Saturday 28 January, 2012

क्रांतिकारी की कथा



क्रांतिकारी' उसने उपनाम रखा था। खूब पढ़ा-लिखा युवक। स्वस्थ, सुंदर। नौकरी भी अच्छी। विद्रोही। मार्क्स-लेनिन के उद्धरण देता, चे-ग्वेवारा का खास भक्त।
कॉफी हाउस में काफी देर तक बैठता। खूब बातें करता। हमेशा क्रांतिकारिता के तनाव में रहता। सब उलट-पुलट देना है। सब बदल देना है। बाल बड़े, दाढ़ी करीने से बढ़ाई हुई। विद्रोह की घोषणा करता। कुछ करने का मौका ढूँढ़ता। कहता, "मेरे पिता की पीढ़ी को जल्दी मरना चाहिए। मेरे पिता घोर दकियानूस, जातिवादी, प्रतिक्रियावादी हैं। ठेठ बुर्जुआ। जब वे मरेंगे तब मैं न मुंडन कराऊँगा, न उनका श्राद्ध करूँगा। मैं सब परंपराओं का नाश कर दूँगा। चे-ग्वेवारा जिंदाबाद।"

कोई साथी कहता, "पर तुम्हारे पिता तुम्हें बहुत प्यार करते हैं।"

क्रांतिकारी कहता, "प्यार? हाँ, हर बुर्जुआ क्रांतिकारिता को मारने के लिए प्यार करता है। यह प्यार षड्यंत्र है। तुम लोग नहीं समझते। इस समय मेरा बाप किसी ब्राह्मण की तलाश में है जिससे बीस-पच्चीस हजार रुपए ले कर उसकी लड़की से मेरी शादी कर देगा। पर मैं नहीं होने दूँगा। मैं जाति में शादी करूँगा ही नहीं। मैं दूसरी जाति की, किसी नीच जाति की लड़की से शादी करूँगा। मेरा बाप सिर धुनता बैठा रहेगा।"

साथी ने कहा, "अगर तुम्हारा प्यार किसी लड़की से हो जाए और संयोग से वह ब्राह्मण हो तो तुम शादी करोगे न?"

उसने कहा, "हरगिज नहीं। मैं उसे छोड़ दूँगा। कोई क्रांतिकारी अपनी जाति की लड़की से न प्यार करता है, न शादी। मेरा प्यार है एक कायस्थ लड़की से। मैं उससे शादी करूँगा।"

एक दिन उसने कायस्थ लड़की से कोर्ट में शादी कर ली। उसे ले कर अपने शहर आया और दोस्त के घर पर ठहर गया। बड़े शहीदाना मूड में था। कह रहा था, "आई ब्रोक देअर नेक। मेरा बाप इस समय सिर धुन रहा होगा, माँ रो रही होगी। मुहल्ले-पड़ोस के लोगों को इकट्ठा करके मेरा बाप कह रहा होगा, 'हमारे लिए लड़का मर चुका।' वह मुझे त्याग देगा। मुझे प्रापर्टी से वंचित कर देगा। आई डोंट केअर। मैं कोई भी बलिदान करने को तैयार हूँ। वह घर मेरे लिए दुश्मन का घर हो गया। बट आई विल फाइट टू दी एंड-टू दी एंड।"

वह बरामदे में तना हुआ घूमता। फिर बैठ जाता, कहता, "बस संघर्ष आ ही रहा है।"

उसका एक दोस्त आया। बोला, "तुम्हारे फादर कह रहे थे कि तुम पत्नी को ले कर सीधे घर क्यों नहीं आए। वे तो काफी शांत थे। कह रहे थे, लड़के और बहू को घर ले आओ।"

वह उत्तेजित हो गया, "हूँ, बुर्जुआ हिपोक्रेसी। यह एक षड्यंत्र है। वे मुझे घर बुला कर फिर अपमान करके, हल्ला करके निकालेंगे। उन्होंने मुझे त्याग दिया है तो मैं क्यों समझौता करूँ। मैं दो कमरे किराए पर ले कर रहूँगा।"

दोस्त ने कहा, "पर तुम्हें त्यागा कहाँ है?"

उसने कहा, "मैं सब जानता हूँ - आई विल फाइट।"

दोस्त ने कहा, "जब लड़ाई है ही नहीं तो फाइट क्या करोगे?"

क्रांतिकारी कल्पनाओं में था। हथियार पैने कर रहा था। बारूद सुखा रहा था। क्रांति का निर्णायक क्षण आनेवाला है। मैं वीरता से लड़ूँगा। बलिदान हो जाऊँगा।
तीसरे दिन उसका एक खास दोस्त आया। उसने कहा, "तुम्हारे माता-पिता टैक्सी ले कर तुम्हें लेने आ रहे हैं। इतवार को तुम्हारी शादी के उपलक्ष्य में भोज है। यह निमंत्रण-पत्र बाँटा जा रहा है।"

क्रांतिकारी ने सर ठोंक लिया। पसीना बहने लगा। पीला हो गया। बोला, "हाय, सब खत्म हो गया। जिंदगी भर की संघर्ष-साधना खत्म हो गई। नो स्ट्रगल। नो रेवोल्यूशन। मैं हार गया। वे मुझे लेने आ रहे है। मैं लड़ना चाहता था। मेरी क्रांतिकारिता! मेरी क्रांतिकारिता! देवी, तू मेरे बाप से मेरा तिरस्कार करवा। चे-ग्वेवारा! डियर चे!"

उसकी पत्नी चतुर थी। वह दो-तीन दिनों से क्रांतिकारिता देख रही थी और हँस रही थी। उसने कहा, "डियर एक बात कहूँ। तुम क्रांतिकारी नहीं हो।"

उसने पूछा, "नहीं हूँ। फिर क्या हूँ?"

पत्नी ने कहा, "तुम एक बुर्जुआ बौड़म हो। पर मैं तुम्हें प्यार करती हूँ।"

-हरिशंकर परसाई


Monday 9 January, 2012

मजदूर आंदोलन की व्यापक एकता के पक्षधर : श्रमिक नेता बासुदेव पाण्डेय नहीं रहे


प्रदेश के श्रमिक आंदोलन के वरिष्ठ नेता तथा उत्तर प्रदेश ट्रेड यूनियन कांग्रेस एटक के अध्यक्ष कामरेड बासुदेव पाण्डेय नहीं रहे। बीते शुक्रवार की रात लखनऊ के गोमतीनगर के प्राइवेट नर्सिंग होम में उनका निधन हुआ। उनकी उम्र अस्सी साल थी। उनका अन्तिम संस्कार उनके गाँव बभनौली ;गोरखपुरद्ध के समीप सरयु तट पर बनेमुक्तिपथपर शनिवार 7 जनवरी को हो गया। प्रदेश विधान सभा चुनाव के शोर के बीच बासुदेव पाण्डेय चुपचाप हमारे बीच से चले गये। कहीं कोई खबर या चर्चा नहीं। यहाँ तक कि ट्रेड यूनियनों की ओर से भी कोई ज्यादा नोटिस नहीं ली गई। यह किसी श्रमिक नेता की उपेक्षा से कही ज्यादा श्रमिक आंदोलन के सवालों के हाशिये पर चले जाने की ओर इंगित करता है।
जो लोग भी प्रदेश के श्रमिक आंदोलन के इतिहास तथा बासुदेव पाण्डेय के व्यक्तित्व और आंदोलन में उनके योगदान से परिचित हैं, उनके लिए कामरेड पाण्डेय का निधन अत्यन्त दुखद और पीड़ादायक है। एक दौर था जब कानपुर के टेक्सटाइल, जूट, चमड़ा से लेकर प्रदेश की चीनी मिलों, कताई मिलों, बिजली, सीमंेट उद्दयोग, राज्य निगमों, राज्य कर्मचारियों, संगठित असंगठित क्षेत्रों में मजदूर संगठनों की अच्छी स्थिति थी। सिर्फ मजदूरों के बीच वामपंथी विचारधारा का खासा प्रभाव था बल्कि एस एम बनर्जी, राम आसरे, हरीश तिवारी जैसे जुझारू समर्पित श्रमिक नेताओं की टीम थी। बासुदेव पाण्डेय उसी टीम में शामिल थे तथा उस पीढ़ी के नेताओं की जीवित आखिरी कडि़यों में थे। उनके निधन से माना जा सकता है कि प्रदेश के श्रमिक आंदोलन की वह पीढ़ी करीब करीब खत्म हो गई।



बासुदेव पाण्डेय की यह विशेषता थी कि प्रदेश के छोटे से बड़े आंदेालनों में हर जगह वे मौजूद रहते थे। श्रमायुक्त कार्यालय या किसी मिल गेट पर धरना प्रदर्शन हो, विधानसभा के सामने रैलियाँ हो, बिजली मजदूरों के आंदोलन हो, स्कूटर्स इण्डिया राज्य निगमों के निजीकरण के विरुद्ध संघर्ष हो, बासुदेव पाण्डेय जुलूस में नारे लगाते, सभा को संबोधित करते, लाठी खाते या जेल जाते मिल जाते। नई आर्थिक नीति के खिलाफ प्रदेश में जो आंदोलन चला उसमें बासुदेव पाण्डेय ने केन्द्रक की भूमिका निभाई। वे वामपंथी विचारधारा तथा एटक जैसे वामपंथी टेªेड यूनियन के नेता थे लेकिन उनके अन्दर कोई वैचारिक संकीर्णता नहीं थी। वे मजदूर आंदोलन की व्यापक एकता के पक्षधर थे। इसके लिए कांग्रेस के मजदूर संगठन इंटक तथा भाजपा की विचारधारा के मजदूर संगठन भारतीय मजदूर संघ से एकता बनाने में भी उन्हें हिचक नहीं थी।
बासुदेव पाण्डेय की स्कूली शिक्षा ज्यादा नहीं थी। उनकी पाठशाला श्रमिकों का संगठन संघर्ष था। सामाजिक शिक्षा जीवन ज्ञान उन्हें यहीं मिला। बासुदेव पाण्डेय के अन्दर बचपन से सामाजिक सवालों पर पहलकदमी लेने की प्रवृति थी। यही खूबी उन्हें मजदूर आंदोलन की ओर ले आई। इसी आंदोलन के दौरान मजदूरों की मुक्ति के सपने देखने उन्होंने शुरू किये। इसी प्रक्रिया में माक्र्सवाद और कम्युनिस्ट पार्टी तक पहुँचे। उनकी राजनीतिक यात्रा का आरम्भ बोल्शेविक पार्टी से हुआ था। बाद में इस पार्टी का भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में विलय हो गया। इस विलय के साथ वे भी कम्युनिस्ट पार्टी में गये और सारी जिन्दगी वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े रहे।
1956 में बासुदेव पाण्डेय बिजली विभाग की सेवा में आये। बिजली विभाग से अपनी नौकरी की शुरुआत की थी। वे हाइड्रो इलेक्ट्रिक इंपलाइज यूनियन के निर्माणकर्ताओं में थे। उन दिनों बिजली कर्मचारियों के ख्यातिप्राप्त नेता हरीश तिवारी थे। वे बिजली कर्मचारी संघ के अध्यक्ष थे। तिवारी जी के साथ मिलकर बासुदेव पाण्डेय ने बिजली कर्मचारियों को नये सिरे संगठित किया। उसे प्रदेश स्तर पर विस्तार दिया। इसी प्रक्रिया में बिजली कर्मचारी संघ में हाइड्रो इलेक्ट्रिक इंपलाइज यूनियन का विलय हुआ। वे इस संघ के कार्यवाहक अध्यक्ष, अध्यक्ष, महामंत्री जैसे पदों पर कार्य किया।
बासुदेव पाण्डेय को बिजली कर्मचारियों के आंदोलन में भाग लेने की वजह से 1963 में नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था। बाद में उनकी बहाली हुई लेकिन तबतक मजदूर आंदोलन में वे बहुत आगे निकल चुके थे। फिर से बिजली विभाग की सेवा करने की जगह मजदूर आंदोलन के लिए काम करना उन्होंने ज्यादा जरूरी समझा और अपना सारा जीवन संगठन आंदोलन को समर्पित करते हुए पूरावक्ती कार्यकर्ता बन गये। ट्रेड यूनियन दफतर, बिजली कर्मचारी संघ का कार्यालय मजदूरों का घर ही उनका घर हो गया। अपने अन्तिम सांस तक वे कम्युनिस्ट पार्टी श्रमिक आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता नेता बने रहे। इस समय वे बिजली कर्मचारी संघ के महामंत्री तथा एटक के प्रदेश अध्यक्ष थे। उनकी उम्र अस्सी को पार कर गई थी, स्वास्थ्य भी उनका साथ नहीं देता था लेकिन अपनी परवाह किये बिना संगठन के काम में वे लगे रहते थे। उनके निधन से प्रदेश के मजदूर आंदोलन की एक पीढ़ी एक युग का समापन हो गया है।
बैंक कर्मचारियों के नेता इप्टा के राकेश ने अपनी शोक संवेदना प्रकट करते हुए कहा कि बासुदेव पाण्डेय के निधन से मजदूरों ने अपना एक जुझारू, मजदूर हितों को समर्पित प्रिय नेता खो दिया है। ऐसे दौर में जब श्रमिक आंदोलन के सामने कई चुनौतियाँ हैं, बासुदेव पाण्डेय जैसे अनुभवी नेता का निधन आंदोलन की बड़ी क्षति है। उन्हें याद करते हुए स्कूटर्स इण्डिया संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक अमर सिंह ने कहा कि यहाँ के कर्मचारी आंदोलन से वे उस वक्त से जुड़े थे जब भारत सरकार द्वारा इस कारखाने को बजाज को सौंपने का निर्णय लिया गया था। स्कूटर्स इण्डिया को निजी हाथों से बचाने तथा इसके पुनरुद्धार के संघर्ष में कामरेड बासुदेव पाण्डेय का बहुमूल्य योगदान रहा है जिसे स्कूटर्स इण्डिया के कर्मचारी कभी भुला नहीं सकते हैं। बासुदेव पाण्डेय को एटक के राष्ट्रीय मंत्री सदरुद्दीन राना भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के अशोक मिश्र ने भी शोक संवेदना प्रकट की है।

कौशल किशोर

हिन्दी ब्लॉग टिप्सः तीन कॉलम वाली टेम्पलेट