से ऊपर प्रतिनिधि उपस्थित थे। 25 दिसम्बर को सम्मेलन उद्घाटन अधिवेशन हुआ था। 26 दिसम्बर की शाम को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की विधिवत स्थापना का प्रस्ताव भी था। 27 दिसम्बर को पार्टी संविधान पारित किया गया और केन्द्रीय कार्यकारिणी समिति व पदाधिकारियों का चुनाव हुआ। महाराष्ट्र, बंगाल, लाहौर, उत्तर प्रदेश, पंजाब व मद्रास के कम्युनिस्ट गुटों के प्रतिनिधि शामिल थे। मुजफ्फर अहमद द्वारा 1969 में बंगाली में लिखित पुस्तक अमार जीवन आर. भारतेर कम्युनिस्ट पार्टी के मुताबिक इस सम्मेलन से एस.व्ही. घाटे और जानकी प्रसाद बगरेहट्टा संयुक्त महासचिव चुने गए और घाटे को बम्बई केन्द्रीय कार्यालय संचालन की जिम्मेदारी दी गई। पार्टी का 11 सदस्यीय केन्द्रीय कार्यकारिणी का भी चुनाव हुआ, जिसमें से एक थे कॉ. मुजफ्फर अहमद। बाद में कॉ. मुजफ्फर अहमद ने उसी पुस्तक में, जिसे पार्टी का 1964 में विभाजन के बाद 1969 में लिखा गया था, लिखा कि कानपुर में कम्युनिस्ट सम्मेलन एक बच्चों का खेल था और वे इसे एक शर्मनाक घटना मानते हैं। उन्होंने दावा किया कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना कानपुर में 26 दिसम्बर 1925 को नहीं, बल्कि ताशकंद में एम.एन. राय के नेतृत्व में 17 अक्टूबर, 1920 को 7 सदस्यों की एक बैठक आयोजित की गई थी। 1964 में बनी सीपीआई (एम) के नेताओं ने उनकी पार्टी का कलकत्ता में सम्पन्न सप्तम पार्टी कांग्रेस (31 अक्टूबर से 7 नवंबर, 1964) में सीपीआई (एम) के जिस पार्टी कार्यक्रम को पास करवाया गया, उसकी भूमिका में लिखा गया कि सन् 1920 में कम्युनिस्ट पार्टी का गठन हुआ और 1920 के दशक में पार्टी गठित होने के बाद पार्टी गैरकानूनी घोषित हो गई। सीपीआई (एम) के स्थापना वर्ष को 1920 दर्शाते हुए उस पार्टी ने अपने को सीपीआई से अलग दिखाने का प्रयास ही नहीं किया, बल्कि सन 2014 में सीपीआई से अलग होने का 50वीं वर्षगाँठ मनाते हुए इस बात की बहुत खुशी जाहिर की कि उनकी पार्टी को सीपीआई के संशोधनवाद से मुक्ति मिली थी। वहीं अपने लक्ष्य के बारे में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने कहा, पार्टी ऐसे न्यायपूर्ण समाजवादी समाज के लक्ष्य के लिए दृढ़तापूर्वक समर्पित है जो हर किस्म के शोषण और वर्ग, जाति एवं लिंग अंतरों के कारण पैदा होने वाले सामाजिक उत्पीड़न को समाप्त करने के लिए रास्ता साफ करेगी। पार्टी ऐसे समाजवादी समाज के निर्माण के लिए समर्पित है, जिसमें मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण अंततः समाप्त हो जाएगा। तमाम मतांध और मात्र सिद्धांतवादी एवं मताग्राही सोच एवं संशोधनवादी रूझानों को अस्वीकार करते हुए, पार्टी एक ऐसे नये समाजवादी समाज के लिए रास्ते की रूपरेखा तैयार करने के लिए भारत की विशिष्ट परिस्थितियों के अनुसार मार्क्सवादी लेनिनवाद के विज्ञान को लागू करेगी। यह रास्ता सामने उपस्थित विशिष्ट ऐतिहासिक परिस्थितियों और साथ ही हमारे स्वयं के देश की विशेष विशिष्टताओं एवं लक्षणों, इसके इतिहास, परंपरा, संस्कृति, सामाजिक बनावट एवं विकास के स्तर से तय होगा। यह किसी मॉडल पर आधारित नहीं होगा। यह अद्वितीय और विशेषतः इस 21वीं सदी में समाजवाद का भारतीय रास्ता होगा। मुख्य तत्व है उत्पादन के मुख्य साधनों का समाजीकरण। सीपीआई के राजनैतिक प्रस्ताव-2015 में कहा गया कि, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी दृढ़तापूर्वक विश्वास करती है कि अपनी समृद्ध विरासत के साथ जनता के उद्देश्यों के लिए संघर्ष और अभियान से समाजवादी समाज के लिए पथ प्रशस्त करके एक जनविकल्प का निर्माण होगा। समाजवादी हमारा भविष्य है।
के.मुरुगेसन और सी.एस. सुब्रह्मण्यम द्वारा लिखित, ‘सिंगारावेलु दक्षिण भारत में कम्युनिज्म के अग्रदूत’ अंग्रेजी पुस्तक जिसका हिन्दी अनुवाद श्री कन्हैया द्वारा किया गया, उसे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की 50वें वर्षगाँठ के अवसर पर पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित की गई थी। उसे पढ़ने से हम जान पाते हैं कि, सिंगारावेलु दक्षिण में कम्युनिज्म के जनक थे। वे अपने कम्युनिस्ट विचारों को मजदूर-वर्ग के संघर्षों के प्रत्येक कार्य क्षेत्र में, कांग्रेस के आत्मगौरव आंदोलन में और नागरिक मामलों में भी लागू करते थे। 1860 में मद्रास के एक मछेरे परिवार में जन्मे सिंगारावेलु ने कानून की डिग्री हासिल की और हाईकोर्ट में वकालत की। 1902 में इंग्लैंड की यात्रा कर वहाँ विश्व बौद्ध सम्मेलन में भाग लिया। जब वह भारत लौटकर आए, तो उनके घर में ही महाबोधि सोसायटी की बैठक होने लगी। बाद में वे रूस की 1905 की क्रांति के समाचार से प्रेरित हुए, जलियांवाला बाग हत्याकांड और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए गांधीजी के आह्वान के बाद मद्रास शहर में नौजवानों के एक दल का नेतृत्व करना शुरू किया। उन्होंने 1922 में कांग्रेस प्रतिनिधि के रूप में गया-अधिवेशन में भी भाग लिया। सिंगारावेलु ने 1923 में मद्रास में हिन्दुस्तान मजदूर-किसान पार्टी की स्थापना की और मद्रास नगर में मई दिवस सभा का आयोजन किया। इतिहास में भारत में आयोजित पहला मई दिवस वही था। दैनिक समाचार पत्र कीर्ति के अनुसार कानपुर में आयोजित कांग्रेस पार्टी के
अधिवेशन पंडाल के पास ही सड़क के दूसरी तरफ विशेष रूप से बनाए गए अस्थायी सभागृह में कम्युनिस्ट पार्टी के सम्मेलन में 300 से ऊपर प्रतिनिधि उपस्थित थे। 25 दिसम्बर को सम्मेलन उद्घाटन अधिवेशन हुआ था। 26 दिसम्बर की शाम को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की विधिवत स्थापना का प्रस्ताव भी था। 27 दिसम्बर को पार्टी संविधान पारित किया गया और केन्द्रीय कार्यकारिणी समिति व पदाधिकारियों का चुनाव हुआ। महाराष्ट्र, बंगाल, लाहौर, उत्तर प्रदेश, पंजाब व मद्रास के कम्युनिस्ट गुटों के प्रतिनिधि शामिल थे। मुजफ्फर अहमद द्वारा 1969 में बंगाली में लिखित पुस्तक अमार जीवन आर. भारतेर कम्युनिस्ट पार्टी के मुताबिक इस सम्मेलन से एस.व्ही. घाटे और जानकी प्रसाद बगरेहट्टा संयुक्त महासचिव चुने गए और घाटे को बम्बई केन्द्रीय कार्यालय संचालन की जिम्मेदारी दी गई। पार्टी का 11 सदस्यीय केन्द्रीय कार्यकारिणी का भी चुनाव हुआ, जिसमें से एक थे कॉ. मुजफ्फर अहमद। बाद में कॉ. मुजफ्फर अहमद ने उसी पुस्तक में, जिसे पार्टी का 1964 में विभाजन के बाद 1969 में लिखा गया था, लिखा कि कानपुर में कम्युनिस्ट सम्मेलन एक बच्चों का खेल था और वे इसे एक शर्मनाक घटना मानते हैं। उन्होंने दावा किया कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना कानपुर में 26 दिसम्बर 1925 को नहीं, बल्कि ताशकंद में एम.एन. राय के नेतृत्व में 17 अक्टूबर, 1920 को 7 सदस्यों की एक बैठक आयोजित की गई थी। 1964 में बनी सीपीआई (एम) के नेताओं ने उनकी पार्टी का कलकत्ता में सम्पन्न सप्तम पार्टी कांग्रेस (31 अक्टूबर से 7 नवंबर, 1964) में सीपीआई (एम) के जिस पार्टी कार्यक्रम को पास करवाया गया, उसकी भूमिका में लिखा गया कि सन् 1920 में कम्युनिस्ट पार्टी का गठन हुआ और 1920 के दशक में पार्टी गठित होने के बाद पार्टी गैरकानूनी घोषित हो गई। सीपीआई (एम) के स्थापना वर्ष को 1920 दर्शाते हुए उस पार्टी ने अपने को सीपीआई से अलग दिखाने का प्रयास ही नहीं किया, बल्कि सन 2014 में सीपीआई से अलग होने का 50वीं वर्षगाँठ मनाते हुए इस बात की बहुत खुशी जाहिर की कि उनकी पार्टी को सीपीआई के संशोधनवाद से मुक्ति मिली थी। वहीं अपने लक्ष्य के बारे में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने कहा, पार्टी ऐसे न्यायपूर्ण समाजवादी समाज के लक्ष्य के लिए दृढ़तापूर्वक समर्पित है जो हर किस्म के शोषण और वर्ग, जाति एवं लिंग अंतरों के कारण पैदा होने वाले सामाजिक उत्पीड़न को समाप्त करने के लिए रास्ता साफ करेगी। पार्टी ऐसे समाजवादी समाज के निर्माण के लिए समर्पित है, जिसमें मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण अंततः समाप्त हो जाएगा। तमाम मतांध और मात्र सिद्धांतवादी एवं मताग्राही सोच एवं संशोधनवादी रूझानों को अस्वीकार करते हुए, पार्टी एक ऐसे नये समाजवादी समाज के लिए रास्ते की रूपरेखा तैयार करने के लिए भारत की विशिष्ट परिस्थितियों के अनुसार मार्क्सवादी लेनिनवाद के विज्ञान को लागू करेगी। यह रास्ता सामने उपस्थित विशिष्ट ऐतिहासिक परिस्थितियों और साथ ही हमारे स्वयं के देश की विशेष विशिष्टताओं एवं लक्षणों, इसके इतिहास, परंपरा, संस्कृति, सामाजिक बनावट एवं विकास के स्तर से तय होगा। यह किसी मॉडल पर आधारित नहीं होगा। यह अद्वितीय और विशेषतः इस 21वीं सदी में समाजवाद का भारतीय रास्ता होगा। मुख्य तत्व है उत्पादन के मुख्य साधनों का समाजीकरण। सीपीआई के राजनैतिक प्रस्ताव-2015 में कहा गया कि, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी दृढ़तापूर्वक विश्वास करती है कि अपनी समृद्ध विरासत के साथ जनता के उद्देश्यों के लिए संघर्ष और अभियान से समाजवादी समाज के लिए पथ प्रशस्त करके एक जनविकल्प का निर्माण होगा। समाजवादी हमारा भविष्य है।
-चित्तरंजन बक्शी
लोकसंघर्ष पत्रिका अप्रैल 2018 विशेषांक में प्रकाशित
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