जीवन-लक्ष्य
कठिनाइयों से रीता जीवन
मेरे लिए नहीं,
नहीं, मेरे तूफानी मन को यह स्वीकार नहीं।
मुझे तो चाहिए एक महान ऊंचा लक्ष्य
और उसके लिए उम्र भर संघर्षों का अटूट क्रम।
ओ कला! तू खोल
मानवता की धरोहर, अपने अमूल्य कोषों के द्वार
मेरे लिए खोल!
अपनी प्रज्ञा और संवेगों के आलिंगन में
अखिल विश्व को बांध लूंगा मैं!
आओ,
हम बीहड़ और कठिन सुदूर यात्रा पर चलें
आओ, क्योंकि -
छिछला, निरुद्देश्य और लक्ष्यहीन जीवन
हमें स्वीकार नहीं।
हम, ऊंघते कलम घिसते हुए
उत्पीड़न और लाचारी में नहीं जियेंगे।
हम - आकांक्षा, आक्रोश, आवेग, और
अभिमान में जियेंगे!
असली इन्सान की तरह जियेंगे।
(18 वर्ष की आयु में मार्क्स द्वारा लिखी गई कविता)
Sunday 11 July, 2010
जीवन-लक्ष्य
Posted by Randhir Singh Suman at 4:45 pm
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