Friday 12 February, 2010

मंत्रियों-विधायकों की वेतन वृद्धि से जनता हलकान

सुप्रसिद्ध शायर साहिर लुधियानवी की एक प्रसिद्ध ग़ज़ल की पंक्तियां इस प्रकार हैं -
एक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल
हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक।
लेकिन साहिर लुधियानवी की ये पंक्तियां उस शाहजहां के बारे में थी जो एक सामंती सम्राट था, जनता द्वारा चुना गया नेता नहीं। लेकिन सुश्री मायावती की सरकार तो एक जनता द्वारा निर्वाचित सरकार है। माननीय विधायकों, मंत्रियों आदि चुने गये जन प्रतिनिधियों के वेतन, भत्तों और अन्य सुविधाओं में सरकार द्वारा की गई विशाल वृद्धि ने सामंती शासक शाहजहां को भी पीछे छोड़ दिया है।
और यह उस समय किया गया है जब प्रदेश में हर पांच में से दो आदमी गरीबी की सीमा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं, सार्वत्रिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अभाव में प्रदेश की जनता महंगाई की मार से त्राहि-त्राहि कर उठी है, प्रदेश के नौजवान रोजगार के लिये दर-दर ठोकरें खा रहे हैं, घाटे वाली खेती करते-करते किसान आत्महत्यायें करने को मजबूर हैं, गरीबों के बच्चों को शिक्षा नहीं मिल रही, स्वास्थ्य सेवायें ठप पड़ी हैं, खेतिहर मजदूरों और फुटकर मजदूरों को गुजारे लायक वेतन नहीं मिल रहा, सड़के खस्ताहाल हैं तथा नई सिंचाई योजनायें बनाई नहीं जा रही। कुल मिलाकर विकास दर काफी पीछे है।
जो प्रदेश दो लाख करोड़ रुपये के कर्ज में डूबा हो उस प्रदेश में परजीवी ;च्ंतंेपजमेद्ध इन माननीयों के वेतन भत्तों में एक मुश्त 66 प्रतिशत की वृद्धि कर देना प्रदेश की जनता के साथ क्रूर मजाक नहीं तो और क्या है? इस वृद्धि से प्रदेश की गरीब जनता के ऊपर एक करोड़ बीस लाख रुपये प्रतिमाह का बोझ बढ़ गया।
ये माननीयगण जो अपने सत्कर्मों से पहले ही काफी मालामाल हैं और नोट से वोट खरीदने की ताकत का इस्तेमाल करते रहते हैं उनकी संपत्तियों की जांच कराके दंडित करने के बजाये सुश्री मायावती की सरकार ने उन्हें और भी मालामाल करने का रास्ता खोल दिया है। विधानसभा के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, विधान परिषद के सभापति, उपसभापति एवं मंत्रियों एवं विधायकों के वेतन भत्तों में करीब 20 हजार रुपये प्रतिमाह की वृद्धि कर दी गई है। अन्य कई को भी रेबड़ियां बांटी गई हैं।
मजे की बात है कि इस वृद्धि का विरोध सदन के पटल पर किसी दल ने नहीं किया। विपक्षी दलों के नेताओं ने बाहर आकर इसके विरूद्ध बढ़-चढ़ कर बयान दिये। किसी ने घोषणा नहीं की हम प्रदेश की जनता के गाढ़े पसीने की कमाई के बल पर की गई इस बढ़ी रकम को स्वीकार नहीं करेंगे। (वर्तमान में प्रदेश विधानसभा और परिषद में वामपंथी दलों का प्रतिनिधि नहीं है।) जाहिर है हमाम में सब नंगे हैं। क्या सत्ता पक्ष क्या विपक्ष।
सभी जानते हैं कि सुश्री मायावती किसी काम को बिना सोचे समझे नहीं करतीं। ऐसे में यह कयास लगाना कोई गलत न होगा कि अपने मंत्रियों, अपने विधायकों (विधानसभा एवं विधान परिषद सदस्यों) को वे 2012 के विधान सभा चुनावों के लिये आर्थिक तौर पर मजबूत कर रही हैं। वहीं विपक्षी विधायकों को बख्शीश देकर उन्होंने उनको भी जनता के बीच कठघरे में खड़ा कर दिया हैं।
राजनीति का पेंच जो भी हो प्रदेश की जनता इस वृद्धि से कराह उठी है और उसकी यह ख्वाहिश रहती है कि उसके प्रतिनिधि उसके लिये काम करें अपने लिये नहीं। अब बहरे-गूंगे लोकतंत्र की भूल भुलैया में जनता की आवाज तो गुम होकर रह गई है। इसे संगठित करने की जरूरत है।

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