अनपढ़ तो छोड़िए पढ़े-लिखों को और पढ़ाने की जरूरत है, तब ही लोगों में वैज्ञानिक सोच विकसित होगी। केवल डिग्री हासिल कर लेने से ही कुछ नहीं होगा। जब तक वैज्ञानिक सोच नहीं होगी, तब तक देश गरीब रहेगा। अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे लोग ज्योतिष और बाबाओं में भरोसा करते हैं। मीडिया भी टीआरपी बढ़ाने के लिए वही सब दिखा रहा है। उसे तो समाज के मार्गदर्शक की भूमिका निभानी चाहिए। यह बात प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष व सुप्रीमकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मरकडेय काटजू ने शुक्रवार को संवाददाता सम्मेलन में कही। उन्होंने कहा कि यूरोप की तरह आधुनिक और विकसित बनना है तो हमें पिछड़े विचारों (जातिवाद, सांप्रदायिकता, भाई-भतीजावाद) को छोड़कर वैज्ञानिक सोच के साथ काम करना होगा। यूरोप के लोगोंे की जागरूकता और तरक्की का कारण वैज्ञानिक सोच है। इस सोच को विकसित करने में मीडिया की भूमिका भी अहम है। मीडिया का काम सिर्फ सूचना देना ही नहीं है बल्कि समाज को मार्गदर्शन देने का भी जिम्मा है। देश में प्रिंट मीडिया तो फिर भी अपनी भूमिका का सही निर्वहन कर रही है, लेकिन इलेक्ट्रोनिक मीडिया असल मुद्दों को छोड़कर ज्योतिष, बाबा और मनोरंजन कार्यक्रमों को ज्यादा तवज्जो दे रही है। देश की जनता का बौद्धिक स्तर कम है, उसे जो दिखाओगे वही देखेगी। उन्होंने कहा कि पढ़े-लिखे लोग ही ज्योतिष और बाबाओं में ज्यादा आस्था रखते हैं। भारतीय समाज आज भी रूढ़िवादी विचारों में जकड़ा हुआ है। ज्ञान का स्तर कमजोर होने का ही नतीजा है कि चपरासी के एक पद के लिए ग्रेज्युएट और पोस्ट ग्रेज्युएट भी लाइन में लगे रहते हैं। यदि इनके ज्ञान का स्तर ऊंचा होता तो ऐसी नौबत नहीं आती। अपनी फील्ड में एक्सपर्ट लोगों को इस तरह की दिक्कतें नहीं आती हैं। पत्रकारों का बौद्धिक स्तर आम आदमी से ऊंचा होना चाहिए। तभी तो हम समाज को सही दिशा में ले जा पाएंगे। कार्यक्रम में वरिष्ठ नागरिक सेवा संस्थान के संस्थापक भूपेंद्र जैन भी उपस्थित थे। न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार गहराया श्री काटजू ने कहा कि न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार बढ़ गया है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सभी जज भ्रष्ट हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के संबंध में अपनी चर्चित टिप्पणी ‘यहां कुछ सड़ांध आती है’ करते हुए मुझे खुशी नहीं हुई थी, बल्कि पीड़ा हुई थी। लेकिन मुझे जो सही लगा मैंने वही किया। श्री काटजू ने वर्तमान सीजेआई एचएस कपाड़िया को तो ईमानदार बताया लेकिन इससे पहले के सीजेआई के बारे में कहा की उनके बारे में कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। वे चाहते हैं हम लड़ते रहें और देश कमजोर हो भारत विविधताओं का देश है। यहां सभी धर्मो का समान आदर किया जाता है, यही हमारी एकता है। तमाम बड़ी ताकतें इस कोशिश में लगी हैं कि इस देश में हिन्दू-मुस्लिम आपस में लड़ते रहें, ताकि देश कमजोर होता रहे। हम आपस में लड़ते रहेंगे तो देश तरक्की कैसे करेगा? तरक्की के लिए जरूरी है धर्मनिरपेक्षता। यह बात प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मरकडेय काटजू ने शुक्रवार को चेंबर ऑफ कॉमर्स सभागार में धर्म निरपेक्षता क्यों जरूरी है, विषय पर बोलते हुए कही। आयोजन वरिष्ठ नागरिक सेवा संस्थान और रहनुमा वेलफेयर फाउंडेशन ने रखा था। इतिहास के तमाम संदर्भो का हवाला देते हुए श्री काटजू ने कहा कि इस देश में 1857 से पहले सांप्रदायिकता की भावना इतनी नहीं थी, जितनी आज है। सांप्रदायिकता का जहर अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति के कारण फैला, जिसका नतीजा 1947 में भारत विभाजन के रूप में सामने आया। सांप्रदायिकता की भावना हिन्दू में भी है और मुसलमान में भी, इसीलिए जब भी कहीं कोई बम विस्फोट होता है, झट से किसी मुस्लिम का नाम आ जाता है। ये हमारी विविधता को कमजोर करने की कोशिश भी है। उन्होंने आगाह किया कि अगर धर्म के नाम पर राज्य बनाए जाएंगे तो आप अपनी जड़ों से भी कटते जाएंगे। हमें यह भी समझना होगी कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ नास्तिक होना नहीं है। www.bhaskar.com/
Monday 23 April, 2012
अनपढ़ तो छोड़िए पढ़े लिखों को और पढ़ाने की जरूरत : काटजू
Posted by Randhir Singh Suman at 10:20 pm 0 comments
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90 फीसदी भारतीयों को मूर्ख बताने के पीछे काटजू ने गिनाए ये 10 कारण
90 फीसदी भारतीयों को मूर्ख बता चुके जस्टिस (रि.) मार्केंडेय काटजू ने अब कहा है कि 90 फीसदी भारतीयों के पास 'अनसाइंटिफिक टेंपर' है। उन्होंने 90 फीसदी भारतीयों को मूर्ख बताते हुए वे कारण गिनाए हैं जिनके आधार पर वह इस नतीजे पर पहुंचे हैं। 1. तमिल लोग भारत के सर्वश्रेष्ठ और सबसे तेज दिमाग वाले, प्रतिभावान लोगों में शुमार हैं। इसके बावजूद वे भारत में सबसे ज्यादा अंधविश्वास करने वाले लोग हैं।
2. दूसरी बात, ज्यादातर मंत्री और यहां तक कि हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अपने ज्योतिषियों से राय-मशविरा करके उनके द्वारा बताए गए मुहूर्त में ही शपथ ग्रहण करते हैं।
3. सुप्रीम कोर्ट के जजों के लिए कुछ फ्लैट तय हैं। उन्हीं फ्लैटों में से एक हर जज को आवंटित होता है। ऐसे ही एक फ्लैट में कभी किसी जज के साथ कोई हादसा हुआ था। इसके बाद से उस फ्लैट को मनहूस बताते हुए किसी जज ने उसमें रहना मंजूर ही नहीं किया। अंतत: तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने चिट्ठी लिखी कि उस फ्लैट को जजों को आवंटित किए जाने वाले फ्लैट की सूची से ही हटा दिया जाए। इसके बाद ऐसा ही किया गया और उसके बदले दूसरा फ्लैट सूची में शुमार किया गया।
4. कुछ साल पहले मीडिया में खबर चली कि भगवान गणेश दूध पी रहे हैं। इसके बाद दूध पिलाने वाले भक्तों की भीड़ लग गई। इसी तरह एक चमत्कारिक चपाती की चर्चा भी खूब चली इस तरह के 'चमत्कार' होते ही रहते हैं।
5. हमारा समाज बाबाओं से प्रभावित है। इस कड़ी में ताजा वह हैं जो तीसरी आंख होने का दावा करते हैं। भगवान शिव की तरह।
6. जब मैं इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज था, उस दौरान ऐसी खबर आई थी कि तमिलनाडु में किसी शख्स ने पानी से पेट्रोल बनाने की तकनीक ईजाद कर ली है। कई लोगों ने इस पर यकीन किया। मेरे एक सहयोगी ने भी कहा कि अब पेट्रोल सस्ता हो जाएगा, लेकिन मैंने कहा कि यह धोखा है और बाद में यह धोखा साबित हुआ।
7. शादी पक्की करने से पहले ज्यादातर माता-पिता ज्योतिषि से मिलते हैं। कुंडली मेल खाने पर ही शादी पक्की होती है। बेचारी मांगलिक लड़कियों को अक्सर नकार दिया जाता है, जबकि उसकी कोई गलती नहीं होती।
8. हर रोज टीवी चैनलों पर अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले तमाम कार्यक्रम दिखाए जाते हैं। ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन इन्हें रोकने की बात करता है, लेकिन बाजार के दबाव में उन्हें रोका नहीं जा रहा है। अफसोस की बात है कि भारत में मध्य वर्ग का बौद्धिक स्तर काफी नीचा है। वे फिल्मी सितारों की जिंदगी, फैशन परेड, क्रिकेट और ज्योतिष से जुड़े कार्यक्रम ही पसंद करते हैं।
9. ज्यादातर हिंदू और ज्यादातर मुसलमान सांप्रदायिक हैं। 1857 के पहले ऐसा नहीं था। यह एक सच है कि हर समुदाय के 99 फीसदी लोग बेहतर हैं, लेकिन उनके अंदर से संप्रदायवाद का वायरस मिटाने में काफी समय लग जाएगा।
10. इज्जत के नाम पर जान लेना, दहेज के लिए हत्याएं, कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीतियां आज भी भारत में मौजूद हैं।
Posted by Randhir Singh Suman at 10:15 pm 0 comments
Sunday 22 April, 2012
मज़दूरों और किसानों का पहला राज्य
सन् 1917 की फ़रवरी में रूस में पूँजीवादी क्रांति हुई और रूसी राजसत्ता अस्थायी सरकार के, पूँजीवादी अधिनायकत्व की उस संस्था के हाथ में आ गई जिस ने रूसी राज्य की शासन-मशीन को क़ाबू में कर लिया था।
राजनीतिक संग्राम के क्षेत्र में रूसी मज़दूर-वर्ग के हितों को लेनिन की बोल्शेबिक-पार्टी व्यक्त करती थी। ज़ारशही शासन के विरुद्ध की लडा़इयों में उस के नेतृत्व में पेत्रोग्राद (1924 से लेनिनग्राद, 1991 से सेंट पीटर्सबर्ग) के मज़दूर सोवियतों (रूसी: совет - परिषद्) की स्थापना करने लगे जिन में शुरू से ही वे सिपाही भी भाग लेते थे जो असल में फ़ौजी पोशाक पहने हुए किसान थे।
रूसी मज़दूर-वर्ग ने जल्दी से ट्रेड-यूनियनों को क़ायम किया, बिना हुक्म के आठ घंटे का काम का दिन लागू किया और क्रांति की रक्षा के लिए लाल गार्ड की स्थापना की।
सर्वहारा और किसान-जनता के क्रांतिकारी जनवादी अधिनायकत्व की संस्था पेत्रोग्राद सोवियत, जिस का देश भर में स्थापित बहुत सोवियतें साथ दे रही थीं, कोई राजसत्ता तो न थी, लेकिन हथियारबंद जनता उस का समर्थन कर रही थी और वास्तव में अधिकार उसी के हाथ में था।
इस तरह फ़रवरी की क्रांते ने दोहरा शासन क़ायम कर के नये क्रांति-संग्रामों का बीज ख़ुद ही बोया। इन क्रांति-संग्रामों की अनिवार्यता इसी बात से निश्चित थी कि संग्राम करते हुए वर्गों में से कोई भी फ़रवरी क्रांति के फलों से संतुष्ट न था।
अप्रैल सन् 1917 में लेनिन के रूस लौटने पर जनवादी क्रांति को समाजवादी क्रांति में बदल देने की साफ़ योजना बोल्शेविक पार्टी को प्राप्त हुई।
अक्तूबर तक देश में आम राजनीतिक संकट और गंभीर हो उठा। लडा़ई के फलस्वरूप जिसे अस्थायी सरकार ने जारी रखा देश अकाल तथा विनाश की ओर बढ़ रहा था। मज़दूर वर्ग पूँजीवादी वर्ग के विरुद्ध और अधिक दृढ़ता से संग्राम चला रहा था। पेत्रोग्राद और को सोवियतें तथा देश के कई दूसरे औद्योगिक केंद्रों की सोवियतें बोल्शेविक हो गई थीं। सरकार से ज़मीन न पा कर किसानों ने बोल्शेविकों के आह्वान पर चलते हुए ख़ुद ही ज़मीन पर क़ब्ज़ा करना शुरू कर दिया। मुख्य मोर्चों और देश के भीतर स्थित नगर-सेनाओं के बहुत से सिपाही जो जनता-विरोधी हितों के लिए होनेवाली लड़ाई से ख़ास तौर से थक गये थे, बोल्शेविकों की तरफ़ चले आये। मज़दूर वर्ग की अगुआई में अधिकांश जनता के समर्थन का सहारा लेकर बोल्शेविकों ने लेनिन के नेतृत्व में हथियारबंद विद्रोह के लिए लोगों का खुला आह्वान किया। सन् 1917 के अक्तूबर की 24 तारीख़ को लेनिन स्मोल्नी इंस्टीट्यूट-भवन में पहुँचे। लाल गार्ड के सैनिक तथा मिलों और कार्ख़ानों के प्रतिनिधि हिदायतें पाने के लिए हर जगह से यहाँ आये। सर्वहारा-विद्रोह के प्रधान कार्यालय - सैनिक क्रांति-समिति की बैठक तीसरी मंज़िल पर बराबर चल रही थी। स्मोल्नी पहुँचते ही लेनिन ने विद्रोह का सीधा संचालन अपने हाथ में ले लिया। जल्दी ही मोटरों और साइकिलों पर संदेशवाहक निकल पडे़ और राजधानी के कारख़ानों, मुहल्लों और फ़ौजी दलों में सैनिक क्रांति-समिति के हुक्म पहुँचाने लगे।
पेत्रोग्राद के सर्वहारा और रेजीमेंटें काम करने लगे। फ़ौजी चौकियों और सरकारी दफ़्तरों पर क़बज़ा किया जाने लगा। 25 अक्तूबर की सुबह तक नेवा नदी पर के सभी पुल, केंद्रीय टेलीफ़ोन-स्टेशन, तारघर, पेत्रोग्राद समाचार-समिति, रेडियो-स्टेशन, रेलवे-स्टेशन, बिजलीघर, बैंक और दूसरे महत्त्वपूर्ण कार्यालय नौसैनिकों, लाल गार्डवालों और सिपाहियों के क़ब्ज़े में आ गये। शीत-महल जिस में अस्थायी सरकार बैठी थी और फ़ौजी इलाक़े के मुख्य कार्यालय को छोड़ कर बाक़ी सारा शहर हथियारबंद सर्वहारा और क्रांतिकारी सैनिकों के हाथों में आ चुका था। शीत-महल पर जल्दी ही क़ब्ज़ा करने के लिए नौसैनिकों, लाल गार्डवालों और सिपाहियों को लेनिन बढा़वा देता रहा। विद्रोह वास्तव में विजयी हो चुका था।
सुबह को सैनिक क्रांति-समिति ने लेनिन की लिखी "रूस के नागरिकों के नाम" ऐतिहासिक अपील का प्रकाशन किया। इस में आम जनता को यह ख़बर दी गयी थी कि अस्थायी सरकार का तख़्ता उलट दिया गया है और राजसत्ता पेत्रोग्राद के सर्वहारा और नगर-सेना की अगुआई करनेवाली सैनिक क्रांति-समिति के हाथों में आ गई है। पेत्रोग्राद में क्रांति की विजय की ख़बर तार द्वारा रूस के कोने-कोने में और सभी मोर्चों पर पहुँचाई गई। दिन के समय लेनिन ने पेत्रोग्राद नगर-सोवियत की असाधारण बैठक में सोवियत शासन के कर्त्तव्यों पर भाषण दिया। इस भाषण के ऐतिहासिक शब्द थे: "मज़दूरों और किसानों की क्रांति ... कामयाब हो गई है..."
26 अक्तूबर की सुबह के 5 बजे सोवियतों की दूसरी अखिल रूसी कांग्रेस के अधिवेशन में यह ख़बर सुनायी गई कि अस्थायी सरकार के आख़िरी क़िले - शीत-महल पर क़ब्ज़ा कर लिया गया है। केंद्र में और दूसरे स्थानों पर राज्यशासन सोवियतों के हाथों में आ गया है।
संसार के इतिहास में मज़दूरों और किसानों का पहला राज्य क़ायम हो गया था।
-विकिपीडिया से
Posted by Randhir Singh Suman at 9:57 am 0 comments
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आज लेनिन का जन्मदिन है-
माखनलाल चतुर्वेदी-
" क्रांति के बाद ही रूस में अकाल पड़ा। लोग भूखे मरने लगे। प्रतिक्रांतिकारियों ने लोगों को भड़काया कि लेनिन ने तुम्हें धोखा दिया। वह तो अपने महल में मजे उड़ा रहा था। भीड़ लेनिन के निवास पर पहुंची। लेनिन-विरोधी नारे लगाए, खिड़कियां तोड़ी। लेनिन फ़ाइलों पर काम करते रहे। तभी लेनिन की लड़की डब्बा लेकर आई और कहा- पिताजी, आपने तीन दिन से कुछ नहीं खाया। ये रोटी खा लीजिए। भीड़ स्तब्ध रह गई। लेनिन ने डिब्बा खोला और उसमें से रोटी के दो अधजले टुकड़े निकाले। भीड़ में कई लोग रो पड़े और लेनिन की जय बोली जाने लगी."
Posted by Randhir Singh Suman at 9:48 am 0 comments
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Sunday 15 April, 2012
poonjivaad ka sankat
Posted by Randhir Singh Suman at 1:22 pm 0 comments
Monday 2 April, 2012
जनता के सवालों को लेकर संघर्ष तेज किया जाएगा
राष्ट्रीय महासचिव बनने के पश्चात श्री रेड्डी का रविवार को पार्टी के प्रदेश कार्यालय में स्वागत किया गया। सुधाकर रेड्डी ने महाधिवेशन के सफल आयोजन और विशाल रैली के लिए पार्टी की राज्य इकाई को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि तेज संघर्ष के बूते पर ही पार्टी आगे बढ़ेगी। अपनी पुरानी हैसियत में लौटेगी। भाकपा के उभार की शुरुआत महाधिवेशन के सफल आयोजन से हो चुकी है।
इस अवसर पर मौजूद पार्टी के राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अंजान ने महाधिवेशन की तैयारी के सिलसिले में अपने प्रदेश के दौरे के अनुभव बताए। उन्होंने कहा कि लोग उनकी पार्टी की ओर आ रहे हैं। राज्य सचिव बद्री नारायण लाल ने श्री रेड्डी को भरोसा दिलाया कि महाधिवेशन की तैयारी के क्रम में पार्टी की बिहार इकाई ने जो गति पकड़ी है, वह आगे भी जारी रहेगी। जून में आयोजित राज्य सम्मेलन की तैयारी जल्द ही शुरू हो जाएगी। इसके लिए 9 अप्रैल को राज्य कार्यकारिणी एवं जिला मंत्रियों की संयुक्त बैठक बुलायी गयी है। बैठक में राज्य सम्मेलन का स्थान एवं तिथि तय की जाएगी।
Posted by Randhir Singh Suman at 6:50 pm 0 comments
Labels: loksangharsha, suman, भाकपा, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, लेनिन